Ayodhya ke ram Taught honesty duty dignity lessons but what did Ayodhya get Ram: अयोध्या के राजा दशरथ के बड़े पुत्र राम ने दुनिया को ईमानदारी, त्याग, प्यार, मोह, मर्यादा, शासन के तरीके, संयम, शांति, समाजिक समानता... जैसे कई गुण सिखाए. उर्दू के मशहूर शायर ने तो उन्हें इमाम-ए-हिंद की संज्ञा दी, तो पुराणों में उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया. अपने खास गुणों के कारण ही भगवान राम रावण को परास्त कर पाए. लेकिन जब वे अयोध्या लौटे तो उन्हें सिवाए तिरस्कार के कुछ नहीं मिला. चौंकिए मत... तिरस्कार वाली कहानियों के बारे में जानने से पहले आपको ये बताते हैं कि आखिर भगवान राम ने दुनिया को क्या-क्या दिया यानी उनके कौन-कौन से गुण हैं, जिनसे सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए.
कहा जाता है कि अगर किसी व्यक्ति में ज्ञान, बल, धन, यश, सौंदर्य और त्याग समाहित हो तो फिर वो साधारण पुरुष नहीं बल्कि भगवान होता है. कहा ये भी जाता है कि अगर इनमें से पहले पांच गुण किसी में हो तो वो अहंकारी हो जाता है. लेकिन अयोध्या के राम में पहले के पांचों गुण थे, फिर भी वे अहंकारी नहीं थे, क्योंकि उनमें छठा गुण भी था, जो त्याग है. माना जाता है कि इन सभी गुणों वाले व्यक्ति का हर काम शिक्षा से भरा होता है. ऐसे में भगवान राम की इन गुणों पर एक नजर डालना जरूरी है.
अयोध्या के राम असाधारण थे, उन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. इस लिहाज से देखा जाए तो उन्हें दैविय शक्तियां प्राप्त थी. वे चाहते तो वनवास से लेकर रावण के पराजय और माता सीता के परित्याग से लेकर जान से भी प्यारे भाई लक्ष्मण को दंड देने से पहले सबकुछ ठीक कर देते, लेकिन उन्हें एक आदर्श स्थापित करना था. इसलिए पिता की आज्ञा का पालन करते हुए न सिर्फ वे 14 साल जंगल में पत्नी और भाई के साथ भटकते रहे, बल्कि इस बीच कई लोगों का कल्याण किया. चाहे वो केवट हों, शबरी हों, विभिषण हो, सुग्रीव हो या कोई और... इन सभी का भला उन्होंने एक आम इंसान के रूप में की. ऐसा आदर्श स्थापित किया कि आम इंसान के रूप में राम... भगवान बन गए.
माता सीता के हरण के बाद जब भगवान राम को श्रीलंका जाना था, तब उनके पास न तो साधन था, न ही संसाधन. इस कमी के बावजूद उन्होंने अपने आसपास के लोगों से पहले मित्रता की, उन्हें भरोसे में लिया, फिर रावण जैसे बलशाली राजा से लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया. बात श्रीरामेश्वरम से लंका तक समुद्र पर पुल बनाने की हो या फिर रावण के सेना से टक्कर लेने की या फिर माता सीता के बारे में जानकारी जुटाने की. सबकुछ भगवान राम ने अपने साथियों को प्रोत्साहित कर पूरा किया.
भगवान राम अयोध्या के राजकुमार थे. राजा दशरथ के बाद उनकी ताजपोशी की तैयारी भी हो गई थी, लेकिन समय का पहिए ऐसा घूमा कि उन्हें राजकुमार होते हुए भी सामान्य वस्त्रों में जंगल-जंगल भटकना पड़ा. राज परिवार से होते हुए भी वनवास के दौरान उन्होंने केवट को गले लगाया, शबरी के जूठे बेर खाए. उनके इस काम से दुनिया में समानता का संदेश गया.
कहा जाता है कि भगवान राम ने 14 साल के वनवास से अधिकतर समय चित्रकूट में गुजारा. लेकिन जब उन्हें ये आभास होने लगा कि आसपास के लोगों को ये मालूम होने लगा है कि वे राजकुमार हैं, तो उन्होंने पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ आगे बढ़ना उचित समझा. भगवान राम के इस व्यवहार से आज के सोशल मीडिया के भरोसे जीने वाले लोगों को सीख लेनी चाहिए कि कैसे उन्होंने बिना अपनी पहचान बताए, अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहे.
जब भगवान राम के राज्याभिषेक की तैयारी हो रही थी, तब उनकी छोटी मां (भरत की मां कैकई) ने राजा दशरथ से अपने बेटे भरत के लिए राजपाट मांग लिया. जब इसकी जानकारी राजकुमार राम को हुई, तो उन्होंने खुशी-खुशी छोटे भाई के लिए राजपाट का त्याग कर दिया. ऐसे में राजा राम से मिला ये संदेश आज के युग में और जरूरी हो जाता है.
सोशल मीडिया के इस कलयुग में बच्चे भाई-बहन, टीचर, रिश्तेदार की बात तो छोड़िए माता पिता की ही बात नहीं मानते लेकिन सतयुग के राजा राम ने बिना सोच संकोच के अपने पिता राजा दशरथ के उस आज्ञा का पालन किया, जिसमें उन्हें 14 साल वनवास के लिए भेजा जा रहा था.
भगवान राम के राज्याभिषेक की तैयारी जब चल रही थी, तब उन्हें राजपाट मिलने की कोई खुशी नहीं थी. कुछ क्षणों के बाद ही जब माता कैकई ने भगवान राम से सबकुछ ले लिया और वनवास का आदेश दिया, तब भी अयोध्या के राम मुस्कुराते रहे.
कहा जाता है कि माता सीता के अपहरण के बाद रावण उदास बैठा था. तब कुंभकर्ण ने पूछा- हे लंकापति... क्या बात है, उदास क्यों हैं? राणव ने कहा- कितना कुछ कर लिया, लेकिन सीता मुझे अपनाने को तैयार नहीं. इस पर कुंभकर्ण ने कहा कि आप तो हर विद्या में निपुण हैं, राम का रूप लेकर सीता के पास चले जाइए. तब रावण ने कहा- हे कुंभकर्ण... मैंने ऐसा किया था लेकिन राम का रूप धारण करने के बाद पराई स्त्रियों में मुझे मां और बहन की छवि दिखती है. यानी भगवान राम का चरित्र ऐसा था कि उनका रूप धरने से उनके जैसे गुण आ जाते थे.
अयोध्या के राम के पास भगवान वाले सारे गुण थे, इसके बावजूद उन्होंने चाहे मित्र हो या दुश्मन... हर किसी से सरल और विनम्र व्यवहार रखा. कहा जाता है कि जब रावण आखिरी सांस गिन रहा था, तब भगवान राम ने लक्ष्मण से कहा था कि तुम्हें लंकापति रावण से ज्ञान की बातें सीखनी चाहिए.
भगवान राम के राज्याभिषेक की तैयारी से लेकर उनके महानिर्वाण तक अयोध्या ने उन्हें कुछ नहीं दिया. यहां तक कि उनके निर्वाण के बाद भी जब अयोध्या में मंदिर बना तो उसे तोड़ दिया गया. मंदिर बनने और उसे तोड़ने के बाद विवादित ढांचा खड़ा किया, जहां अब करीब 500 साल बाद लंबे संघर्ष के बाद भव्य राम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है. ये तो वर्तमान की बात है, लेकिन जब अतीत की बात आएगी, तब इस बात का जिक्र होगा कि अयोध्या के जिस राम ने दुनिया को जीवन जीने का तरीका सिखाया, उस राम को अयोध्या से तिरस्कार से अलावा कुछ नहीं मिला...