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India Daily

'भारत से आया हूं संदेशा लाया हूं', अटल बिहारी ने UN में हिंदी बोलकर काटा था गदर, हर हिंदुस्तानी का सीना हो गया था चौंड़ा

Atal Bihari Vajpayee: वाजपेयी जी ने यह साबित किया कि हिंदी केवल भारत की राष्ट्रभाषा नहीं, बल्कि एक मजबूत और सशक्त भाषा है जो वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना सकती है.

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Edited By: Gyanendra Tiwari
atal bihari vajpayee IN UN First hindi speech
Courtesy: Social Media

Atal Bihari Vajpayee: आज से लगभग 47 साल पहले, 4 अक्टूबर 1977 का दिन भारतीय राजनीति और कूटनीति के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ था. यह वह दिन था जब भारत के विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में हिंदी में भाषण दिया था. यह सिर्फ एक भाषण नहीं था, बल्कि हिंदी भाषा के लिए गर्व का प्रतीक बन गया और पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति और भाषा की शक्ति को महसूस कराया.

UN में गाड़ा था हिंदुस्तानी झंडा

4 अक्टूबर 1977 को, जब अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपना भाषण शुरू किया, तो वह एक ऐतिहासिक क्षण था. यह उनका पहला भाषण था और उन्होंने इस मंच पर हिंदी का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया. यह उस समय की एक नई और अनोखी घटना थी, क्योंकि अब तक कोई भी नेता संयुक्त राष्ट्र के मंच से हिंदी में नहीं बोला था. यह एक साहसिक कदम था, क्योंकि अटल जी जानते थे कि इस अवसर का उपयोग हिंदी भाषा की वैश्विक पहचान को मजबूत करने के लिए किया जा सकता है.

अटल जी की अंग्रेजी पर भी अच्छी पकड़ थी, लेकिन उन्होंने यह फैसला लिया कि वे हिंदी में बोलेंगे, क्योंकि यह भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता का प्रतीक है. उनका यह कदम न केवल भारतीयों के लिए गर्व का विषय बना, बल्कि पूरी दुनिया को यह एहसास दिलाया कि भारतीय भाषाएं भी विश्व मंच पर महत्वपूर्ण हैं.

"मैं भारत से आया हूं संदेशा लाया हूं"

अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषण की शुरुआत बहुत ही आत्मविश्वास से की. उन्होंने कहा, "मैं संयुक्त राष्ट्र के इस 32वें सत्र में भारत की जनता की ओर से शुभकामनाएँ लाता हूँ." इसके बाद उन्होंने भारत के कूटनीतिक दृष्टिकोण को साझा किया और संयुक्त राष्ट्र के प्रति भारत का दृढ़ विश्वास व्यक्त किया. उन्होंने यह भी कहा कि भारत में लोकतंत्र और मानवाधिकारों को पुनर्स्थापित किया गया है और देश में फैली भय की स्थिति अब समाप्त हो चुकी है.

अटल जी का भाषण महज एक कूटनीतिक बयान नहीं था, बल्कि यह भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों और आस्थाओं का भी प्रतीक था. उन्होंने भारत के महत्वाकांक्षी विकास और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में सक्रिय भागीदारी की बात की.

अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी पूरी बात में न केवल भारत के दृष्टिकोण को रखा, बल्कि उन्होंने वैश्विक मुद्दों पर भी अपनी स्पष्ट राय दी. उन्होंने परमाणु निरस्त्रीकरण, राज्य प्रायोजित आतंकवाद और संयुक्त राष्ट्र में सुधार जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी आवाज़ उठाई. उन्होंने कहा, "वसुधैव कुटुम्बकम" का भारतीय विचारधारा दुनिया के लिए एक आदर्श है, जो कहता है कि पूरी दुनिया एक परिवार है.

यह संदेश सिर्फ एक राजनीतिक वक्तव्य नहीं था, बल्कि यह भारत के उन सशक्त विचारों और मूल्यों को दुनिया के सामने लाने का एक अवसर था, जो हमेशा से मानवता की भलाई के लिए काम करता रहा है.

वाजपेयी जी का भाषण केवल तीन मिनट का था, लेकिन इसकी गहरी छाप दुनिया भर पर पड़ी. जैसे ही उनका भाषण समाप्त हुआ, सभी देशों के प्रतिनिधि खड़े हो गए और तालियों की गड़गड़ाहट से उनका स्वागत किया. यह क्षण न केवल अटल जी के लिए गर्व का था, बल्कि यह हर भारतीय के दिल में देशभक्ति और गर्व का संचार कर गया. यह पहला अवसर था जब किसी भारतीय नेता ने वैश्विक मंच पर हिंदी को इतनी प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया.

हिंदी को दिलाया सम्मान

अटल बिहारी वाजपेयी का यह कदम हिंदी भाषा के सम्मान में एक ऐतिहासिक कदम साबित हुआ. इस भाषण के बाद हिंदी को संयुक्त राष्ट्र जैसी प्रतिष्ठित मंच पर पहचान मिली, और भारत में भी यह भाषण हर भारतीय के लिए गर्व का कारण बना.