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'वक्फ बाय यूजर, डिनोटिफिकेशन', वक्फ बिल के प्रमुख प्रावधानों पर केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से क्या कहा?

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से एक्ट पर रोक न लगाने की अपील की, उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार भारत के लोगों के प्रति जवाबदेह है. हालांकि कोर्ट ने कहा कि हमने कहा कि कानून में कुछ सकारात्मक बातें हैं, लेकिन हम नहीं चाहते कि मौजूदा स्थिति में इतना बड़ा बदलाव हो कि लोगों के अधिकार प्रभावित हों.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
Centre assures Supreme Court to stay key provisions of Waqf like Waqf bill by User denotification

केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि वह विवादास्पद वक्फ (संशोधन) एक्ट के प्रमुख प्रावधानों, विशेष रूप से "वक्फ बाय यूजर" और वक्फ संपत्तियों की डिनोटिफिकेशन से संबंधित प्रावधानों पर रोक लगाएगी. सरकार ने यह भी कहा कि 5 मई को अगली सुनवाई तक केंद्रीय वक्फ परिषद और बोर्डों में कोई नियुक्ति नहीं की जाएगी.

सॉलिसिटर जनरल का बयान
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, "सरकार 2025 वक्फ संशोधन एक्ट के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद में कोई नियुक्ति नहीं करेगी और 1995 के मूल एक्ट के तहत पंजीकृत 'वक्फ बाय यूजर' संपत्तियों को छेड़ा नहीं जाएगा." मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और के.वी. विश्वनाथन की तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने मेहता की दलीलों को रिकॉर्ड किया.

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश ने आदेश में कहा, "यह सहमति बनी कि पक्षकार उन याचिकाओं को चिह्नित करेंगे जो प्रमुख मामलों के रूप में मानी जाएंगी. अन्य याचिकाओं को इनमें आवेदन के रूप में माना जाएगा." कोर्ट ने केंद्र, राज्य सरकारों और वक्फ बोर्डों को सात दिनों के भीतर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया. याचिकाकर्ताओं को जवाब मिलने के पांच दिनों के भीतर प्रत्युत्तर दाखिल करने को कहा गया. मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया, "वक्फ बाय यूजर को रद्द करने से गंभीर परिणाम हो सकते हैं. कई लोगों के पास पंजीकरण के लिए आवश्यक दस्तावेज नहीं होंगे."

वक्फ एक्ट पर बहस
मेहता ने कोर्ट से एक्ट पर रोक न लगाने की अपील की, उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार भारत के लोगों के प्रति जवाबदेह है. लाखों प्रतिनिधित्व मिले. कई गांवों और जमीनों को वक्फ घोषित किया गया. यह एक सोचा-समझा कानून है." हालांकि, कोर्ट ने कहा, "हमने कहा कि कानून में कुछ सकारात्मक बातें हैं, लेकिन हम नहीं चाहते कि मौजूदा स्थिति में इतना बड़ा बदलाव हो कि लोगों के अधिकार प्रभावित हों."

याचिकाकर्ताओं की दलील
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया कि नया कानून मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. उन्होंने कहा, "राज्य यह कैसे तय कर सकता है कि मैं मुसलमान हूं या नहीं, और इसलिए वक्फ बनाने के योग्य हूं?" सिब्बल ने संविधान के अनुच्छेद 26 का हवाला देते हुए कहा, "सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, प्रत्येक धार्मिक समुदाय को धार्मिक और धर्मार्थ संस्थानों को स्थापित करने और प्रबंधन करने का अधिकार है."

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