आदित्य कुमार/ नोएडा: भगवान राम और सीता माता के विवाह (Ram vivah) को आदर्श विवाह माना जाता है. सीता-राम के स्वयंवर को आदर्श विवाह का उदाहरण दिया जाता है. लेकिन क्या आपको पता है भगवान राम (Bhagwan ram seeta) और माता सीता के विवाह में छल हुआ था. उनका स्वयंवर नहीं हुआ था. ऐसा मैं नहीं देश के जाने माने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के प्रोफेसर ने शोध से साबित किया है. आखिर क्या है पूरा मामला? भगवान राम और माता सीता की शादी को लेकर क्या है सच और क्या है झूठ हम आपको बताते हैं.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर मलखान सिंह का राम चरितमानस पर शोध हैं, वो बताते हैं कि स्वयंवर का अर्थ क्या होता है? ये सब जानते हैं और स्वयंवर के नाम से भी यह साफ होता है कि स्वयं द्वारा वर को चुनना लेकिन माता सीता का स्वयंवर नहीं हुआ था. आप पूछेंगे कि ऐसा कैसे हो सकता है? रामचरितमानस (Tulsidas Ramcharit manas) और वाल्मीकि रामायण में भी यही लिखा है. भारत के जनमानस में भी यही है.
मलखान सिंह के अनुसार राम और सीता की शादी में एक शर्त थी. जो शिव के धनुष को उठा कर उसपर प्रत्यंचा चढ़ा देगा सीता की शादी उस से सम्पन्न की जाएगी. तो ये स्वयंवर कहां हुआ? धनुष कोई भी उठा सकता था, जो धनुष उठा सकता था वो प्रत्यंचा भी चढ़ा सकता था, वही सीता से विवाह कर सकता था, भगवान राम ने धनुष उठाया और प्रत्यंचा चढ़ाया तो विवाह भगवान राम से हुई.
मलखान सिंह बताते हैं कि ये तो सब जानते थे कि शिव का धनुष उठाने और प्रत्यंचा चढ़ाने वाले के साथ ही माता सीता का विवाह किया जाएगा. यानी जो समर्थवान होगा या ताकतवर होगा सीता माता उन्ही की होगी. राम भगवान भी यह जानते थे. लेकिन यहां पर भगवान राम के मर्यादा पुरुषोत्तम होने के सबूत मिलते हैं. धनुष उठाने और प्रत्यंचा चढ़ाने से पहले राम ने सीता से भी यह जानना चाहा कि क्या मैं सीता को पसंद हूँ?
मलखान सिंह बताते हैं कि जैसे ही भगवान ने धनुष उठाया तो सभा में उपस्थित लोग आश्चर्य में पड़ गए सब सभा तालियों से गूंज उठा, लेकिन भगवान राम ने प्रत्यंचा नहीं चढ़ाया. उससे पहले भगवान राम ने सीता की तरफ देखा और उनकी इक्षा जननी चाही. इतने में माता सीता यह जान गई कि राम क्या जानना चाहते हैं. माता सीता ने अपने सखियों को हाँ का इशारा किया. और सखियों ने राम को यह इशारों में जानकारी दी कि सीता की भी हामी है.
मलखान सिंह बताते हैं कि भगवान राम को जब सीता की सखियों ने जानकारी दी उसके बाद ही भगवान ने प्रत्यंचा चढ़ाया. तुलसीदास अपने मानस में उस दृश्य को ऐसे वर्णन करते हैं. "लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें। काहुं न लखा देख सबु ठाढ़ें । तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा ।।"