हरियाणा के फरीदाबाद में अमृता हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने बारिश के मौसम में दिमागी संक्रमण के मामले बढ़ने पर चिंता जताई है. डॉक्टरों का कहना है कि तटीय और चावल बेल्ट के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों में दिमागी संक्रमण के बढ़ने की आंशका ज्यादा है. इन क्षेत्रों में उमस, नमी और बढ़ते मच्छरों की वजह से वायरल और इंसेफेलाइटिस की आंशका अधिक है. मच्छरों के लिए ये जगहें प्रजनन के लिए ज्यादा अनुकूल हैं.
ब्रेन इन्फेक्शन का सबसे ज्यादा खतरा बच्चों और बुजुर्गों को है. ब्रेन इन्फेक्शन को ही इंसेफेलाइटिस भी कहते हैं. यह वायरल, फंफूद या परिजीवियों के संक्रमण की वजह से दिमाग में सूजन पैदा कर देता है. ब्रेनट के उतकों में सूजन हो जाता है, जिसके गंभीर नतीजे होते हैं.
दिमागी बुखार की वजह से कई न्यूरोलॉजिकल लक्षण शरीर में दिख सकते हैं. ब्रेन इन्फेक्शन के मामले, विकसित देशों में तुलनात्मक तौर पर कम होते हैं. भारत जैसे दक्षिण एशियाई देश में, दिमागी संक्रमण एक बड़ी चुनौती है.
मच्छरों के लिए सबसे अनुकूल स्थितियां इन्हीं इलाकों में होती हैं. मानसून के मौसम में दिमागी संक्रमण के मामले बढ़ जाते हैं. मच्छर डेंगू और इंसेफेलाइटिस जैसी बीमारियों के वाहक होते हैं.
द लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के हालिया आकंड़े इस ओर इशारा कर रहे हैं कि कर्नाटक और ओडिशा जैसे तटीय इलाके, असम और त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर के राज्यों, बिहार और यूपी जैसे चावल बेल्ट वाले इलाकों में इंसेफेलाइटिस एक स्थानिक बीमारी की तरह बढ़ रहा है.
अमृता हॉस्पिटल, फरीदाबाद में न्यूरोलॉजी और स्ट्रोक मेडिसिन के एचओडी डॉक्टर संजय पांडे ने कहा, 'ब्रेन इंफेक्शन कई प्रकार के हो सकते हैं जैसे वायरल, बैक्टीरियल, ट्यूबरकुलर, फंगल या प्रोटोजोअल. ब्रेन इंफेक्शन के सबसे आम लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, उल्टी, दौरे और परिवर्तित चेतना शामिल हैं.'
डॉ. संजय पांडे के मुताबिक बच्चों और बूढ़े लोगों में इस तरह के संक्रमण होने की वजह, उनकी कमजोर इम्युनिटी है. अगर बच्चे की त्वचा पर चकत्ता दिखे, उनकी चेतना पर असर दिखे, वे बेहोशी जैसी हालत में हों तो तत्काल चिकित्सक को दिखाएं.
डॉ. संजय के मुताबिक मच्छरों के प्रजनन को रोका जाए. कोशिश करें कि मच्छर काटने न पाएं. अगर सही वक्त पर इलाज नहीं मिला तो वायरल इंसेफेलाइटिस, पार्किसनिज्म, डिस्टोनिया और कंपकंपी जैसे रोग दे सकता है.
डॉ. संजय बताते हैं कि भारत में दिमागी संक्रमण का इलाज, संक्रमण के प्रकार और वजहों पर निर्भर करता है. बैक्टीरियल इंफेक्शन का इलाज आमतौर पर एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है, जबकि जापानी इंसेफेलाइटिस और डेंगू जैसे वायरल संक्रमण के लिए एंटीवायरल दवाओं का उपयोग किया जाता है.
डॉ. संजय के मुताबिक ट्यूबरकूलर ब्रेन इंफेक्शन के लिए एंटी-टीबी दवाओं के लंबे कोर्स की जरूरत पड़ती है. फंगल इंफेक्शन का इलाज एंटिफंगल दवाओं से किया जाता है. दौरे-रोधी दवाओं, सूजन को कम करने के लिए कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स और अस्पताल में भर्ती और कड़े निगरानी की जरूरत पड़ती है.
डॉ. संजय बताते हैं कि एडवांस मामलों में गहन इलाज और सर्जरी तक की नौबत आ सकती है. शहरी अस्पतालों में इन्हें लेकर बेहतर इलाज होता है. ब्रेन इंफेक्शन के खिलाफ लड़ाई में, भारत सरकार स्वास्थ्य देखभाल के बुनियादी ढांचे को बढ़ाकर, जरूरी दवाओं की उपलब्धता तय करके और ब्रेन इंफेक्शन के बारे में जागरूकता बढ़ा सकता है. इसके लिए सार्वजनिक अभियानों की जरूरत है.
डॉ. संजय बताते हैं कि स्वास्थ्य कर्मियों की निगरानी में ही इस बीमारी की इलाज किया जाना चाहिए. इसके लक्षणों के बारे में स्वास्थ्य कर्मी बताते हैं, इनकी पहचान करते हैं. भारत में ब्रेन इंफेक्शन के मामलों और प्रभाव को कम करने के लिए जनता, हेल्थ केयर संस्थानों और सरकारों के प्रयास को बढ़ाने की जरूरत है.