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'शिवसेना को छोड़कर अजित पवार के साथ जाने से बीजेपी का हुआ बंटाधार', RSS का दावा

आरएसएस ने अपने मराठी साप्ताहिक विवेक में दावा किया है कि महाराष्ट्र में बीजेपी का जो हाल हुआ है वह अजित पवार की एनसीपी के साथ गठबंधन करने से हुआ है. लेख में कहा गया है कि राज्य में पार्टी के कार्यकर्ताओं में जबरदस्त रोष है. लेख में कहा गया है कि शिवसेना के विपरीत एनसीपी के साथ बीजेपी के गठबंधन पर जनता की प्रतिक्रिया बेहद नकारात्मक थी.

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Edited By: India Daily Live
BJP
Courtesy: Social media

Maharashtra News: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से जुड़े मराठी साप्ताहिक, विवेक ने हाल के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के औसत प्रदर्शन के लिए अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी के साथ पार्टी के गठबंधन को जिम्मेदार ठहराया. साप्ताहिक में दावा किया गया कि एनसीपी के साथ गठबंधन से बीजेपी के समर्थकों में काफी नाराजगी है. विवेक में कहा गया कि बीजेपी के सदस्यों और सहयोगियों ने गठबंधन को अस्वीकार कर दिया, जिसके कारण पार्टी के प्रति जनता की भावना में गिरावट आई और महाराष्ट्र में बीजेपी की सीटों की संख्या 23 से घटकर 9 रह गई.

कार्यकर्ताओं में व्यापक स्तर पर आंतरिक असंतोष

साप्ताहिक में कहा गया है कि राज्य में पार्टी के कार्यकर्ताओं में व्यापक स्तर पर आंतरिक असंतोष है. इसमें सुझाव दिया गया है कि प्रभावी समन्वय और निर्णय लेने में पार्टी कार्यकर्ताओं की भागीदारी ने प्रदेश में बीजेपी के मजबूत प्रदर्शन में योगदान दिया, जहां उसने सभी 29 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी.

यह बहुत छोटा सा अंश

लेख में कहा गया है कि बीजेपी द्वारा एनसीपी के साथ गठबंधन के कारण पार्टी के कार्यकर्ताओं में जो असंतोष दिख रहा है वह तो बहुत छोटा सा अंश है. एनसीपी विधायकों के समर्थन के अजित पवार के दावे को चुनाव आयोग और विधानसभा अध्यक्ष ने सही ठहराया जिसकी वजह से उन्हें डिप्टी सीएम बना दिया गया.

शिवसेना के विपरीत एनसीपी के साथ जाना बीजेपी को पड़ा भारी
लेख में कहा गया है कि शिवसेना के विपरीत एनसीपी के साथ बीजेपी के गठबंधन पर जनता की प्रतिक्रिया बेहद नकारात्मक थी. लेख में एनसीपी के साथ गठबंधन के बाद राजनीतिक बदलावों को लेकर पार्टी के भविष्य पर भी सवाल किया गया है.

लेख में कहा गया है कि एनसीपी के साथ हाथ मिलाने के बाद भावनाएं पूरी तरह से बीजेपी के खिलाफ हो गई हैं. एनसीपी की वजह से राजनीतिक गणित बीजेपी के खिलाफ होने से उसकी भविष्य की योजनाओं पर भी सवाल उठता है.

अपने नेताओं की बजाय दलबदलुओं की दी गई प्राथमिकता

साप्ताहिक में अपने नेताओं को ठीक ठंग से आगे बढ़ाने के बजाय दलबदलुओं को प्राथमिकता देने को लेकर भी बीजेपी पर सवाल किये गए हैं. लेख में उन नेताओं का भी जिक्र किया गया है जिन्होंने बीजेपी में कार्यकर्ता के रूप में शामिल हुए और महत्वपूर्ण पदों पर पहुंचे. इन नामों में  अटल बिहारी वाजपेयी, गोपीनाथ मुंडे, प्रमोद महाजन, नितिन गडकरी और देवेंद्र फडणवीस का नाम शामिल है.

राम मंदिर और आपातकाल जैसे मुद्दे युवा और पढ़ी लिखी जनता को आकर्षित नहीं करते

साप्ताहिक में कहा गया है कि आपातकाल और राम मंदिर के दौरान जो बलिदान दिया गया वह देश के युवा और पढ़ी लिखी जनता को उतनी मजबूती के साथ आकर्षित नहीं करता है, शायद यही वजह है कि ये मुद्दे वोट में तब्दील नहीं हुए. लेख में बीजेपी की मध्य प्रदेश की रणनीति को शानदार बताया गया है जहां पार्टी आपसी सहयोग के साथ आगे बढ़ी और  महत्वपूर्ण फैसलों में कार्यकर्ताओं को महत्व दिया गया.