Avtar Sandhu Pash: सबसे ख़तरनाक वो रात होती है जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है. जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआं हुआं करते गीदड़. हमेशा के अंधेरे बंद दरवाज़ों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं. यह पंक्तियां जिनकी है, उनको साहित्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी कवि का ओहदा हासिल है. 23 मार्च 1988 को ख़ालिस्तानी उग्रवादियों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी. उनका नाम है अवतार सिंह संधू ‘पाश’. उनकी वो कविता बहुत ज़्यादा मशहूर है कि "सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना.
यह कविता पाश ने तब लिखी थी जब वो अमरीका जाकर पेट्रोल पंप में काम करने लगे थे, उनके करीबी लोग बताते हैं कि तब उन्हें ऐसा लग रहा था कि कहीं उनके अपने सपने मर तो नहीं रहे हैं. जिस वक़्त उन्होंने लिखना शुरू किया था, वो बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल का दौर था, ना सिर्फ़ पंजाब बल्कि पूरे हिंदुस्तान में. और उसी दौर में वो अपनी कविताओं के जरिए क्रांति की नींव बोने में जुटे थे. उन दिनों खालिस्तानी आतंक जोरों पर था. पाश उनकी हिट-लिस्ट में शामिल थे. अमेरिका में वो डेढ़ साल बिताकर लौटे थे. यूं तो उनकी विचारधारा लेफ्ट की थी पर वो अमेरिका गए तो वहां खालिस्तान समर्थकों से जुड़ी एक पत्रिका के संपादक के यहां ठहरे. पाश वहां दो महीने रहे. उनके बीच रहकर वो जानना चाहते थे कि खालिस्तान आंदोलन के पीछे खड़े लोग किस वर्ग से हैं और वो कैसे अपना आंदोलन चलाते हैं.
एंटी-47 नाम की एक बाइलिंगुअल मैगजीन में जब उन्होंने संपादन का काम संभाला, तब पूरा भेद खुला. पाश सांप्रदायिक और धार्मिक राष्ट्रवाद के खिलाफ जमकर लिखने लगे. और इस तरह उन्होंने विदेशों में बसे भारतीय पंजाबियों खासकर खालिस्तान समर्थक सिखों के अलग राष्ट्र के संकल्प का और व्यक्तिगत हितों का पर्दाफाश किया. नक्सली कनेक्शन के आरोप में पाश एक साल जेल में रहे थे. उन्हें तीन बार गिरफ्तार किया गया था.