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Aviation Safety: क्या है सिग्नल स्पूफिंग, भारत-पाक सीमा पर कैसे बढ़ा रही खतरा?

Flight Security: स्पूफिंग को उड़ान संचालन के लिए एक गंभीर सुरक्षा खतरा माना जाता है, क्योंकि यह एयरक्राफ्ट में मौजूद महत्वपूर्ण उपकरणों के सामान्य कामकाज में बाधा डालता है. अगर ऐसा होता है, तो विमान अपने उड़ान मार्ग से भटक सकता है.

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Edited By: Ritu Sharma
Signal Spoofing
Courtesy: Social Media

Signal Spoofing: भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों, विशेष रूप से अमृतसर और जम्मू में उड़ान भरने वाले विमानों को एक नई चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. जैसे सिग्नल स्पूफिंग, ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नकली सैटेलाइट नेविगेशन सिग्नल भेजे जाते हैं, जिससे विमान के नेविगेशन सिस्टम में गड़बड़ी पैदा होती है. यह फ्लाइट ऑपरेशन के लिए गंभीर सुरक्षा जोखिम बन सकता है क्योंकि इससे विमान अपने निर्धारित मार्ग से भटक सकता है और दुर्घटनाओं की संभावना बढ़ सकती है.

भारत में सिग्नल स्पूफिंग की घटनाएं बढ़ीं

बता दें कि भारत सरकार ने संसद में बताया कि नवंबर 2023 से फरवरी 2025 के बीच 465 भारतीय उड़ानें सिग्नल स्पूफिंग का शिकार हुईं. यह घटनाएं विशेष रूप से अमृतसर और जम्मू क्षेत्रों में दर्ज की गई हैं. अंतरराष्ट्रीय संगठन OPSGROUP के अनुसार, अगस्त 2024 तक, वैश्विक स्तर पर रोजाना 1500 उड़ानों में सिग्नल स्पूफिंग की घटनाएं सामने आईं.

कैसे काम करता है सिग्नल स्पूफिंग?

विमान उड़ान के दौरान ग्लोबल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम (GNSS) पर निर्भर करता है, जो सटीक लोकेशन और नेविगेशन डेटा प्रदान करता है. सिग्नल स्पूफिंग के दौरान फर्जी सैटेलाइट सिग्नल भेजे जाते हैं, जो वास्तविक GNSS सिग्नल से अधिक मजबूत होते हैं. जब एयरक्राफ्ट सिस्टम इन नकली सिग्नलों को पकड़ता है, तो वह वास्तविक सिग्नलों को छोड़कर गलत डेटा को फॉलो करने लगता है, जिससे उसकी लोकेशन, ट्रैकिंग और नेविगेशन प्रभावित होते हैं.

सिग्नल स्पूफिंग से सुरक्षा संबंधी खतरे

  • फ्लाइट रूट से भटकाव – गलत सिग्नल मिलने पर विमान अपने वास्तविक मार्ग से भटक सकता है, जिससे टकराव और अन्य दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है.
  • नेविगेशन सिस्टम में गड़बड़ी – यह फ्लाइट मैनेजमेंट सिस्टम, वेदर रडार, ग्राउंड प्रॉक्सिमिटी वार्निंग सिस्टम, ऑटोमेटिक डिपेंडेंट सर्विलांस-ब्रॉडकास्ट (ADS-B) जैसे महत्वपूर्ण सिस्टम को बाधित कर सकता है.
  • सैन्य और नागरिक उड्डयन को खतरा – सिग्नल स्पूफिंग का उपयोग ड्रोन और मिसाइल सिस्टम को गुमराह करने के लिए किया जा सकता है, जिससे सैन्य अभियानों पर प्रभाव पड़ सकता है.

भारत-पाक सीमा पर स्पूफिंग का खतरा क्यों बढ़ रहा है?

बताते चले कि 2019 के बालाकोट एयरस्ट्राइक के बाद, पाकिस्तान ने अपनी एयर डिफेंस प्रणाली को मजबूत किया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान ने ऐसे सिस्टम तैनात किए हैं जो GPS/GNSS सिग्नल की नकल कर सकते हैं. इसका मुख्य उद्देश्य भारतीय हवाई क्षेत्र में घुसने वाले ड्रोन और मिसाइलों को गुमराह करना है. इसके अलावा, भारतीय सुरक्षा बल भी संवेदनशील इलाकों में ड्रोन गतिविधियों को रोकने के लिए स्पूफिंग तकनीक का उपयोग कर सकते हैं.

वहीं अमृतसर और जम्मू सेक्टरों में पाकिस्तान से आने वाले ड्रोन गतिविधियों में भारी वृद्धि देखी गई है. भारतीय सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने 2023 और 2024 में 107 और 184 पाकिस्तानी ड्रोन को भारतीय सीमा में घुसने से रोका या मार गिराया. माना जाता है कि पाकिस्तान सीमा के पास तैनात काउंटर-ड्रोन सिस्टम भारतीय विमानों को भी अनजाने में प्रभावित कर सकते हैं. बताते चले कि भारत-पाक सीमा के अलावा, पूर्वी भूमध्य सागर, इज़राइल, लेबनान, साइप्रस, मिस्र, ब्लैक सी और पश्चिमी रूस में भी सिग्नल स्पूफिंग की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. ऐसे विवादित क्षेत्रों में सैन्य और साइबर युद्ध रणनीति के रूप में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है.