Jharkhand Assembly Elections: झारखंड में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक पार्टियों ने अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. बीजेपी भी इसमें पीछे नहीं है. चुनावों के मद्देजर राज्य में अपनी पकड़ फिर से मजबूत करने के लिए बीजेपी रणनीति तैयार कर रही है.
झारखंड की सत्ता में वापसी के लिए बीजेपी का मास्टरप्लान
घबराई हुई है JMM
उधर बीजेपी की बढ़त देखकर सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) के हाथ-पांव फूल गए हैं. राज्य की जनता में जेएमएम के खिलाफ असंतोष बढ़ रहा है और जनता में नाराजगी साथ तौर पर देखी जा रही है.
ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बनाने के लिए भाजपा ने 'रायशुमारी' और सर्वे जैसे हथकंडों को चुना है. इसी प्लान के जरिए बीजेपी पार्टी कार्यकर्ताओं को जोड़ रही है. हालांकि भाजपा के लिए यह कोई पहली बार नहीं है लेकिन इस बार इसका दायरा काफी बड़ा है.
रायशुमारी के साथ आगे बढ़ रही बीजेपी
बीजेपी पंचायत स्तर पर हजारों पार्टी कार्यकर्ताओं से परामर्श करते यह सुनिश्चित कर रही है कि उसके द्वारा लिए जा रहे फैसले ठीक हैं या नहीं. पिछले चुनावों में जहां केवल ब्लॉक-स्तर के पदाधिकारियों से राय मांगी जाती थी, इस बार प्रति निर्वाचन क्षेत्र लगभग 500-700 कार्यकर्ताओं से फीडबैक लिया जाएगा.
बीजेपी ने खेला मास्टरस्ट्रोक
कार्यकर्ताओं से रायशुमारी कर बीजेपी पार्टी की आंतरिक एकता और मजबूती को दिखाना चाहती है. इसके अलावा वह अपने कार्यकर्ताओं में यह संदेश पहुंचाना चाहती है कि वह भी पार्टी के लिए उतना ही अहम है. कार्यकर्ताओं के स्तर पर रायशुमारी बीजेपी को ऐसे उम्मीदवारों को मैदान में उतारने में मदद करेगी जिन्हें संगठनात्मक और जमीनी दोनों स्तर पर समर्थन हासिल है.
एनडीए को मजबूत करना है लक्ष्य
लोकसभा चुनावों में पकड़ ढीली होने के बाद अब बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों को महत्व देना शुरू कर दिया है. 2019 के विधानसभा चुनावों में जहां बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा था वहीं इस बार पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (AJSU) और संभवत जनता दल यूनाइटेड (JDU), लोजपा जैसे प्रमुख क्षेत्रीय खिलाड़ियों के साथ गठबंधन कर रही है.
AJSU के साथ बीजेपी का गठबंधन बेहद जरूरी है क्योंकि AJSU का पारंपरिक रूप से कुछ आदिवासी क्षेत्रों में अपना प्रभाव है. AJSU प्रमुख सुदेश महतो को अपने पाले में लाकर बीजेपी अपने खोए हुए आदिवासी वोट को फिर से पाने का प्रयास कर रही है. इसके अलावा बीजेपी की सीटों के बंटवारे को लेकर जेडीयू से बातचीत अंतिम चरण में है.
जनजातीय मुद्दों पर फोकस
बीजेपी के मास्टरप्लान का सबसे अहम तत्व जनजातीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करना है. झारखंड की जनजातीय आबादी ने पिछले चुनाव में बड़े पैमाने पर जेएमएम का समर्थन किया था, बीजेपी इस जनजातीय आबादी को किसी भी तरह से अपने पाले में लाने में लगी हुई है. चंपई सोरेन और गीता कोड़ा जैसे प्रमुख जनजातीय नेताओं को पार्टी में शामिल करना इसी रणनीति का हिस्सा है. भाजपा को उम्मीद है की चंपई जनजातीय बहुल कोल्हान में बीजेपी की खोई हुई जमीन फिर से तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.
जनजातीय समुदाय को अपनी ओर खींचने के लिए बीजेपी जनजातीय पहचान की रक्षा और अवैध अप्रवास से जुड़े उनके मुद्दों को जोर-शोर से उठा रही है. बीजेपी की इस पहल पर जनजातीय मतदाताओं ने जोरदार प्रतिक्रिया व्यक्त की है. अवैध घुसपैठ और जनजातीय पहचान के क्षरण के बारे में पार्टी की बयानबाजी ने मतदाताओं के बीच पकड़ मजबूत की है. भाजपा खुद को जनजातीय हितों की रक्षा के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रही है.
JMM की आंतरिक कलह बीजेपी के लिए अवसर
एक तरफ जहां बीजेपी अपनी योजनाओं को बड़ी सावधानीपूर्वक लागू कर रही हैं वहीं दूसरी तरफ जेएमएम की आंतरिक कलह संगठन को लगातार कमजोर कर रही है. सीएम सोरेन अपनी ही पार्टी के भीतर आंतरिक चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. हेमंत के बेहद करीबी चंपई पहले ही पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. पार्टी के भीतर की कलह मतदाताओं को यह संकेत दे रही है कि पार्टी एकता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है.
सत्ता विरोधी लहर से जूझ रही JMM
इसके अलावा जेएमएम सत्ता विरोधी लहर से भी जूझ रही है. जेएमएम के कार्यकाल में हुए कथित भ्रष्टाचार और नेताओं के अधूरे वादों को लेकर भी जनता में भारी नाराजगी है. बीजेपी भी इस नाराजगी को अवसर में बदलने से नहीं चूक रही है. बीजेपी इस बार के चुनाव को सोरेन शासन पर जनमत संग्रह के रूप में पेश कर रही है.
ऐसे राज्य में जहां आर्थिक संकट और कुप्रबंधन के आरोपों के कारण जनता की भावनाएं तेजी से बदल रही हैं, जेएमएम की चुनावी स्थिति अनिश्चित दिखाई दे रही है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा की रणनीति उसे स्पष्ट बढ़त दिला रही है. रायशुमारी अभियान का विस्तार, जमीना स्तर पर भागीदारी पर ध्यान और एनडीए का मजबूत मोर्चा बनाने की रणनीति इस बात का संकेत है कि भाजपा इस बार झारखंड फतह में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.