वन नेशन, वन इलेक्शन पर आया बड़ा अपडेट, JPC की पहली मीटिंग की तारीख आई सामने
वन नेशन, वन इलेक्शन बिल भले ही संसद में पास नहीं हो पाया लेकिन सरकार इसे लगातार आगे बढ़ा रही है. इस बिल को जेपीसी के पास भेजा गया है, जिसके लिए कमेटी गठित हो गई है और 8 जनवरी को पहली बैठक होगी.
One Nation One Election: 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पर 39 सदस्यीय संयुक्त संसदीय समिति (JPC) की पहली बैठक 8 जनवरी को होने वाली है. जो इस बात का संकेत है कि सरकार भारी विरोध के बावजूद इस विवादास्पद प्रस्ताव को आगे बढ़ाने में सक्रिय है. सूत्रों ने बताया कि कानून मंत्रालय के अधिकारी इस विधेयक की प्रमुख विशेषताओं के बारे में पैनल को जानकारी देंगे, जिसमें बताया जाएगा कि इस विधेयक से देश को क्या लाभ होगा.
भाजपा के पीपी चौधरी की अगुआई वाली समिति का उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों को एक साथ कराने और उसके लाभों पर गहन विचार करना है. संसद के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिनों में विधायी प्रक्रिया को गति देने के लिए दो विधेयक, संविधान (129वां संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024, लोकसभा में पेश किए गए.
हालांकि, इसे विपक्षी दलों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा और विधेयकों को मतदान के बाद ही स्वीकार किया गया, जबकि सरकार ने इस विधेयक को जेपीसी को सौंपने की वकालत की थी. गृह मंत्री अमित शाह ने विधेयकों को पेश किए जाने के दौरान अपने संक्षिप्त हस्तक्षेप में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधेयकों को संसदीय समिति को सौंपने के बारे में स्पष्ट रुख अपनाया था. विधेयकों को लोकसभा में 269 मतों के साथ पारित किया गया, जबकि 198 मतों के विरोध में मतदान हुआ.
विपक्ष के निशाने पर वन नेशन, वन इलेक्शन
हालांकि, समर्थन की कमी की वजह से सरकार के सामने इस विधेयक ने चुनौती खड़ी कर दी है, क्योंकि संवैधानिक संशोधन के लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है.
कांग्रेस, डीएमके और अन्य विपक्षी दलों ने संघवाद और भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार पर हमला बताते हुए इन कानूनों की आलोचना की है. उन्होंने व्यापक संवैधानिक संशोधनों और बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की खरीद की आवश्यकता सहित तार्किक चुनौतियों की ओर भी इशारा किया.
जेपीसी के पास 90 दिन का समय
जेपीसी के पास कानून की जांच करने, फीडबैक की समीक्षा करने और सिफारिशें पेश करने के लिए 90 दिन होंगे. एक साथ चुनाव कराने के लिए सरकार का तर्क लगातार चुनावों के वित्तीय और प्रशासनिक बोझ को कम करने पर है. साथ ही इससे शासन में व्यवधानों को कम किया जा सकेगा. लगातार चुनाव प्रचार के बजाय विकास पर सरकारें अधिक फोकस कर सकेंगी.