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India Daily

जिससे थर्राता था यूपी, बाहुबली भी खाते थे खौफ, उसी 'ब्राह्मण' की मूर्ति पर सियासत क्यों कर रहे अखिलेश?

हरिशंकर की तिवारी. जरायम की दुनिया का एक ऐसा नाम, जिन्हें सत्ता भी मिली, मंत्री का पद भी मिला, सियासी रसूख ऐसा कि चाहे मुलायम सिंह यादव हों या कल्याण सिंह, एक फोन पर सारे काम करने के लिए तैयार हो जाते थे. वही हरिशंकर तिवारी जो राजीव गांधी के साथ भी नजर आए और अटल बिहारी वाजपेयी के साथ भी. अब अखिलेश यादव, उन्हीं की मूर्ति पर सियासत कर रहे हैं.

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Edited By: Abhishek Shukla
Akhilesh Yadav
Courtesy: Social Media

उत्तर प्रदेश में बाहुबलियों की राजनीति के 'पितामह' कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी की मूर्ति की स्थापना को लेकर सियासी हंगामा बरपा है. मामले ने इतना तूल पकड़ लिया है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने खुद कमान संभाल ली है. उन्होंने हरिशंकर को सम्मानीय बताते हुए भारतीय जनता पार्टी की योगी आदित्यनाथ सरकार को घेरा है. उन्होंने मूर्ति तोड़ने को लेकर इतनी नाराजगी जताई है कि वे बुलडोजर मॉडल पर भी हमलावर हैं. अखिलेश यादव ने कहा है कि अब दिवंगतों के मान-सम्मान पर भी बुलडोजर चलने लगा है. जिन 'दिंवगत' का जिक्र अखिलेश यादव कर रहे हैं, वे यूपी की सियासत का सबसे बड़ा बाहुबली नेता रहे हैं, बिहार से लेकर उत्तर प्रदेश तक, रेलवे के ठेके, अपहरण और अपराध के ऐसे-ऐसे संगीन आरोप उन पर लगे कि जिनके बारे में अखबार भी एक जमाने में लिखने में डरते थे. 

पूर्वांचल की अपराध पत्रकारिता पर दो दशक से लिखने वाले पत्रकार मधुसूदन कुमार बताते हैं कि बताते हैं कि अखिलेश यादव के लिए बाहुबलियों से प्रेम नया नहीं है. माफिया अतीक अहमद हो या डॉन मुख्तार अंसारी, अखिलेश यादव के दोनों बेहद करीबी रही हैं. मुख्तार अंसारी के अंतिम दर्शन के लिए तो अखिलेश यादव, मऊ पहुंच गए थे. अब उन्होंने 'ब्राह्मण' बाहुबली हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा के लिए सियासत शुरू कर दी है. गोरखपुर के बड़हलगंज इलाके में पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशकंर तिवारी का पैतृक गांव टाडा है. वहीं दिवंगत बाहुबली नेता की प्रतिमा स्थापित होने वाली थी. इसके लिए निर्माण भी हुआ था. 5 अगस्त को उनकी 88वीं जयंती थी लेकिन प्रशासन ने मूर्ति गिरा दी. इस निर्माण पर बुलडोजर चल गया. 

अखिलेश यादव का क्या है नया 'दर्द?'

हरिशंकर तिवारी की मूर्ति गिराए जाने से नाराज अखिलेश यादव ने X पर लिखा, 'अब तक भाजपा का बुलडोजर दुकान-मकान पर चलता था, अब दिवंगतों के मान-सम्मान पर भी चलने लगा है. चिल्लूपार के सात बार विधायक रहे उप्र के पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशंकर तिवारी की जयंती पर उनकी प्रतिमा के प्रस्तावित स्थापना स्थल को भाजपा सरकार द्वारा तुड़वा देना, बेहद आपत्तिजनक कृत्य है. प्रतिमा स्थापना स्थल का तत्काल पुनर्निर्माण हो, जिससे जयंती दिवस 5 अगस्त को प्रतिमा की ससम्मान स्थापना हो सके. यह निंदनीय है.' 

प्रशासन ने क्यों गिराई मूर्ति?

तहसील प्रशासन का तर्क है कि पंचायत की जमीन पर बिना इजाजत के ही हरिशंकर तिवारी की प्रतिमा लगाई जा रही थी. ग्राम प्रधान दयाशंकर तिवारी का कहना है कि पंचायत ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया था, फिर प्रतिमा लगाने का निर्णय हुआ था. एसडीएम ने हामी भी भरी थी लेकिन बीजेपी सरकार की राजनीति की वजह से इसे मंजूरी नहीं मिली. हरिशंकर तिवारी के बेटे भीष्म शंकर तिवारी ने भी कहा है कि राजनीतिक नफरत की वजह से यह नहीं होने दिया गया है. 

ब्राह्मणों पर अखिलेश की मेहरबानी की वजह क्या है?

वरिष्ठ पत्रकार मधुसूदन कुमार बताते हैं कि हरिशंकर तिवारी का इतिहास भले ही आपराधिक रहा हो लेकिन ब्राह्मणों उन्हें अस्मिता से जोड़कर देखते हैं. 80-90 के दशक में जब गोरखपुर में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की जंग अपने सबसे भयावह दौर में थी, तब हरिशकंर तिवारी की तूती बोलती थी. पूर्वांचल में उनका नाम लेकर अमरमणि त्रिपाठी और श्रीप्रकाश शुक्ल जैसे कितने अपराधी आए और गए, उनका रसूख कम नहीं हुआ. 

अब उन्हीं की मूर्ति तोड़ने पर लिए गए एक्शन को वे सियासी तौर पर भुनाना चाहते हैं. जैसे माता प्रसाद पांडेय को, अपने चाचा शिवपाल यादव के प्रबल दावेदार होने के बाद भी तरजीह न देकर, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाया, वैसे ही वे हरिशंकर तिवारी पर मेहरबानी दिखा रहे हैं. यह ब्राह्मण वोटरों को लुभाने की कोशिश भर है. अखिलेश यादव के साथ पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (PDA) हैं, लोकसभा चुनाव 2024 में यह साबित भी हो चुका है, जब पार्टी के खाते में 37 सीटें आ गईं. अब उन्हें विधानसभा चुनावों के लिए ब्राह्मणों का भी साथ चाहिए.

कैसे डॉन हरिशंकर तिवारी बन गए माननीय हरिशंकर तिवारी?

70-80 का दशक. गोरखनाथ पीठ, महंत अवैद्यनाथ का वर्चस्व. इसी बीच में हरिशंकर ऐसे बाहुबली बने, जिन्होंने वहां ब्राह्मण-बनाम ठाकुर की राजनीति ही खत्म कर दी. उन्होंने अपने अलावा किसी को भी उभरने ही नहीं दिया. सरकारी ठेके, रेलवे टेंडर, सड़क-मकान-दुकान, हर जगह माफिया राज चरम पर था. इनमें सबसे बड़ा नाम हरिशंकर तिवारी का था. उनके सामने अमरमणि त्रिपाठी, श्रीप्रकाश शुक्ल, राजन तिवारी और वीरेंद्र शाही जैसे कितने माफिया आए और गए, हरिशंकर देखते ही देखते ब्राह्मणों के सिरमौर नेता बन गए. वे बिना नेता बने ट्रांसफर-पोस्टिंग कराते थे. 

किसी की हैसियत नहीं थी कि उनके आदेश को मानने से इनकार कर दे. वे कई बार जेल गए लेकिन उन्होंने अपराध का राजनीतिकरण कर दिया. साल 1985 में वे पहली बार माननीय बने. 22 सालों से अलग-अलग विधानसभा सीटों से वे विधायक रहे. साल 1985 से लेकर 2007 तक, उनका जलवा कायम रहा. 

सरकार चाहे कल्याण सिंह की हो, मायवती की हो या मुलायम सिंह की, वे हर किसी की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे. उन्होंने राजनीति और अपराध का ऐसा गठजोड़ बनाया था कि पूर्वांचल में कई माफिया पैदा हो गए. उनके खिलाफ दर्जनों केस थे लेकिन कोई आरोप साबित ही नहीं कर पाया. दागदार राजनीति से उन्होंने शुरुआत की और बेदाग होकर मई 2017 में दुनिया से चले गए.