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ममता, पिनराई... अब केजरीवाल; क्या राज्य सरकारें CAA से कर सकती हैं इनकार, क्या कहता है संविधान?

Citizenship Amendment Act: पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के बाद आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने CAA के खिलाफ अपना गुस्सा जाहिर किया. एक के बाद एक तीन राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने CAA का विरोध किया है. सवाल ये कि क्या राज्यों के पास येअधिकार है कि वे केंद्र सरकार के कानून को अपने राज्य में लागू न करें. आइए, जानते हैं आखिर क्या कहता है संविधान?

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Edited By: India Daily Live
CAA

Citizenship Amendment Act: केंद्र सरकार ने सोमवार शाम को नागरिकता संशोधन एक्ट यानी CAA कानून को पूरे देश में लागू होने की घोषणा कर दी. केंद्र की घोषणा के पहले और बाद में भी कुछ राज्यों ने इसे अपने राज्यों में लागू न करने की बात ही है. आज यानी गुरुवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री ने इस कानून पर सवाल उठाए हैं. केजरीवाल ने जनता से अपील कर कहा कि अगर BJP CAA वापस नहीं लेती, तो BJP के खिलाफ वोट करके अपना गुस्सा जाहिर कीजिए.

उन्होंने कहा कि पिछले 10 सालों में 11 लाख अमीर उद्योगपति और व्यापारी भारत छोड़कर चले गए. अगर BJP को लाना ही है, तो इन लोगों को वापस लेकर आए. अगर ये भारत में आएंगे, इनके पास पैसा है, रोज़गार देंगे. उन्होंने कहा कि ये क्या बदतमीजी है कि Bangladesh, Pakistan और Afghanistan के लोगों को भारत में जगह देंगे, हमारे बच्चों के हक़ के रोज़गार उन्हें देंगे. कुल मिलाकर ममता, विजयन के बाद अब केजरीवाल ने CAA का विरोध किया है. ऐसे में सवाल ये कि जिन मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों में CAA को किसी कीमत पर लागू नहीं करने की बात कही है, वाकई उन्हें ये अधिकार है, संविधान आखिर क्या कहता है?

पहले ये जानते हैं कि आखिर ममता और विजयन ने क्या कहा? ममता बनर्जी ने हाल ही में कोलकाता में एक रैली में कहा कि वे किसी भी कीमत पर पश्चिम बंगाल में CAA को नहीं लागू होने देंगी. वहीं, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि लोकसभा चुनावों से पहले CAA लाने का केंद्र सरकार का ये फैसला बिलकुल गलत है. इस फैसले के जरिए केंद्र सरकार देश में अशांति का माहौल पैदा करना चाहती है. 

आइए, जानते हैं कि आखिर संविधान क्या कहता है, क्या राज्य सरकारें वाकई केंद्र के इस फैसले का विरोध करते हुए अपने राज्य में इस कानून को लागू होने से रोक सकती हैं? इसका सटीक और सीधा जवाब है कि राज्य की सरकारें ऐसा नहीं कर सकतीं हैं. संविधान के आर्टिकल 246 में केंद्र और राज्य के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा किया गया है. संविधान के मुताबिक, नागरिकता का मामला संघ सूची के अंतर्गत आता है, न कि राज्य सूची के अंतर्गत. 

दरअसल, केंद्र और राज्य सरकारों के बीच किसी मामले पर टकराव की स्थिति से बचने के लिए संविधान में दोनों की शक्तियों का बंटवारा किया गया है. संघ सूची में राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे शामिल हैं, जिनमें नागरिकता का भी मामला आता है. इसके अलावा, संघ सूची में रक्षा, विदेश संबंधी, परमाणु ऊर्जा, सीमा शुल्क जैसे विषय है. इन विषयों पर कानून बनाने का अधिकार संसद को है.

राज्य सूची में पुलिस, जेल, स्थानीय शासन, शिक्षा जैसे कुल 61 मामले आते हैं, जिस पर कानून बनाने का अधिकार राज्य सरकारों को होता है. इन दोनों के अलावा, एक अन्य सूची है, जिसे समवर्ती सूची कहा जाता है. इसमें दंड विधि, विवाह, जनसंख्या नियंत्रण जैसे 52 मामले आते हैं. इस सूची में शामिल विषय पर राज्य और संघ दोनों को कानून बनाने का अधिकार है. 

CAA लागू न करना हो, तो क्या कर सकती हैं राज्य सरकारें?

संविधान के मुताबिक, राज्य सरकार CAA को लागू करने से इनकार नहीं कर सकती हैं, तो ऐसे में उन राज्य की सरकारों के पास क्या विकल्प है, जो इस कानून का विरोध कर रही हैं. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, जो सरकारें CAA को नहीं लागू करना चाहती हैं, वे अपनी शिकायतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रूख कर सकती हैं. CAA को लेकर नोटिफिकेशन जारी होने के 24 घंटे के अंदर ही केरल के इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग यानी IUML, नागरिकता संसोधन कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. 

IUML के अलावा, सुप्रीम कोर्ट में CAA के खिलाफ अब तक 200 से अधिक याचिकाएं दाखिल हो चुकीं हैं. इनमें TMC लीडर महुआ मोइत्रा, कांग्रेस नेता जयराम रमेश, AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी, कुछ NGO और छात्र संगठन शामिल हैं. 

क्या है नागरिकता संशोधन एक्ट?

नागरिकता संशोधन बिल को दिसंबर 2019 में संसद के दोनों सदनों में पास करा लिया गया था. इसके बाद राष्ट्रपति से मंजूरी के बाद ये कानून बन गया था. अब करीब चार साल बाद इसे पूरे देश में लागू कर दिया गया है. दरअसल, ये कानून पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के गैर मुस्लिमों (हिंदू, सिख, जैन, पारसी और ईसाई) के प्रताड़ितों को भारत की नागरिकता देता है. इसके लिए जरूरी शर्त ये कि जो भी प्रताड़ित गैर मुस्लिम हैं, वे 31 दिसंबर 2014 के पहले भारत आए हों.