'गांधी-नेहरू परिवार ने देश पर राज किया है. वो राजा हैं, हम रंक हैं...' ये शब्द अमिताभ बच्चन के मुंह से निकले थे. ये शब्द अहम इसलिए हो जाते हैं क्योंकि एक समय पर गांधी परिवार और बच्चन परिवार की दोस्ती की मिसाल दी जाती थी. इसका सबूत अमिताभ बच्चन और जया बच्चन की शादी में भी मिला जब कुल पांच बारातियों में से एक संजय गांधी थे. राजीव और अमिताभ भी करीबी रहे लेकिन समय के साथ रिश्ते बिगड़ते गए और दोनों परिवार दूर गए. ऐसे में जब बुधवार को संसद में अचानक ही सोनिया गांधी और जया बच्चन की मुलाकात हुई तो तरह-तरह के कयास लगने लगे. चर्चाएं होने लगीं कि क्या ये परिवार फिर से करीबी हो जाएंगे. हालांकि, दोनों परिवारों के रिश्तों की खटास और अमिताभ बच्चन की पीएम मोदी से नजदीकियों को देखें तो यह दूर की कौड़ी ही लगता है.
एक बात यह भी है कि भले ही अमिताभ बच्चन ने कुछ बयान दिए हों, उनको लेकर गांधी परिवार ने कुछ बोला हो लेकिन जया बच्चन इस पर चुप ही रही हैं. इससे पहले साल 2014 में भी सोनिया गांधी और जया बच्चन की मुलाकात संसद में ही हुई थी. तब सोनिया गांधी ने ही आगे बढ़कर जया बच्चन का हालचाल लिया था. इसके बाद जया बच्चन ने अपने करीबी से कहा भी था कि इस तरह अचानक सोनिया का उनसे बात करना, उन्हें इमोशनल कर गया था.
After Rajiv Gandhi’s death, we saw the true colours of Jaya Bachchan and Amitabh Bachchan on Sonia Gandhi ji, now when the wheels are turning, the Bachchans want to get close. Such amazing actors, reel and public, them Bachchans, 🙏 pic.twitter.com/4lGHNLHlXO
— Roahan Mitra (@rohansmitra) July 24, 2024
राजीव गांधी का जन्म साल 1944 में हुआ था. वहीं, अमिताभ भच्चन 1942 में पैदा हुआ. राजीव जहां देश के सबसे रसूखदार परिवार के बड़े बेटे थे. वहीं, अमिताभ बच्चन देश के प्रतिष्ठित कवि हरिवंस राय बच्चन के बड़े बेटे थे. अमिताभ बच्चन साल 1946 में अपना पहले जन्मदिन मना रहे थे. इंदिरा गांधी इलाहाबाद में अपने गोद में राजीव को लेकर अमिताभ की बर्थडे पार्टी में पहुंची थीं. परिवारों की दोस्ती तो पहले से थी, इन बच्चों की दोस्ती भी आगे बढ़ गई. समय के साथ अमिताभ बच्चन की दोस्ती राजीव से और संजय गांधी की दोस्ती अजिताभ बच्चन से हो गई.
बच्चे पढ़ने के लिए इलाहाबाद और दिल्ली से दूर भेजे गए. बच्चन बंधु नैनीताल के शेरवुड स्कूल गए तो गांधी ब्रदर्स का एडमिशन देहरादून के दून स्कूल भेजे गए. छुट्टियों में इनकी मुलाकातों ने दोस्ती को और मजबूत किया. ये चारों ही छुट्टियों के समय 'तीन मूर्ति भवन' यानी पंडित नेहरू के आवास पर जमकर धमाचौकड़ी मचाते थे. स्कूल से निकलकर राजीव इंग्लैंड गए तो अमिताभ दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ने लगे. हालांकि, दोस्ती बरकरार रही और चिट्ठियों से ये दोस्त आपस में जुड़े रहे. इसके बारे में तो इंदिरा गांधी ने तेजी बच्चन से कहा था, 'राजीव मुझे चिट्ठी लिखे न लिखे लेकिन अमिताभ के लिए लिखना नहीं भूलता.'
राजीव-अमिताभ की दोस्ती की मजबूती ऐसी थी कि जब सोनिया पहली बार भारत आईं तो राजीव ने अमिताभ के घर पर ही ठहरने का इंतजाम किया. राजीव ने तेजी बच्चन को तैयार किया कि वह इंदिरा गांधी को मनाएं और राजीव-सोनिया की शादी के लिए उन्हें राजी करें. इसमें समय तो लगा लेकिन इंदिरा गांधी इस पर राजी हो गईं. शादी भी बच्चन परिवार के घर में ही हुई और सोनिया गांधी का कन्यादान भी हरिवंशराय बच्चन और तेजी ने ही किया. सोनिया के भाई की भूमिका भी अमिताभ ने ही निभाई. कहा जाता है कि सोनिया ने अमिताभ को अपना भाई बनाने के लिए राखी भी बांधी थी.
कहा जाता है कि राजनीति सबके लिए अच्छी नहीं होती. यही राजनीति शायद इस दोस्ती पर भी भारी पड़ गई. बॉलीवुड में अपना सिक्का जमा चुके अमिताभ बच्चन 80 के दशक में सुपरस्टार बन चुके थे. उस समय बॉलीवुड के सितारों को राजनीति में लाया जा रहा था. गांधी परिवार के दोस्त अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद सीट से चुनाव लड़ाया गया. वह बंपर वोटों से चुनाव भी जीते. हालांकि, कुछ वजहें ऐसी रहीं कि अमिताभ बच्चन ने 3 साल में ही इस्तीफा दे दिया और राजनीति से भी विदाई ले ली. राजीव गांधी को यह बात बहुत बुरी लगी.
इस दोस्ती का काल बना बोफोर्स घोटाला. साल 1986 में भारत ने 400 बोफोर्स तोप खरीदने का सौदा स्वीडन से किया था. इस समझौते की कुल कीमत एक अरब 30 करोड़ डॉलर थी.आरोप लगे कि इस मामले में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत ली गई. राजीव गांधी के साथ-साथ इसमें अमिताभ बच्चन का नाम भी आया. कहा जाता है कि इसी से नाराज होकर अमिताभ बच्चन ने इस्तीफा दिया और धीरे-धीरे गांधी परिवार से भी दूर होते गए. कहा जाता है कि 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद तक भी कुछ हद तक संबंध थे लेकिन 1996 के बाद ये रिश्ते हमेशा के लिए खत्म जैसे हो गए.
कहा जाता है कि अमिताभ बच्चन का मन राजनीति से उचट गया था. हालांकि, इसी बीच एक और नेता की एंट्री होती है. सपा के अमर सिंह बच्चन परिवार के करीबी बनते हैं और अमिताभ बच्चन की मदद करते हैं ताकि वह अपनी कंपनी एबीसीएल के घाटे से उबर सकें. इसके बाद जया बच्चन राजनीति में आती हैं सपा उन्हें राज्यसभा भेजती है. सपा तब से लगातार उन्हें संसद भेजती रही है. हालांकि, अमिताभ बच्चन दोबारा कभी राजनीति में नहीं उतरे. हां, अब वह गाहे-बगाहे मोदी सरकार के साथ जरूर खड़े दिख जाते हैं.
साल 2004 में जया बच्चन ने सपा की कई रैलियों में कहा, 'जो लोग मेरे पति को राजनीति में लाए, वे उस समय उनके साथ खड़े नहीं हुए जब वह मुश्किल दौर में थे.' इसके दो साल बाद जया बच्चन की सांसदी खारिज कर दी गई तब भी सोनिया गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस पर ही सवाल उठे. हालांकि, समय चलता रहा और ये दोनों परिवार दूर ही रहे. अब तो राहुल गांधी नाम लेकर बच्चन परिवार पर हमले बोल देते हैं. राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के बाद राहुल गांधी ने कहा था, 'क्या आपने राम मंदिर का प्राण प्रतिष्ठा समारोह देखा? क्या वहां कोई ओबीसी चेहरा था? वहां अमिताभ बच्चन, ऐश्वर्य राय और नरेंद्र मोदी थे.'
इस तरह की बयानबाजियों के बाद सोनिया और जया बच्चन की इस मुलाकात ने रिश्तों को थोड़ी राहत जरूर दी है. हालांकि, इतिहास को देखें तो यह साफ लग रहा है कि गांधी और बच्चन परिवार का पैचअप अब मुश्किल है.