चंद्रशेखर आजाद का बहुजन समाज में बढ़ता प्रभाव या कुछ और, मायावती ने आकाश को क्यों भरने दी 'उड़ान'?
बसपा नेताओं का कहना है कि पिछले महीने आकाश की बर्खास्तगी, एक प्रमुख चेहरे की कमी और चंद्रशेखर आजाद के उभरने के कारण पार्टी को चुनावी झटका लगा. पार्टी में कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि मायावती का यह यू-टर्न नगीना के सांसद चंद्रशेखर आजाद के बहुजन आंदोलन में एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में उभरने का परिणाम है.
लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. नीतीजों के कुछ दिनों के बाद पार्टी सुप्रीमो मायावती ने रविवार को अपने भतीजे आकाश आनंद को अपने एकमात्र राजनीतिक उत्तराधिकारी और पार्टी के नेशनल कॉर्डिनेटर के रूप में बहाल कर दिया. मायावती ने अपने पार्टी के नेताओं से कहा कि आकाश को आप पहले से अधिक सम्मान देना.
मायावती ने 2019 में आकाश को पार्टी का नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया और पिछले साल दिसंबर में उन्हें अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी नामित किया. लेकिन पिछले महीने उन्हें बर्खास्त कर दिया. जबकि बसपा नेताओं ने कहा कि उन्हें यकीन था कि आनंद को बहाल कर दिया जाएगा, लेकिन उन्हें उम्मीद नहीं थी कि यह निर्णय इतनी जल्दी आएगा. पार्टी में कुछ लोगों ने अनुमान लगाया कि मायावती का यह यू-टर्न नगीना के सांसद चंद्रशेखर आज़ाद के बहुजन आंदोलन में एक शक्तिशाली विकल्प के रूप में उभरने का परिणाम है.
आकाश आनंद को क्यों हटाया गया?
7 मई को मायावती ने आकाश को बर्खास्त कर दिया गया. एक कदम उनके एक भड़काऊ भाषण के बाद उठाया गया. उत्तर प्रदेश के सीतापुर में पुलिस ने आकाश पर कथित तौर पर नफरत और दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोप में मामला दर्ज किया.
अपनी बर्खास्तगी के बाद आकाश ने लोकसभा चुनाव के दौरान अपना प्रचार अभियान बीच में ही रोक दिया और मायावती पार्टी का एकमात्र चेहरा बन गईं. जो नेता चुनाव हार गए उनसे पार्टी को फीडबैक मिला. जाटव दलितों के साथ-साथ मुसलमानों का एक वर्ग, जिसे बसपा का मुख्य मतदाता माना जाता है, अगर आकाश आनंद अपना अभियान जारी रखते तो समाजवादी पार्टी (सपा)-कांग्रेस गठबंधन का समर्थन नहीं करता.
आकाश के आने से कार्यकर्ताओं में जोश
मायावती के प्रचार की शैली से अलग है जहां वे मुख्य रूप से सपा और कांग्रेस पर निशाना साधती थीं, आकाश ने शिक्षा, गरीबी, अर्थव्यवस्था और कानून व्यवस्था के मुद्दों पर भाजपा पर लगातार हमला किया. नेताओं ने कहा कि उनके जाने से दलितों और मुसलमानों में यह संदेश गया कि मायावती भाजपा के दबाव में आ गई हैं.
पार्टी के एक नेता ने कहा, "उनकी फिर से नियुक्ति से बसपा को भाजपा की बी-टीम होने का ठप्पा हटाने में मदद मिलेगी. इससे जाटवों और अन्य दलितों के हमारे मूल मतदाता आधार में विश्वास फिर से बनाने और लोकसभा चुनाव में हार के बाद हतोत्साहित हमारे कार्यकर्ताओं में फिर से जोश भरने में मदद मिलेगी."
चंद्रशेखर आजाद की जीत का असर
मायावती के अचानक हृदय परिवर्तन में बसपा के कई अंदरूनी लोग आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के नेता चंद्रशेखर आज़ाद की नगीना लोकसभा क्षेत्र से जीत का असर देखते हैं. बसपा ने 2019 में यह सीट जीती थी, जब उसने सपा और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के साथ गठबंधन करके चुनाव लड़ा था. आज़ाद जैसे युवा और लोकप्रिय दलित नेता के उभरने से मयावती को खतरा है. आज़ाद, जिन्होंने सपा या कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं किया और नगीना में 1.53 लाख वोटों से जीत हासिल की. बसपा के पास अब कोई लोकसभा सांसद नहीं है और आजाद देश भर में यात्रा करते हुए सदन में दलितों और मुसलमानों के मुद्दों को उठाएंगे. इससे उन्हें दलित नेता के रूप में उभरने और मायावती के विकल्प के रूप में उभरने में मदद मिलेगी, जिससे बसपा और कमजोर होगी.
पार्टी में लोकप्रिय चेहरे की कमी
लोकप्रिय चेहरे की कमी के कारण संसदीय चुनावों में बसपा को झटका लगा. मायावती पार्टी का एकमात्र प्रमुख चेहरा बनी रहीं, जबकि लालजी वर्मा, आर के चौधरी, राजा राम पाल, स्वामी प्रसाद मौर्य, नसीमुद्दीन सिद्दीकी, रामअचल राजभर, इंद्रजीत सरोज और बाबू सिंह कुशवाहा जैसे अन्य दलित, ओबीसी और मुस्लिम नेताओं ने या तो अपनी वफादारी बदल ली या उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. बसपा में बचे हुए लोग या तो ज्यादातर संगठनात्मक गतिविधियों में शामिल हैं या मायावती और उनके भतीजे की तरह उनके पास कोई समर्थक नहीं है.
2027 विधानसभा चुनाव में आकाश की होगी अहम भूमिका
राष्ट्रीय समन्वयक के तौर पर, 2019 से पार्टी में आकाश आनंद की शक्तियां सीमित थीं. उन्हें किनारे कर दिया गया और संसदीय चुनावों के लिए टिकट वितरण में उनकी कोई भूमिका नहीं थी. 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए, बीएसपी के एक नेता ने कहा कि पार्टी को एक ऐसे युवा नेता की ज़रूरत है जो पूरे राज्य में घूम सके, ज़िलेवार बैठकें कर सके और ज़मीन से सीधे फ़ीडबैक प्राप्त कर सके.