कांग्रेस सांसद धीरज साहू के ठिकानों से बरामद 351 करोड़ का कैश काला धन या सफेद, जानें सच
आयकर विभाग ने ओडिशा और झारखंड में कई जगहों पर की गई छापेमारी में कांग्रेस नेता और राज्य सभा सांसद धीरज साहू के ठिकानों से 351 करोड़ कैश बरामद किया है.
Dhiraj Sahu: आयकर विभाग ने ओडिशा और झारखंड में कई जगहों पर की गई छापेमारी में कांग्रेस नेता और राज्य सभा सांसद धीरज साहू के ठिकानों से बड़ी मात्रा में कैश बरामद किया है. साहू के ठिकानों पर छापेमारी कर मिली नकदी की रकम की पिछले पांच दिनों से चल रही गिनती रविवार रात को जब समाप्त हुई तो सामने आया कि बरामद हुआ कुल कैश 351 करोड़ रुपए है.
कांग्रेस सांसद होने के साथ-साथ साहू एक शराब कारोबारी भी हैं. आयकर विभाग ने उनकी कंपनी बौध डिस्टिलरी प्राइवेट लिमिटेड (BDPL) के ओडिशा, झारखंड और पश्चिम बंगाल स्थित ठिकानों पर छापेमारी की थी. साहू के ठिकानों से इतनी भारी मात्रा में मिले कैश के बाद भाजपा, कांग्रेस को गले तक भ्रष्टाचार में डूबी हुई पार्टी का तमगा दे रही है.
झारखंड बीजेपी के प्रवक्ता प्रतुल शाह देव ने दावा किया है कि बरामद की गई नकदी काला धन है और उन्होंने सीबीआई और ईडी से मामले की जांच कराने की मांग की है.
अब आते हैं कहानी के प्रश्न पर कि क्या धीरज साहू के ठिकानों से बरामद हुई 351 करोड़ की रकम वास्तव में काला धन ही है?
जैसा कि हमने आपको बताया कि साहू एक शराब कारोबारी भी हैं. उनका परिवार पिछले 90 सालों से शराब के कारोबार से जुड़ा हुआ है. आज आलम ये है कि ओड़िशा के 62 में से 46 शराब के भट्ठे साहू के परिवार के पास ही हैं.
सूत्रों की मानें तो इसके अलावा राज्य की 18 भारत में शराब बनाने वाले विदेशी बॉटलिंग प्लांटों को शराब बनाने के लिए जरूरी स्पिरिट की 80 प्रतिशत सप्लाई उनकी कंपनी BDPL ही करती है. ओडीशा के अलावा, बंगाल, झारखंड समेत पूर्वी भारत के अधिकांश बॉटलिंग प्लांट भी स्पिरिट के लिए BDPL पर ही निर्भर हैं.
स्पिरिट के अलावा बीडीपीएल एक्स्ट्रा न्यूट्रल एल्कोहल यानी ईएनए भी बनाती है जो व्हिस्की, वोदका और जिन जैसी विदेशी शराब बनाने के साथ-साथ पेंट, स्याही और प्रसाधन सामग्री बनाने में काम आती है. वहीं कंपनी से जुड़े एक व्यक्ति ने दावा किया है साहू के ठिकानों से बरामद कैश उनके शराब के धंधे से ही जुड़ा है.
गोपनीयता की शर्त पर शख्स ने कहा कि देसी शराब बनाने में महुआ के फूल का इस्तेमाल होता है और जंगल से महुआ बटोरने वाले आदिवासी जो डिजिटल पेमेंट के बारे में नहीं जानते उन्हें नकदी में ही भुगतान किया जाता है. उसने कहा कि 60 रुपए देकर ठर्रा खरीदने वाला शख्स भी कैश में ही पेमेंट करता है. इसलिए यह कहना गलत है कि यह रकम काली कमाई है.
उसने कहा कि इस कारोबार में बड़ी मात्रा में कैश आता है इसलिए बड़ी रकम पाया जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है. शख्स ने बताया कि 2019 में भी साहू के ठिकानों पर छापेमारी में भारी कैश बरामद हुआ था, तब भी आयकर विभाग को कोई गड़बड़ नहीं मिली थी और उसने साहू के परिवार को पूरी रकम लौटा दी थी.
हालांकि बलांगीर में साहू के देसी शराब के कारोबार को बहुत नजदीकी से देखने वाले एक अन्य व्यक्ति ने बिल्कुल दूसरी बात बताई. उसने कहा कि देसी शराब पीने वाले आदमी के पास 100 या 200 के नोट ही होते हैं लेकिन बरामद की गई रकम में एक बड़ा हिस्सा 500 रुपए के नोटों का है, जाहिर है यह काला धन था जिसे शायद आने वाले चुनाव में खपाया जाना था.
साहू के इस खुलासे से बढ़ा शक
दरअसल, धीरज साहू ने 2018 में राज्य सभा चुनाव के लिए नामांकन पत्र भरते हुए अपने शपथ पत्र में कहा था कि उनकी कुल संपत्ति 34.83 करोड़ है, जिसमें चल संपत्ति 2.04 करोड़ है.
उन्होंने शपथ पत्र में यह भी कहा था उनके पास कुल 27 लाख रुपए की नकदी है. इसलिए इतनी बड़ी मात्रा में उनके ठिकानों से करोड़ों की नकदी मिलना भी कई सवाल खड़े कर रहा है. हालांकि, सच्चाई क्या है यह पूरी जांच के बाद ही पता चल पाएगा.