भड़काऊ भाषण मामले में भाजपा नेता जॉर्ज पर आफत, अदालत ने अग्रिम जमानत की याचिका को किया खारिज

केरल उच्च न्यायालय ने एक टेलीविजन बहस के दौरान दिए गए कथित भड़काऊ बयान के संबंध में शुक्रवार को भाजपा नेता पी सी जॉर्ज द्वारा दायर अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी और कहा कि इससे समाज में गलत संदेश जाएगा. उच्च न्यायालय ने कहा कि ‘राजनेताओं को समाज के लिए आदर्श बनना चाहिए’ और आजकल धर्म, जाति आदि के आधार पर बयान देने की प्रवृत्ति को शुरुआत में ही रोक दिया जाना चाहिए क्योंकि ये संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ है.

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केरल उच्च न्यायालय ने भाजपा नेता पी.सी. जॉर्ज की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज कर दिया है. यह मामला एक टेलीविजन बहस के दौरान दिए गए उनके कथित भड़काऊ बयान से जुड़ा हुआ है.

अदालत ने शुक्रवार को सुनवाई के दौरान कहा कि अगर इस तरह की याचिका को स्वीकार किया जाता है, तो इससे समाज में गलत संदेश जाएगा.

न्यायालय की कड़ी टिप्पणी

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि 'राजनेताओं को समाज के लिए आदर्श बनना चाहिए.' इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि वर्तमान समय में धर्म, जाति और अन्य भेदभावकारी तत्वों के आधार पर बयानबाजी की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, जो कि लोकतांत्रिक मूल्यों और संविधान के खिलाफ है. अदालत ने स्पष्ट किया कि इस तरह की बयानबाजी को शुरुआती चरण में ही रोका जाना चाहिए ताकि समाज में सौहार्द बना रहे.

क्या है मामला?

भाजपा नेता पी.सी. जॉर्ज पर आरोप है कि उन्होंने एक टेलीविजन डिबेट के दौरान विवादित बयान दिया, जो सांप्रदायिक तनाव भड़का सकता था. इस बयान के बाद उनके खिलाफ विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया था, लेकिन अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया.

अदालत का सख्त रुख 

न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि भड़काऊ बयान न केवल सामाजिक ताने-बाने को नुकसान पहुंचाते हैं, बल्कि संविधान की मूल भावना के भी खिलाफ होते हैं. अदालत का कहना था कि इस तरह के मामलों में कानून को सख्ती से पालन किया जाना चाहिए ताकि समाज में नकारात्मक संदेश न जाए.

राजनीतिक गलियारों में हलचल  

अदालत के इस फैसले के बाद राजनीतिक हलकों में हलचल बढ़ गई है. भाजपा की ओर से अभी तक इस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला आगे और तूल पकड़ सकता है. केरल उच्च न्यायालय के इस फैसले से साफ हो गया है कि नफरत और भड़काऊ बयानबाजी को कानूनी संरक्षण नहीं मिलेगा. इस फैसले से राजनेताओं को भी यह संदेश मिल सकता है कि सार्वजनिक मंचों पर दिए गए उनके शब्दों का कानूनी असर हो सकता है.