सुप्रीम कोर्ट ने भीमा कोरेगांव मामले में माओवादी संबंधों के आरोप में गिरफ्तार शोमा सेन (dalit activist shoma sen) को जमानत दे दी है. महाराष्ट्र में हिंसा के पांच महीने बाद 6 जून, 2018 को सेन को यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था. 15 मार्च को एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि सेन की और हिरासत की कोई जरूरत नहीं है. इसके बाद, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने शुक्रवार को उन्हें जमानत दे दी.
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि सेन को जमानत अवधि के दौरान विशेष अदालत को सूचित किए बिना महाराष्ट्र छोड़ने की इजाजत नहीं होगी. इसके अलावा, पीठ ने सेन को चेतावनी दी है कि अगर किसी भी शर्त का उन्होंने उल्लंघन किया तो जमानत रद्द कर दी जाएगी. सेने को अपना पासपोर्ट भी जमा करना होगा.
कौन हैं शोमा सेन?
मुंबई में जन्मी और पली-बढ़ी शोमा कांति दलित महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं. इसके अलावा शोमा नागपुर विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफेसर रह चुकी हैं. मुंबई के एलफिंस्टन कॉलेज से अंग्रेजी साहित्य में मास्टर की डिग्री लेने के बाद उन्होंने नागपुर यूनिवर्सिटी से एमफील और पीएचडी की. शोमा सेन सार्वजनिक रूप से मुख्यधारा के नारीवाद की भी आलोचना करती रही हैं.
शोमा सेन वर्धा विश्वविद्यालय के महिला विभाग के साथ सक्रिय रूप से जुड़ी रही हैं. गिरफ्तारी के समय वह राष्ट्रसंत तुकाडोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की प्रमुख थीं. शोमा ने दलित और आदिवासी महिलाओं के उत्पीड़न को लेकर कई लेख भी लिखे हैं. 1980 के दशक में वह कपड़ा श्रमिकों की हड़ताल के दौरान सक्रिय रहीं.
शोमा सेन से पहले बॉम्बे हाई कोर्ट ने इस मामले में गिरफ्तार वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा (73) को जमानत दे दी थी.गौतम नवलखा को अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था. बाद में उनकी स्वास्थ्य स्थिति के कारण सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें हाउस अरेस्ट में भेज दिया था. भीमा कोरेगांव मामले के अन्य आरोपियों में वर्नोन गोंसाल्वेस और अरुण फेरर को अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी थी. एक्टिविस्ट महेश रावत को सितंबर में बॉम्बे हाई कोर्ट ने जमानत दी थी.
भीमा कोरेगांव लड़ाई की 200वीं वर्षगांठ से संबंधित हिंसा के पीछे एक साजिश के आरोप में 2018 में महाराष्ट्र पुलिस ने मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया था. शोमा सेन, रोना विल्सन, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवरा राव, प्रो. साईबाबा, फादर स्टेन सामी, अरुण फरेरा, वर्नोन गोल्साल्विस, सुरेंद्र गाडलिंग पर यूएपीए का आरोप लगाया गया था.