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Ayodhya Ke Ram: 3 दोस्तों ने बाबरी मस्जिद में राम मूर्ति रखने की बनाई थी योजना, एक राजा दूसरा महंत तो तीसरा था सरकारी अफसर

Ayodhya Ke Ram: ये कहानी है उन 3 दोस्तों की जिन्होंने बाबरी मस्जिद के श्रीराम की मूर्ति रखवाई थी और पूरी योजना बनाई थी. 22 जनवरी को रातों-रात मूर्ति रखी जाती है और 23 जनवरी पूरी अयोध्या में 'भये प्रगट कृपाला दीन दयाला' की गूंज सुनाई देने लगती है. आइए विस्तार से इस कहानी को शुरू करते हैं.

Ayodhya KE Ram: पूरा देश राममय हो गया है ये कहना गलत नहीं होगा. देशवासियों को 22 जनवरी का बेसब्री से इंतजार है. चारों ओर प्रभु श्रीराम की चर्चा हो रही है. इंटरनेट पर प्रभु श्रीराम से जुड़ी कहानियां तैर रही हैं. अपने आराध्य प्रभु श्रीराम के दर्शन के लिए अयोध्या पूरी तरह से तैयार है. देश-विदेश के अलग-अलग हिस्सों से लोग अयोध्या नगरी पहुंच रहे हैं. लोग अपनी कहानियों के साथ राम की नगरी में प्रवेश कर रहे हैं. बात कहानियों की हो रही है तो आज हम आपको प्रभु श्रीराम से जुड़ी ऐसी कहानी बताने जा रहे हैं जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं. ये कहानी है उन 3 दोस्तों की जिन्होंने बाबरी मस्जिद में श्रीराम की मूर्ति रखने की पूरी योजना बनाई थी. 22 जनवरी को रातों-रात मूर्ति रखी जाती है और 23 जनवरी को पूरी अयोध्या में 'भये प्रगट कृपाला दीन दयाला' की गूंज सुनाई देने लगती है. आइए विस्तार से इस कहानी को जानते हैं.     

विचार बना हकीकत

भारतीय राजनीति को एक नई दिशा और दशा देने में राम मंदिर की अहम भूमिका रही है. पहले राम मंदिर एक विचार मात्र था और आज हकीकत बन गया है. इस विचार को हकीकत बनने में वर्षों लग गए. किसी को राम मंदिर के लिए कुर्बानी देनी पड़ी तो किसी ने कुर्बानी ली. नेताओं ने अपनी राजनीति चमकाने के लिए अपने-अपने हिसाब से राम के नारे और राम मंदिर का इस्तेमाल किया. खैर हम अपनी धारा में लौटते हैं और उन तीन दोस्तों की बात करते हैं जिन्होंने राम मंदिर बनाने की कल्पना की और उसे एक नया मोड़ दी.

एक महाराजा, दूसरा संत और तीसरा सरकारी अफसर

इन तीनों दोस्तों में थे एक दोस्त महाराजा, दूसरा महंत तो तीसरा सरकारी अफसरा था. पहले का नाम बलरामपुर रियासत के महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह दूसरे का नाम महंत दिग्विजयनाथ और तीसरे का नाम केके नायर था. इन्हीं तीनों की दिमागी उपज ने बाबरी मस्जिद में प्रभु श्रीराम की मूर्ति रखवाने का काम किया था. सिलसिलेवार तरीके से तीनों ने इसके लिए योजना भी बनाई. तीनों ही हिंदुत्ववादी सोच रखते थे और तीनों लॉन टेनिस खेलना बहुत पसंद करते थे. इसी कारण तीनों की दोस्ती हुई.

तीन दोस्तों में सबसे छोटे बलरामपुर रियासत के महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह थे. उनका जन्म 1 जनवरी 1914 को हुआ था. उन्होंने अजमेर के मेयो प्रिंस कॉलेज से उच्च शिक्षा हासिल की. 1935 में उन्होंने अपनी पढ़ाई खत्म की. वहीं, उमर के मामले में सबसे बड़े महंत दिग्विजयनाथ थे. जबकि बीच वाले केके नायर भारतीय सिविल सेवा के अधिकारी थी. उनका जन्म 11 सितंबर 1907 को केरल के अलेप्पी में हुआ था. 1946 में वो अधिकारी के रूप में गोंडा पहुंचे थे.

गोंडा में ही केके नायर और महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह की मुलाकात हुआ. और ये मुलाकात टेनिस प्रेम की वजह से दोस्ती में तब्दील हो गई थी. 1947 में केके नायर का गोंडा से ट्रांसफर हो गया लेकिन महाराजा के साथ उनकी दोस्ती कायम रही. जबकि महंत दिग्विजय दोनों से उम्र में बड़े और एक शांत स्वभाव के कूटनीति में माहिर और प्रतिष्टित व्यक्ति थे. नायर और महाराजा उनका बड़ा सम्मान किया करते थे.

यज्ञ में बनी योजना

महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह ने साल 1947 में बलरामपुर में एक बड़ा भव्य यज्ञ कराया था. इस यज्ञ में बड़े-बड़े विद्वान पंडित शामिल हुए थे. महंत दिग्विजय और करपात्री महाराज भी इस यज्ञ में शामिल हुए थे. करपात्री महाराज ने इसी यज्ञ में अपनी राम मंदिर की इच्छा को जाहिर किया था. यज्ञ में बड़े पंडित, धर्मगुरुओं के अलावा महाराजा के दोस्त केके नायर भी शामिल थे. यहीं पर उनकी दोस्ती महंत दिग्विजय के साथ हुई. इस यज्ञ में तीनों ने अयोध्या में श्रीराम मंदिर को लेकर योजना बनाई थी.

हिंदू महासभा ने 1991 के अपने साप्ताहिक लेख हिन्दू सभा वार्ता में एक लेख छापा था. इस लेख में महंत दिग्विजय नाथ, केके नायर और करपात्री महाराज के बीच हुई चर्चा का वर्णन किया गया था. लेख में बताया गया था कि यज्ञ के आखिरी दिन महंत दिग्विजय नाथ ने हिंदुओं के धार्मिक स्थानों को मुक्त कराने पर विस्तार से चर्चा की थी. उनके विचारों से केके नायर और महाराजा पूर्णत: सहमत थे.

लेख में बताया गया था कि अगले दिन जब चर्चा हुई तो महंत दिग्विजय नाथ ने अयोध्या में राम जन्मभूमि को वापस पाने की रणनीति सभी के सामने रखी. सिर्फ अयोध्या ही नहीं इस चर्चा में वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर, मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि के बारे में भी चर्चा हुई थी. महंत द्वारा रखी गई रणनीति को हकीकत में बदलने के लिए केके नायर ने हामी भरते हुए कहा था कि वह इस काम को पूरा करने के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर देंगे. यहीं से शुरू होती अयोध्या के राम जन्म भूमि की असली कहानी.

फैजाबाद के जिला अधिकारी बने केके नायर

कहानी आगे बढ़ती है. 1947 में बलरामपुर रियासत के महाराजा पाटेश्वरी प्रसाद सिंह के यज्ञ में जो बातें हुई थी धीरे-धीरे उन बातों को अमली जामा पहनाया जाने लगा था. देखते -देखते 2 साल बीत गए. और केके नायर 1 जून 1949 को फैजाबाद (अब अयोध्या) के जिला अधिकारी बन कर पहुंचे. अयोध्या (तब फैजाबाद) के जिला अधिकारी का पद भार संभालते ही केके नायर ने 2 साल पहले बनाई योजना को हकीकत में बदलने के लिए काम शुरू कर दिया. फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट जिनका नाम गुरु दत्त था वो केके नायर के बहुत बड़े फैन थे. राजपूत जाति से संबंध रखने वाले गुरु दत्त हिंदुत्व विचारधारा के थे. वो सोचते थे कि हिंदू धर्म का अस्तित्व खतरे में है.

चबूतरे पर राम मंदिर बनाने की योजना

जिला अधिकारी केके नायर और सिटी मजिस्ट्रेट गुरुदत्त ने बाबरी मस्जिद परिसर में बने राम चबूतरे पर राम मंदिर बनाने के स्थानीय लोगों के अनुरोध को उत्तर प्रदेश सरकार को भेजा.  

उत्तर प्रदेश सरकार के तत्कालीन उप सचिव केहर सिंह ने फैजाबाद जिला अधिकारी को एक चिट्ठी लिखी. चिट्ठी में लिखा था कि क्या जिस भूमि पर मंदिर बनाने की बात कही जा रही है वह जमीन नगर पालिका की है? इसके साथ ही उन्होंने केके नायर को उस जमीन की जांच करने को भी कहा था.

केके नायर ने अपने सहायक अधिकारी गुरु दत्त सिंह को घटनास्थल पर जाकर रिपोर्ट देने को कहा. गुरु दत्त 10 अक्टूबर 1949 को केके नायर को रिपोर्ट भेजते हैं. उस रिपोर्ट में गुरु दत्त राम मंदिर बनाने की सिफारिश करते हुए लिखते हैं कि उन्होंने मौके पर जाकर उस जमीन का निरीक्षण किया है जहां मंदिर बनना प्रस्तावित है. मंदिर और मस्जिद दोनों अगल-बगल स्थिति हैं. हिंदू और मुस्लिम यहां आकर अपने अपने धर्म के अनुसार पूजा-पाठ और धार्मिक समारोह करते हैं. हिंदू समाज ने जिस छोटे से मंदिर को बड़े में तब्दील करने का भी आवेदन दिया उसे बनाने में कोई अड़चन नहीं दिख रही है. ऐसे में राम चबूतरे पर भव्य विशाल मंदिर बनाने की अनुमति दी जा सकती है. जहां मंदिर बनना है वह जमीनी सरकारी है.

असफल रही योजना

चिट्ठियों को खेल चलता रहा. लेकिन केके नायर और गुरु दत्त सिंह को अपनी योजना में सफल नहीं हो पाए. अब सूबे के दोनों अधिकारी दूसरे रास्ते पर चल पड़ते हैं. हिंदू महासभा फैजाबाद इकाई के प्रमुख लेफ्टिनेंट गोपाल सिंह विशारद की जिले के दोनों अधिकारियों नायर और दत्त से अच्छे संबंध स्थापित हो चुके थे. गोपाल सिंह, महंत दिग्विजय नाथ के बहुत ही खास आदमी थे. दूसरे ओर महंत दिग्विजय सिंह, केके नायर के बहुत अच्छे दोस्त थे.

कहानी आगे बढ़ती और  हिंदू महासभा फैजाबाद इकाई के प्रमुख लेफ्टिनेंट गोपाल सिंह विशारद योजना बनाते हैं कि बाबरी मस्जिद के  मुख्य गुंबद के नीचे राम मूर्ति स्थापित की जाएगी.

योजना के अनुरूप 22 दिसंबर 1949 की रात अयोध्या की बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के नीचे राम लला की मूर्ति रख दी गई. मूर्ति को अभिराम दास ने स्थापित किया था. उनके चचेरे भाई अवध किशोर झा की मानें तो 22 दिसंबर की रात अभिराम दास के आसपास तीन-चार साधू थे और उनसे थोड़ी दूर पर केके नायर खड़े थे. 23 दिसंबर की सुबह अयोध्या की बाबरी मस्जिद के अंदर दीपक जल रहा था.

.....और गूंज उठा... 'भये प्रगट कृपाला दीन दयाला' का नारा

22 दिसंबर की रात अयोध्या की बाबरी मस्जिद के मेन गुंबद के नीचे प्रभु श्रीराम की मूर्ति स्थापित कर दी गई. 23 दिसंबर की सुबह ही पूरी अयोध्या में 'भये प्रगट कृपाला दीन दयाला'  गाने से गूंज उठी. पूरे जिले में हल्ला मच गया कि बाबरी मस्जिद में प्रभु श्रीराम ने दर्शन दिए हैं. उसके बाद की कहानी चलते....चलते वर्तमान में पहुंचती  है. अब वर्तमान में 22 जनवरी को प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होना है.

केके नायर और उनकी पत्नी बनीं थी सांसद

कहानी खत्म करें उससे पहले ये बताते चलें कि केके नायर ने 1952 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. 1957 में उन्होंने अपनी पत्नी शकुंतला नायर को चुनावी मैदान में उतारा. उनकी पत्नी जीतकर सांसद बन गई. वहीं, 1967 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनसंघ ने केके नायर को बहराइच तो उनकी पत्नी शकुन्तला को कैसरगंज सीट से चुनावी मैदान में उतारा. दोनों ने बड़े अंतर से अपने प्रतिद्वंदियों को हराते हुए विजय हासिल की.

तो ये थी अयोध्या के बाबरी मस्जिद में राम मूर्ति के स्थापित होने की कहानी. उम्मीद है कि ये कहानी आपको पसंद आई होगी.