Calcutta High Court: 2012 में अपनी दो बेटियों की हत्या कर उन्हें कोलकाता में सड़क किनारे फेंकने के आरोपी एक व्यक्ति को 11 साल से ज़्यादा हिरासत में रखने के बाद, कलकत्ता हाई कोर्ट ने मुकदमे में देरी के कारण नवंबर के अंत तक अंतरिम ज़मानत दे दी. जस्टिस अरिजीत बनर्जी और जस्टिस अपूर्व सिन्हा रे की हाई कोर्ट की खंडपीठ ने 24 सितंबर को अपने आदेश में कहा कि मुकदमे की प्रगति में अत्यधिक और अस्पष्टीकृत देरी के आधार पर, हम याचिकाकर्ता को अंतरिम ज़मानत पर रिहा करते हैं.
आरोपी इस्तियाक अहमद उर्फ इस्तियाक एसके 11 साल और सात महीने से हिरासत में था. 24 सितंबर को राज्य ने कहा कि मुकदमा अभी पूरा नहीं हुआ है क्योंकि अभियोजन पक्ष के दो और गवाहों से पूछताछ होनी बाकी है. राज्य ने 7 मई को हाईकोर्ट की एक अन्य पीठ को बताया था कि वह एक महीने के भीतर मुकदमा पूरा करने की कोशिश कर रहा है. पीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष के आचरण को देखते हुए, हमें यकीन नहीं है कि मुकदमा वास्तव में कब समाप्त होगा.
मामला 2012 का है, जब जगन्नाथ राय नामक एक टैक्सी चालक ने 25 जनवरी की दोपहर को ढाकुरिया स्टेशन रोड क्रॉसिंग के पास केएमसी के एक वैट में कथित तौर पर एक किशोरी का सिर पाया था. आरोप है कि वो सड़क किनारे एक रेस्टोरेंट में बैठा था, जब उसने दो लोगों को वैट में एक सिंथेटिक बैग डालते देखा. कथित तौर पर बैग से बदबू आने पर उसे शक हुआ और उसने बैग के अंदर झांका.
राय के बयान के आधार पर, उसी दिन लेक पुलिस स्टेशन में अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया था. मामला कोलकाता पुलिस के जासूसी विभाग के होमिसाइड स्क्वाड को सौंप दिया गया था. जांच के दौरान, उस व्यक्ति को 11 फरवरी, 2013 को गिरफ्तार किया गया था.
समानांतर रूप से, एसके मुन्ना नाम का एक व्यक्ति के 24 जनवरी 2012 को दिए गए शिकायत पत्र के आधार पर, जिसमें कहा गया था कि उन्हें पार्क सर्कस रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक प्लास्टिक की थैली में लगभग 9 से 10 साल की एक लड़की का शव मिला था, बल्लीगंज जीआरपीएस द्वारा एक मामला दर्ज किया गया था.
अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि दोनों मृत लड़कियां उस व्यक्ति की दूसरी शादी से हुई बेटियां थीं. जांच अधिकारी के अनुरोध पर, मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीपुर ने दोनों मामलों को मिलाने का निर्देश दिया. पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 और 201 के तहत कथित अपराधों के लिए 6 मई 2013 को आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया था. इसके बाद मामले को परीक्षण और निपटान के लिए अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया.
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि आरोप पत्र में उद्धृत 35 गवाहों में से केवल 28 का साक्ष्य पूरा हो पाया व्यक्ति ने दावा किया कि उसे निराधार और मनगढ़ंत आरोपों के आधार पर मामले में झूठा फंसाया गया है. व्यक्ति ने आगे कहा कि लंबे समय तक हिरासत में रहने से वह सामाजिक रूप से बर्बाद हो गया है और उसके परिवार को बहुत तकलीफ हुई है.
हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया है कि अभियोजन पक्ष, कई अवसर मिलने के बावजूद, अपने साक्ष्य पूरे नहीं कर सका, जिससे याचिकाकर्ता को लगातार जेल में रहना पड़ा, जिससे न्याय का घोर हनन हुआ. हाईकोर्ट ने इससे पहले 2013 में जमानत याचिका को खारिज कर दिया था. निचली अदालत ने भी 21 मार्च को जमानत याचिका खारिज कर दी थी, जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी.