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यूपी का वो गांव जहां आज तक नहीं हुआ होलिका दहन, शिव के पैर जलने से डरते हैं गांववाले

होलिका दहन न होने के कारण गांव वाले आसपास के गांव में होलिका दहन के लिए जाते हैं. गांव में महाभारत काल का एक शिव मंदिर भी है. यह देश का एकमात्र शिव मंदिर है जिसका मुंह पश्चिम की ओर है.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
Barsi village of Saharanpur Uttar Pradesh where Holika Dahan never happens

आज पूरा देश होली के रंगों में सराबोर है लेकिन उत्तर प्रदेश का एक गांव ऐसा भी है जहां कभी भी होलिका दहन नहीं हुआ. सदियों से चली आ रही यह परंपरा आज भी कायम है. दरअसल, इस गांव के लोग मानते हैं कि गांव में जो प्राचीन मंदिर बना हुआ है वहां भगवान शिव निवास करते हैं और गांव के अंदर घूमते हैं. अगर होलिका दहन होगा तो गांव की जमीन गर्म हो जाएगी और भगवान के पैर जल जाएंगे.

पूर्वजों की परंपरा पर अटूट विश्वास

गांव की पीढ़ियों में यह विश्वास लगातार कायम है जिसके कारण यहां होलिका दहन नहीं होता. ग्राम प्रधान आदेश प्रधान ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने एक अटूट विश्वास के साथ इस परंपरा को कायम रखा है और हम भी उनके नक्शेकदम पर चलकर इसे जारी रखेंगे.

दुर्योधन ने बनवाया था मंदिर

सहारपुर से 50 किमी दूर नानोता क्षेत्र के बरसी गांव में भगवान शिव को समर्पित महाभारतकाल का एक मंदिर है. स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार,  इस मंदिर का निर्माण महाभारत के युद्ध के दौरान दुर्योधन ने रातों-रात करवाया था. जब अगली सुबह पांडवों ने इसे देखा तो भीम ने अपनी गदा से इसके मुख्य द्वार पर प्रहार किया जिससे इसका मुंह पश्चिम की ओर हो गया. यह देश का एकमात्र मंदिर है जिसका मुंह पश्चिम की ओर है.

मंदिर के अंदर प्राकृतिक रूप से प्रकट शिवलिंग भी है जिसकी विशेषकर महाशिवरात्रि के अवसर पर शिवभक्तों द्वारा पूजा की जाती है. ग्रामीणों के बीच मान्यता है कि भगवान शिव अभी भी गांव में विचरण करते हैं और होलिका दहन से भगवान को नुकसान हो सकता है.

आस-पास के गांव में जाते हैं लोग
ऐसे में गांव के लोग होलिका दहन के लिए आसपास के गांव में जाते हैं. गांव का यह शिव मंदिर स्थानीय लोगों के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र है. गांव के निवासी रवि सैनी ने कहा कि यह  परंपरा 5000 सालों से चली आ रही है और यह आने वाली पीढ़ियों तक जारी रहेगी.

वहीं गांव के प्रधान कहते हैं कि भगवान शिव के प्रति हमारी भक्ति अगाध है, इसी आस्था के चलते हमारे पूर्वजों ने होलिका दहन को त्याग दिया था और यह परंपरा हमेशा बनी रहेगी.

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