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पसमांदा मुस्लिमों को रिझाने की खूब हुई कोशिश फिर भी नहीं मिला वोट, समझिए BJP से कहां हुई चूक

लोकसभा चुनाव 2024 में भाजपा को मिले चौंका देने वाले नतीजों ने ना सिर्फ आम लोगों को बल्कि पूरी पार्टी को अचंभित कर दिया है. इस बार के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने जो रणनीति बनाई तो उससे लगभग सभी आश्वस्त थे कि भाजपा इस बार प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाएगी. इस पहल में बीजेपी की विशेष नज़र पसमांदा मुसलमानों पर रही, जो मुसलमान समुदाय में पिछड़े माने जाते हैं. हालांकि ऐसा हुआ नहीं और बीजेपी को गठबंधन करके अपनी सरकार बनानी पड़ी. 

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Pasmanda Muslim

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के नतीजों से ज्यादा खुश नजर नहीं आ रही है. पार्टी ने करीब डेढ़ सालों से जो व्यापक स्तर पर प्रचार-प्रसार किया उसका बेहतर परिणाम इस राज्य से उसे नहीं मिला है. यही वजह है कि अब पार्टी पूरे प्रदेश में नतीजों की समीक्षा की तैयारी कर रही है. साल 2019 के चुनाव में बीजेपी को यहां से 62 सीटों पर जीत मिली थी. इस बार के चुनाव में ये सीटें घटकर 33 पर आ गई इसलिए पार्टी अब समीक्षा के माध्यम से पता लगाएगी कि आखिर वह वोट हासिल करने में विफल क्यों रही. ऐसे में बीजेपी की एक नजरें पसंमादा मुस्लिम सुमादय पर भी है और वह उन पर भी विचार कर रही है.

चुनाव से पहले भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों को ध्यान में रखकर कई कार्यक्रम शुरू किए. राज्य में सरकार और पार्टी काडर दोनों में इन समुदाय के नेताओं को प्रमुखता दी. यहां तक कि पीएम मोदी भी अपने सार्वजिनक भाषणों में बार-बार इस समुदाय की बात करते दिखें. उन्होंने कई बार इस बात का आरोप लगाया कि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी दोनों ने इस समुदाय को अंधेरे में रखा है. 

कौन हैं पसमांदा मुसलमान?

पसमांदा एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ होता है, पीछे छूटे हुए लोग या नीचे धकेल दिए गए लोग. इस वजह से ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज संगठन का मानना है कि 'पसमांदा' समुदाय के लोग हर धर्म में पाए जाते हैं और उसी तरह मुसलमानों में भी है. पसमांदा मुसलमान उत्तर प्रदेश की मुस्लिम आबादी का लगभग 80 % हिस्सा हैं. मऊ, गाजीपुर, आजमगढ़ और यहां तक की पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में भी काफी हद तक इस समुदाय के लोग रहते हैं. 

दरअसल, जब बीजपी ने उत्तर प्रदेश में दूसरी बार सत्ता हासिल की तो दानिश अंसारी को जगह दी गई. दानिश अंसारी भी पसमांदा मुसलमान हैं. अंसारी वर्तमान में अल्पसंख्यक कल्याण, मुस्लिम वक्फ और हज राज्य मंत्री हैं. इसी के बाद इस बात की चर्चा शुरू हुई कि बीजेपी अब पसमांदा मुसलमानों को रिझाने में जुटी है. फिर मोदी कैबिनेट के बड़े मुस्लिम चेहरे मंत्रिमंडल से गायब हो गए, उन्हें दोबारा राज्यसभा नहीं भेजा गया, जिससे ये बात और पुख्ता हो गई. हालांकि, भाजपा के लिए यह समुदाय एक अहम विषय बन कर रह गया है. 

जमकर दिया मौका

भाजपा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर, जो एक अन्य पसमांदा मुस्लिम हैं, उनको भी विधान परिषद में मनोनीत किया और उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया. पिछले साल के स्थानीय निकाय चुनावों के दौरान, भाजपा ने 300 से अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से लगभग 90% पसमांदा मुसलमान थे.

पसंमादा मुसलमानों और बाकी अल्पसंख्यक समुदाय के बीच फर्क को जानने-समझने के लिए पार्टी ने इस साल की शुरुआत में एक कौम चौपाल जैसी बैठकी भी आयोजित की, जो मुख्य रूप से पसमांदा मुसलमानों पर केंद्रित थी. 

अपने चुनावी भाषणों में पीएम मोदी अक्सर पसमांदा मुसलमानों का जिक्र करते थे. एक रैली में तो उन्होंने दावा कि उन्हें मुस्लिम महिलाओं का आशीर्वाद प्राप्त है. भाजपा का मानना है कि पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनाव में इस समुदाय के लोगों ने उनके वोट दिया था. साथ ही उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस और सपा दोनों ने तुष्टीकरण की राजनीति करके सिर्फ चुनिंदा अल्पसंख्यक नेताओं को ही फायदा पहुंचाया और पसमांदा मुसलमानों की उपेक्षा की.

विपक्ष को भी जमकर घेरा

प्रधानमंत्री मोदी ने 22 अप्रैल को अलीगढ़ में एक रैली में कहा, 'कांग्रेस और समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों ने हमेशा तुष्टीकरण की राजनीति की है लेकिन मुसलमानों के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए कभी कुछ नहीं किया. जब मैं पसमांदा मुसलमानों के बारे में बात करता हूं, तो वे डर जाते हैं, क्योंकि शीर्ष पर बैठे लोगों ने लाभ उठाया और पसमांदा मुसलमानों को ऐसी परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर किया.'

हाल ही में लखनऊ स्थित बीजेपी के पार्टी मुख्यालय में हुई समीक्षा बैठक में प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने कहा, 'हमने नतीजों को स्वीकार कर लिया है और हम जनता के फैसले के आगे नतमस्तक हैं लेकिन एक राजनीतिक संगठन के तौर पर हमने अपने सभी वरिष्ठ कार्यकर्ताओं से लोकसभा सीटवार कैंप करने और जानकारी जुटाने को कहा है. इससे जो जानकारी मिलेगी उसके आधार पर हम आगे बढ़ेंगे. हम उन सभी कारणों को समझने की कोशिश करेंगे, जिसकी वजह से हमें अपेक्षित नतीजे नहीं मिल पाएं.'

पार्टी पसमांदाओं को मनाने में कैसे और क्यों विफल हो गई , इस पर चिंता जताते हुए पार्टी के एक और नेता ने कहा, 'हमें इसके कारणों पर बारिकी से विचार करने की आवश्यकता है. इस पर ओम प्रकाश राजभर विचार करें क्योंकि वह अल्पसंख्यक कल्याण के कैबिनेट मंत्री हैं, उनके बेटे घोसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे. जहां पसंमादा मुसलामानों यानी अंसारी की सबसे बड़ी आबादी है. दानिश अंसारी को वहां कैंप कराया गया था, फिर भी जीत सपा के भूमिहार नेता की हुई.'