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India Daily

क्या 'हनुमान' के इशारे पर 'कृष्ण' ने राम मंदिर का ताला खोलने का दिया था आदेश? जानें बाबरी विध्वंस का 'वानर' कनेक्शन

जज ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि फैसला सुनाने के बाद जब वे जिलाधिकारी और एसएसपी के साथ अपने सरकारी आवास पर पहुंचे, तो कोर्ट परिसर में बैठा वानर, उनके घर के बरामदे में बैठा मिला. बाद में उन्होंने वानर को हनुमान भगवान समझकर प्रणाम किया. 

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Edited By: Om Pratap
Ayodhya ke Ram janma bhumi babri masjid case langoor connection

हाइलाइट्स

  • मंदिर का ताला खोलने के लिए अयोध्या के वकील उमेश चंद्र पांडे ने दायर की थी याचिका
  • जज कृष्ण मोहन पांडे ने एक दिन में ही सुनवाई कर दिया था ताला खोलने का आदेश

Ayodhya ke Ram janma bhumi babri masjid case langoor connection: अयोध्या में भव्य राम मंदिर का 22 जनवरी को उद्घाटन होना है. मंदिर के उद्घाटन से पहले 'राम मंदिर आंदोलन' को लेकर कई कहानियां सामने आ चुकीं हैं. इनमें से एक कहानी का वानर कनेक्शन है, जिसकी चर्चा होती है. दरअसल, 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद (अब अयोध्या) जिला कोर्ट के जज कृष्णमोहन पांडे ने राम मंदिर का ताला खुलावाया था. उस दौरान कोर्ट परिसर में एक वानर (लंगूर) बैठा था, जो फैसले के सुनाए जाने के पहले कोर्ट पहुंचा था और फैसला सुनाए जाने के बाद ही कोर्ट परिसर से वापस गया. फैसला सुनाने वाले जज कृष्णमोहन पांडे ने अपनी आत्मकथा 'अंतरआत्मा की आवाज' लिखी, जो 1991 में प्रकाशित भी हुई. इस किताब में उन्होंने पूरी घटना का जिक्र भी किया है.

जज की आत्मकथा में लिखी गई कहानी से पहले कुछ बातें जाननी जरूरी हैं. जैसे- राम मंदिर में ताला क्यों लगा था? ताला खुलवाने के लिए याचिका किसने दायर की? क्या पहली ही याचिका पर सुनवाई के बाद जज ने ताला खोलने का आदेश दे दिया, या फिर याचिकाकर्ता को दोबारा अपील करनी पड़ी? ताला खोलने की मांग वाली याचिका पर कितने दिन सुनवाई चली?

सबसे पहले जानते हैं, राम मंदिर में ताला लगाने का मामला?

रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1949 में 23 दिसंबर को अयोध्या में विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रख दी और पूजा शुरू कर दी. जिन लोगों ने भगवान राम की मूर्ति रखी, उनका कहना था कि विवादित स्थल पर पहले राम मंदिर था, जिसे तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई. खैर, जब 1949 में राम भगवान की मूर्ति रखकर पूजा की जाने लगी. करीब एक सप्ताह तक हंगामे के बाद यानी 29 दिसंबर 1949 को फैजाबाद की एक कोर्ट ने मामले की गंभीरता को देखते हुए इस स्थल को सरकार को सौंप दिया, जिसके बाद सरकार ने स्थल को विवादित मानते हुए, यहां ताला लगा दिया. 

दरअसल, ढांचे में रामलला के प्रकट होने और ताला लगाए जाने के एक हफ्ते के बीच काफी कुछ हुआ, जिसका भी जिक्र करना जरूरी है. जब 23 दिसंबर को रामलला के प्रकट होने की खबर फैली, तो विवादित स्थल की ओर हजारों की संख्या में लोग पहुंचने लगे. इस एक हफ्ते में वहां 'भय प्रकट कृपाला' का जाप होने लगा. लोगों की भीड़ जैसे-जैसे बढ़ी, तो अलग-अलग कहानियां सामने आने लगीं. कुछ रामभक्तों ने कहा कि 23 दिसंबर की सुबह बाबरी मस्जिद के मुख्य गुंबद के ठीक नीचे वाले कमरे में रामलला की मूर्ति प्रकट हुई. दावा किया गया कि रामलला की मूर्ति वहीं प्रकट हुई है, जहां रामलला का जन्म हुआ था. 

राम मंदिर, फिर बाबरी मस्जिद, फिर विवादित ढांचा... संक्षेप में जान लीजिए कहानी

राम मंदिर आंदोलन के दौरान बाबरी को हिंदू पक्ष ने विवादित ढांचा कहकर संबोधित किया है. दरअसल कहानी ये है कि जब 1526 में जिस जगह पर ढांचे का निर्माण किया गया, मुस्लिम पक्ष उसे बाबरी मस्जिद कहता है, जबकि हिंदू पक्ष का दावा है कि इस ढांचे की जगह राम मंदिर था, जिसे तोड़कर निर्माण किया गया है. वो राम जन्मभूमि है. राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ (RSS) समेत कई हिंदू संगठन और भाजपा (पहले जनसंघ) भी इसे शुरू से विवादित ढांचा ही कहा. 6 दिसंबर 1992 में जब ढांचा गिराया गया तो कोर्ट समेत संसद में जब भी इस मुद्दे पर बहस या फिर चर्चा हुई तो कुछ लोगों ने गिराए गए ढांचे को बाबरी मस्जिद कहा, जबकि भाजपा ने हर बार संसद में इसे विवादित ढांचा ही बताया. 

अब कहानी... किसने मंदिर का तला खुलवाने के लिए दायर की याचिका?

जिस दिन मंदिर का ताला खोलने का आदेश जज कृष्ण मोहन पांडे ने दिया, उससे 7 दिन पहले यानी 25 फरवरी को अयोध्या के वकील उमेश चंद्र पांडे ने फैजाबाद (अब अयोध्या) के मुंसिफ (सदर) कोर्ट में याचिका दाखिल की. कोर्ट के जज हरिशंकर द्विवेदी थे. याचिका में उमेश चंद्र पांडे की ओर से दावा किया गया कि जिस जगह पर ताला लगाया गया है, वो राम जन्मभूमि है और हिंदुओं को वहां पूजा करने की अनुमति दी जाए और इसके लिए सरकार की ओर से लगाए गए ताले को खोला जाए. 

मुंसिफ कोर्ट ने इस संबंध में कोई आदेश नहीं दिया, इसके बाद 31 जनवरी 1986 को उमेश चंद्र पांडे ने डिस्ट्रिक्ट एंड सेशन कोर्ट में अपील दायर की. अपील में कहा गया कि जब विवादित स्थल पर किसी कोर्ट के आदेश के बाद ताला नहीं लगाया गया था, बल्कि स्थानीय प्रशासन की ओर से ये सब किया गया था.

जज के लिए आसान नहीं था ताला खोलने का आदेश देना 

वकील उमेश की अपील के एक दिन बाद ही यानी 1 फरवरी को जिला एंड सत्र न्यायाधीश कृष्ण मोहन पांडे ने अपील को स्वीकार कर लिया. हालांकि, ताला खोलने का आदेश देना जज कृष्ण मोहन पांडे के लिए इतना आसान नहीं था, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से उमेश चंद्र पांडे की याचिका का विरोध किया गया और कहा गया कि अगर ताला खोला गया तो कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है. 

राज्य सरकार के विरोध के बाद जज कृष्ण मोहन पांडे ने फैजाबाद के उस वक्त के जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडे और एसएसपी कर्मवीर सिंह को कोर्ट में बुलाया. जज ने दोनों से पूछा कि क्या ताला खोलने से कानून व्यवस्था बिगड़ सकती है? जिलाधिकारी और एसएसपी ने इस आशंका से इनकार कर दिया. फिर जज कृष्ण मोहन पांडे ने राज्य सरकार की दलील को दरकिनार करते हुए राम मंदिर का ताला खोलने का आदेश दे दिया.

अब कहानी... जज कृष्ण मोहन पांडे की, जिन्होंने आत्मकथा में वानर का जिक्र किया

गोरखपुर शहर के जगन्नाथ पुर मोहल्ले के रहने वाले कृष्ण मोहन पांडे ने अपनी आत्मकथा में 1 फरवरी को हुई रोचक घटना का जिक्र किया है. जज ने आत्मकथा में लिखा कि जब वे राम मंदिर का ताला खोलने के लिए फैसला लिख रहे थे, तब कोर्ट परिसर में एक वानर (लंगूर) बैठा था. उन्होंने इस बारे में पता किया तो जानकारी मिली कि ये वानर सुबह से ही कोर्ट परिसर में झंडा स्तंभ को पकड़कर बैठा था. कोर्ट में मौजूद लोगों ने जब वानर को कुछ खिलाना चाहा, तो उसने खाने (चना मुंगफली) की ओर देखा ही नहीं. शाम को जब 4 बजकर 40 मिनट पर राम मंदिर के बाहर लगे ताले को खोलने का आदेश दिया गया, इसी के बाद वानर वहां से बाहर गया. जज ने अपनी आत्मकथा में ये भी लिखा कि फैसला सुनाने के बाद जब वे जिलाधिकारी और एसएसपी के साथ अपने सरकारी आवास पर पहुंचे, तो कोर्ट परिसर में बैठा वानर उनके घर के बरामदे में बैठा मिला. बाद में उन्होंने वानर को हनुमान भगवान समझकर प्रणाम किया.