तमिलनाडु ने NEET (नेशनल एलिजिबिलिटी एंट्रेंस टेस्ट) से राज्य को छूट दिलाने के लिए एक बिल पेश किया था, लेकिन शुक्रवार (4 अप्रैल) को इस बिल को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अस्वीकार कर दिया. इस दौरान मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने विधानसभा में इस फैसले की जानकारी दी.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह बिल पहले साल 2021 और 2022 में राज्य विधानसभा द्वारा पारित किया गया था. इसके बाद से इसे केंद्र की मोदी सरकार की मंजूरी का इंतजार था.
राज्य की ओर से NEET के खिलाफ संघर्ष
पिछले साल जून में, तमिलनाडु विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें केंद्र सरकार से NEET को समाप्त करने और राज्य सरकारों को स्कूल प्रदर्शन के आधार पर प्रवेश प्रक्रिया तय करने की अनुमति देने की मांग की गई थी. इस प्रस्ताव को सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया था.
हालांकि,इस अस्वीकार के बाद, मुख्यमंत्री स्टालिन ने कड़े शब्दों में प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि तमिलनाडु को 'अपमानित' किया गया है और इसे 'संघवाद के काले दौर' के रूप में पेश किया गया. स्टालिन ने कहा, "तमिलनाडु सरकार ने सभी आवश्यक स्पष्टीकरण दिए थे, फिर भी केंद्र सरकार ने NEET से छूट को अस्वीकार कर दिया.
NEET के खिलाफ तमिलनाडु का स्थायी संघर्ष जारी
मुख्यमंत्री स्टालिन ने यह भी कहा कि सरकार इस फैसले को चुनौती देने के लिए कानूनी विशेषज्ञों से परामर्श करेगी और NEET के खिलाफ राज्य का संघर्ष जारी रहेगा. उन्होंने कहा, "केंद्र की मोदी सरकार ने तमिलनाडु की मांग को अस्वीकार किया है, लेकिन हमारी लड़ाई आगे भी जारी रहेगी."
NEET का सामाजिक न्याय पर क्या पड़ेगा प्रभाव
तमिलनाडु के NEET के खिलाफ विरोध का मुख्य कारण सामाजिक न्याय से जुड़ा हुआ है. स्टालिन सरकार का मानना है कि यह परीक्षा समृद्ध वर्ग के छात्रों को फायदा पहुंचाती है, जो कोचिंग और अन्य सुविधाओं का खर्च उठा सकते हैं, जबकि गरीब और हाशिए पर खड़े छात्रों को इसके साथ संघर्ष करना पड़ता है. तमिलनाडु सरकार का कहना है कि कक्षा 12 के अंकों के आधार पर प्रवेश प्रणाली को अपनाने से एक अधिक समान और न्यायपूर्ण प्रणाली का निर्माण होगा.
तमिलनाडु NEET मुद्दा क्या है?
हाल के सालों में NEET को लेकर विवाद तेज हो गया है, जिसमें परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक होने की खबरें तथा परीक्षा पास न कर पाने के कारण आत्महत्या करने वाले छात्रों की दुखद घटनाएं शामिल हैं. दरअसल, पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने 2024 नीट-यूजी परीक्षा को दोबारा कराने या रद्द करने की मांग वाली याचिकाओं पर विचार किया था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि परीक्षा से 45 मिनट पहले प्रश्नपत्र लीक हो गया था.
हालांकि, अदालत ने याचिकाओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि इस बात का कोई निर्णायक सबूत नहीं है कि परीक्षा की 'पवित्रता' से समझौता किया गया था.