Ayodhya Ke Ram: जनकपुरी से आए राजा राम के लिए उपहार, दामाद जी के गृहप्रवेश पर मिथिला हुआ निहाल

Ayodhya Ke Ram: अयोध्या राम मंदिर में रामलला प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा तैयारियां जोरों पर है. आज जनकपुरी यानी भगवान राम की ससुराल से शगुन आया है. अयोध्या से पेश है India Daily Live के संवाददाता चंदन भारद्वाज की खास रिपोर्ट.

Pankaj Mishra
 

चंदन भारद्वाज, संवाददाता: अयोध्या में आज सुबह से ही एक अलग उत्साह नजर आ रहा है. प्राण प्रतिष्ठा को लेकर चल रही तैयारियों के बीच आज अयोध्या (Ayodhya Ke Ram) में सड़कों पर खास कौतुहल है. मीडिया की गाड़ी देखकर लोग खुद पूछ रहे हैं कि 'का भइया कारसेवकपुरम जा रहे हो न'.

इससे पहले कि आपके मन में सवाल आए कि ये राहगीरों को कैसे पता कि मैं कहा जा रहा हूं... तो इसका जवाब मैं खुद ही दे देता हूं. दरअसल आज अयोध्या में रामजी की ससुराल से लोग आए हैं. हमें रात में ही पता चल गया था कि अयोध्या में कल सुबह रामजी की ससुराल जनकपुर (नेपाल) से शगुन आ रहा है. 

 

एक तरफ से खड़ी थी बिहार की गाड़ियां

मैं आज के दिन के लिए ज्यादा रोमांचित इसीलिए भी था क्योंकि मेरी मातृभूमि मिथिला ही है तो ऐसे में आज अपने स्वजनों से भेंट होनी थी. मेरी गाड़ी जैसे ही कारसेवकपुरम के गेट से अंदर घुसी तो बिहार नंबर की कई सारी बोलेरो और स्कार्पियो देखकर ऐसा लगा मानों गांव से कोई बारात आई हो.

गाड़ी से उतरकर हाथ में माइक लिए समूह बनाकर खड़े लोगों के पास पहुंचा. आपस में बातचीत के दौरान प्रयोग की जा रही मैथिली भाषा सुनकर मेरे मुंह से भी मैथिली निकली. मैंने जोश में सबसे पूछा 'हे यौ, केहन छी?' बस ये पूछने भर की मेरी देरी थी कि सब लोगों के चेहरे खिल उठें. फिर उनकी शुद्ध मैथिली और मेरी आधी हिंदी आधी मैथिली चालू हो गई. 

राजा राम के गृहप्रवेश में आया अपार सामान

उत्साहित युवाओं का एक समूह मुझे एक बड़े हाल की ओर लेकर आ गया. जहां जनकपुर से रामलला के नए घर में आगमन यानी गृहप्रवेश के लिए इतने उपहार आए कि उन्हें देखकर मैं अचंभित रह गया. सोचा गिनती कर लेता हूं, लेकिन संख्या इतनी ज्यादा थी कि सोचा मैं कर नहीं पाया. 

हमारे मिथिला में परंपरा है कि बिटिया की शादी, विदाई, गृहप्रवेश या उसके घर किसी भी विशेष प्रयोजन में उपहार भेजे जाते हैं. इसमें जरूरत की सभी वस्तुओं को शामिल किया जाता है.  

लाल कपड़े में बंधी टोकरियों में था शगुन 

अयोध्या में मौका मिथिला की बेटी माता सीता के पति यानी जनकपुर के दामाद के गृह प्रवेश का है, इसीलिए जनकपुर से तीन हजार के करीब सामान भार यानी शगुन में आया है. मिथिला में परंपरा है कि खाद्य पदार्थ जो भार में जाता है उन्हें चंगेरा यानी लकड़ी की टोकरी में लाल कपड़े से बांधकर भेजा जाता है और यहां भी जो भार में सामान आया है वो ऐसे ही आया है.

जनकपुर से आए भार में खाने का सभी सामान और ड्राई फ्रूट शामिल है. साथ ही दामाद जी भगवान राम के लिए भार में चांदी के बरतन, सोने के आभूषण और तरह-तरह के गहने भेजे गए हैं. इसमें भगवान ने जिस धनुष को स्वयंवर के लिए तोड़ा था. उसका भी सांकेतिक स्वरूप चांदी (चांदी का धनुष) भेजा गया है. सोने की खड़ाऊं, मिथिला का पान और मछली हर कुछ रामलला के स्नेश में शामिल है. 

महिलाओं ने गाए मैथिली के लोकगीत

इन सभी चीजो को में अपने कैमरे में कैद करता हुआ लगातार इंडिया डेली लाइव के माध्यम से पूरे देश को दिखा रहा था. इसी दौरान मैथिली गीत के स्वर मेरे कान में पड़े. मैं महिलाओं की उस टोली के पास पहुंचा जो ये गीत गा रही थीं. मैंने उनसे अनुरोध किया कि एक बार वो 'आज मिथिला नगरीया निहाल सखियां (Aaj Mithila Nagariya Nihal Sakhiya)' सुना दें.

मेरे कहने भर की देर थी कि एक साथ सभी महिलाएं रामजी के विवाह के समय गाए गए इस लोकगीत को गाने लगीं. मैं झूमने लगा. गीत के बाद हंसी ठिठोली का एक दौर चला और बड़ी मुश्किल से में सबके सामने हाथ जोड़ता हुआ वह से विदा हुआ.

यकीनन आज का दिन अलग और कुछ खास था. एक महीने से घर से दूर था पर आज सभी से मिल कर ऐसा लगा कि मानो अपने गांव आ गया हूं. मिथिला का होने के कारण एहसास हुआ कि मैं तो अपने जीजा जी के घर में हूं और यही भाव लिए मैं निकल पड़ा. अपनी दीदी की ससुराल की गलियों में धूमने.