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केजरीवाल जमानत पर बाहर.. 20 दिन बाद चुनाव; हरियाणा के चुनावी रण में कैसे AAP को दिलाएंगे जीत?

दिल्ली शराब नीति से जुड़े CBI केस में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी. हालांकि, कोर्ट ने CBI की गिरफ्तारी को वैध ठहराया है और जमानत की शर्तें तय की हैं. केजरीवाल किसी भी सरकारी फाइल में साइन नहीं कर सकेंगे. साथ ही उन्हें 10 लाख रुपए का बेल बॉन्ड भरने को कहा गया है.

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arvind kejriwal
Courtesy: Social Media

दिल्ली शराब नीति से जुड़े सीबीआई केस में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है. ऐसे में केजरीवाल की रिहाई से न केवल हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और बाद में दिल्ली में विधानसभा चुनावों से पहले आम आदमी पार्टी को बढ़ावा मिलेगा. हालांकि अदालत ने जमानत के लिए वहीं शर्तें लगाई है, जो ED केस में बेल देते समय लगाई गई थी.


वहीं इन शर्तों को लेकर आप पार्टी की ओर से कहा गया है कि मुख्यमंत्री शासन की देखरेख करते रहेंगे और दिल्ली में काम नहीं रूकेगा. दरअसल ईडी मामले में जमानत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को दिल्ली सचिवालय जाने से रोक दिया था लेकिन उन्हें उन फाइलों को एलजी के पास भेजने की इजाजत दी थी जिनके लिए एलजी को मंजूरी की जरूरत होती है. 

हरियाणा के चुनावी रण में कैसे दिलाएंगे जीत?

हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस और आप गठबंधन की कोशिश की थी लेकिन कुछ वजहों से ऐसा हो नहीं पाया. इसके बाद से दोनों यहां अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. अब तक केजरीवाल की गैरमौजूदगी में उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाल रहे थे लेकिन अब अरविंद केजरीवाल के आने से इस चुनाव में पार्टी को बल मिलेगी. दरअसल आप ने 2019 का हरियाणा विधानसभा चुनाव 46 सीटों का लड़ा था. उसे केवल 0.48 फीसदी वोट मिले थे लेकिन इस बार के चुनाव में आप ने जिस तरह से उम्मीदवार उतारे हैं, उससे उसकी फिल्डिंग मजबूत मानी जा रही है. यहां आप ने कुछ सीटों पर ऐसे उम्मीदवार उतारे है, जो पिछले काफी समय से जनता के बीच रहे हैं और जनता का उन्हें समर्थन भी मिल रहा है. 

'दिल्ली के लोगों का कोई भी काम नहीं रूकेगा..'

आप के एक बयान में कहा, 'अरविंद केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं, उन्हें अपने सभी मंत्रियों को निर्देश देने का पूरा अधिकार है, ताकि जनहित में काम हो सके, मुख्यमंत्री द्वारा केवल उन्हीं फाइलों पर हस्ताक्षर किए जाते हैं, जिन्हें एलजी के पास भेजा जाना होता है, जिसके लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिली होती है. इसलिए दिल्ली के लोगों का कोई भी काम नहीं रुकेगा'. 

SC कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगी 'आप'

वहीं आम आदमी पार्टी के विधायक और वकील सोमनाथ भारती ने कहा कि अदालत ने सीएम को उन सभी फाइलों पर हस्ताक्षर करने की अनुमति दी है, जिनके लिए एलजी की मंजूरी की आवश्यकता होती है. भारती ने कहा, 'सरकार द्वारा लिए गए अधिकांश निर्णयों के लिए एलजी की मंजूरी की आवश्यकता होती है. इसका मतलब है कि काम प्रभावित नहीं होगा. उन्होंने कहा, हमारी कानूनी टीम इन सभी पहलुओं पर गौर करेगी और जहां भी आवश्यकता हो, स्पष्टीकरण या छूट के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है'. 

'बहुत सारे 'अगर-मगर' हैं...'

हालांकि, दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इसमें बहुत सारे 'अगर-मगर' हैं. महत्वपूर्ण फाइलें, जिनके लिए एलजी की मंजूरी की आवश्यकता होती है, उन पर वे हस्ताक्षर कर सकते हैं, लेकिन क्या वे किसी नीति या प्रस्ताव को मंजूरी देने के लिए कैबिनेट की बैठक बुला पाएंगे? साथ ही, क्या वे एनसीसीएसए की बैठक बुलाने के लिए अपनी मंजूरी दे सकते हैं और संबंधित अधिकारियों की फाइलें सदस्य सचिव से पढ़ने और राय बनाने के लिए मांग सकते हैं? इन पहलुओं पर अदालत से अधिक स्पष्टता की जरूरत हो सकती है.

'शर्तों को अदालत में चुनौती..'

इससे पहले एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी यह संकेत दिया कि अगर जरूरत पड़ी तो केजरीवाल पर लगाई गई शर्तों को अदालत में चुनौती दी जा सकती है.

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