Badlapur Case: बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार को महाराष्ट्र के ठाणे जिले के बदलापुर में एक स्कूल में बच्चियों के साथ हुए यौन उत्पीड़न मामले का स्वत: संज्ञान लिया. गुरुवार को मामले की सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने पिछले सप्ताह दो नाबालिग बच्चियों के साथ हुए यौन उत्पीड़न के संबंध में कड़ी टिप्पणियां की. हाई कोर्ट ने पूछा कि अगर स्कूल सुरक्षित जगह नहीं हैं... तो 'शिक्षा के अधिकार' के बारे में बात करने का क्या मतलब है?
अदालत ने स्थानीय पुलिस को भी मामला दर्ज करने में विफल रहने के लिए फटकार लगाई. कोर्ट ने कहा कि एक परेशान करने वाली बात है कि कैसे कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में ट्रेनी डॉक्टर के साथ हुई हैवानियत के खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन के बीच पुलिस ने मामला दर्ज करने में देरी की, वो भी तब जब लड़कियों की ओर से शिकायत की गई थी.
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस पृथ्वीराज चव्हाण की पीठ ने आज दोपहर कहा कि ये कैसी स्थिति है... यह बेहद चौंकाने वाला है. पीठ ने पुलिस को भी आड़े हाथों लिया. कोर्ट ने पूछा कि क्या लड़कियों ने स्कूल प्राधिकारियों से शिकायत की थी? तो अदालत को बताया गया कि उन्होंने शिकायत की थी.
राज्य सरकार की ओर से दलील दे रहे महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) बीरेंद्र सराफ से कोर्ट ने पूछा कि शिकायत के बावजूद मामला क्यों नहीं दर्ज किया गया. पोक्सो (यौन अपराधों से बच्चों का सख्त संरक्षण अधिनियम) में अपराध की रिपोर्ट न करने के लिए स्कूल अधिकारियों को भी अभियुक्त बनाने का प्रावधान है.
सराफ ने जवाब दिया कि एसआईटी गठित हो चुकी है. एडवोकेट जनरल के जवाब पर कोर्ट संतुष्ट नहीं हुई और कहा कि लेकिन स्कूल के खिलाफ मामला अब तक दर्ज हो जाना चाहिए था... जिस समय एफआईआर दर्ज हुई थी, उसी समय आपको स्कूल अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लेना चाहिए था.
कोर्ट ने ये भी पूछा कि क्या नाबालिग लड़कियों को शारीरिक और मानसिक आघात से निपटने के लिए परामर्श दिया गया था. हम जो हुआ उसे नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते... हम जानना चाहते हैं कि क्या राज्य सरकार ने पीड़ितों के लिए परामर्श दिया है. कोर्ट ने पुलिस की जांच पर सवाल उठाते हुए पूछा कि बदलापुर पुलिस ने एसआईटी को पूरा रिकॉर्ड क्यों नहीं सौंपा...आप हमसे तथ्य क्यों छिपा रहे हैं?
हाई कोर्ट ने जांच की समय-सीमा के बारे में विवरण मांगा, जिसमें यह भी शामिल था कि विशेष जांच दल या एसआईटी का गठन कब किया गया तथा स्थानीय पुलिस ने सभी दस्तावेज क्यों नहीं सौंपे? दायर एक जनहित याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेकर मामले की सुनवाई की. जनहित याचिका में ये भी पूछा गया कि पहली लड़की के माता-पिता की ओर से दिए गए बयान में उल्लेख किए जाने के बावजूद दूसरी लड़की का नाम एफआईआर में क्यों नहीं दर्ज किया गया?