गठबंधन का धर्म आसान नहीं है. इस बात को भारतीय जनता पार्टी (BJP) से बेहतर कोई राजनीतिक पार्टी अभी नहीं समझ रही है. वजह ये है कि ये पार्टी सत्तारूढ़ है और सबके निशाने पर यही दल है. इसमें कई फैसले, गठबंधन के साथियों की सहमति के बिना नहीं किया जा सकता है. अगर याद न हो तो साल 2020 चलिए. 24 सितंबर को बीजेपी सरकार, कृषि कानून लेकर आती है. संसद से बिल, पास हो जाते हैं. शिरोमणि अकाली दल को यह नागवार गुजरता है. पार्टी, बीजेपी से अपना समर्थन वापस ले लेती है और एनडीए गठबंधन में टूट पड़ जाती है. किसान सड़कों पर उतर जाते हैं. ऐसा प्रदर्शन चलता है कि 4 साल बाद भी कहीं-न-कहीं किसान अड़े ही रहते हैं. सरकार ने अपने कदम पीछे खींचे थे. पीएम नरेंद्र मोदी, एनडीए के साथियों को परिवार कहते हैं, यह परिवार, अब दबाव बढ़ा रहा है.
सरकार ने एक बार फिर अपने कदम पीछे खींचे हैं. संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) ने 45 पदों पर 17 अगस्त को वैकेंसी निकाली थी. विपक्ष ने कहा कि यह दलित, पिछड़े और आदिवासियों का बीजेपी हक मार रही है, इसलिए, ऐसे पदों पर भर्ती निकाल रही है. विपक्ष का कहना है कि इन पदों पर 13 रोस्टर के नियम का भी पालन नहीं किया जाता है. सबने विरोध किया लेकिन बीजेपी की अपने ही इसके खिलाफ उतर गए. एनडीए के धुर सहयोगी और 'मोदी के हनुमान' कहे जाने वाले चिराग पासवान ने ही इस फैसले पर आलोचना कर दी. उन्होंने कहा कि यह हरगिज लागू नहीं होना चाहिए, ये भर्तियां रद्द होनी चाहिए. इसमें नियमों का ख्याल नहीं रखा गया है.
जिस बीजेपी के पास लोकसभा में प्रचंड बहुमत रहा हो, अब उसके पास सिर्फ 240 सीटें हैं. सरकार चलाने के लिए मोदी सरकार, सहयोगियों पर निर्भर है. बीजेपी के पास 2019 में 300 सीटें, 2014 में प्रचंड बहुमत रहा है लेकिन अब गठबंधन धर्म निभाना पड़ रहा है. सरकार पर गठबंधन का दबाव है. जनता दल यूनाइटेड, लोक जनशक्ति पार्टी और तेलगू देशम पार्टी, तीनों पार्टियां, इससे खुश नहीं हैं. सबने मिलकर वक्फ (संशोधन) विधायक पर चिंता जताई है और इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास भेज दिया है.
केंद्र सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए बिहार और आंध्र प्रदेश पर मेहरबानी दिखाई. बिहार में जेडीयू का शासन है, तेंलगाना में टीडीपी का. विपक्ष ने यहां तक कह दिया कि ये बजट, सरकार बचाओ बजट है. मंगलवार को भी केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय ने जो फैसला लिया है, उसके पीछे गठबंधन के दबाव को ही जिम्मेदार माना जा रहा है. संघ लोक सेवा आयोग को 45 पदों पर नियुक्ति को लेकर निकाली गई भर्तियों को रद्द करना पड़ा है. लेटरल एंट्री पर सहयोगी दलों ने ही केंद्र सरकार को आंखें तरेर दी थीं. अब इस फैसले का क्रेडिट भी ले रही हैं.
JDU के राष्ट्रीय प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा, 'फैसले का स्वागत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारी चिंताओं पर संज्ञान लिया. यह नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले सामाजिक न्या आंदोलन की जीत है. वे फिर से देश में सामाजिक न्याय की ताकतों के चैंपियन बनकर आए हैं.' वहीं लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एके बाजपेयी ने इसे गठबंधन राजनीति की जीत कहा है. उन्होंने कहा, 'हमें खुशी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमारी चिंताओं पर ध्यान दिया और लेटरल एंट्री विज्ञापन को वापस लेने का आदेश दिया.हम इस कदम का विरोध करने वाले पहले व्यक्ति थे और तर्क दिया कि आरक्षण के बिना ऐसा नहीं किया जा सकता. यह गठबंधन राजनीति की जीत है.'
चिराग पासवान तो प्रेस कॉन्फ्रेंस मोड में ही आ गए. पटना में उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, 'मोदी सरकार ने एससी, एसटी और ओबीसी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है. उनका कार्यालय पिछले दो दिनों से इस मामले को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय के संपर्क में है. उन्होंने कहा, 'मैं अपने प्रधानमंत्री को लेटरल एंट्री रद्द करने की मांग करने के लिए धन्यवाद देता हूं. सरकार ने संवेदनशीलता दिखाई है, हमें उम्मीद है कि केंद्र भविष्य में भी ऐसे ही काम करेगा.'
चिराग पासवान ने अनूसूचित जातियों के सब क्लासिफिकेशन में सुप्रीम कोर्ट के फैसले और वक्फ (संशोधन) विधेयक को संसदीय समिति में भेजने के फैसले की भी तारीफ की. यह साफ है कि मोदी सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती विपक्ष के आरोप नहीं हैं, अपने ही हैं, जिनकी मदद से सरकार चल रही है. जेडीयू, एलजेपी और टीडीपी जैसी पार्टियों का दबाव, सरकार के फैसलों पर भारी पड़ रहा है. लेटरल एंट्री हो या वक्फ संशोधन विधेयक, सरकार का विरोध, सहयोगी दल भी वैसे ही कर रहे हैं, चिंता वैसी ही जता रहे हैं, जैसे कि विपक्षी दल. ऐसे में सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये है कि कैसे सहयोगियों के दबाव को सहकर, अगले 5 साल सरकार चलाई जाए.