Lok Sabha Elections 2024: हरियाणा की राजनीति में उस वक्त एक नया मोड़ आ गया जब मंगलवार को बीजेपी ने अपनी सहयोगी पार्टी जेजेपी (जननायक जनता पार्टी) को लोकसभा चुनावों से पहले सरकार से बाहर कर दिया. मनोहर लाल खट्टर ने अपने सीएम पद से इस्तीफा देकर 4 साल से चले आ रहे गठबंधन को समाप्त कर दिया. 2019 में खट्टर जेजेपी के समर्थन से ही सीएम बने थे लेकिन उनके इस्तीफे के कुछ घंटे बाद जब नायब सैनी को विपक्ष दल का नेता चुना गया तो वो जेजेपी नहीं बल्कि निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन से था.
नए राजनीतिक घटनाक्रम के चलते दुष्यंत चौटाला जो कि 5 साल पहले बीजेपी की जरूरत के दोस्त थे वो न सिर्फ अब सत्ता से बाहर हो गए हैं बल्कि अपनी ही पार्टी में फूट के खतरे को भी झेल रहे हैं. 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में बीजेपी ने 2019 के चुनावों में 40 सीटें जीती थी और चुनाव के बाद उसने जेजेपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई थी जिसने 10 सीटें जीती थी. इसके बाद दुष्यंत चौटाला का राज्य का डिप्टी सीएम बनाया गया था ताकि मनोहर लाल खट्टर सरकार का दूसरा कार्यकाल आसानी से बीत सके.
रिपोर्ट्स की मानें तो दोनों पार्टियों के बीच लोकसभा चुनाव की सीट शेयरिंग को लेकर मतभेद चल रहा था और यही वजह बनी कि दोनों अलग हो गए. बीजेपी ने साल 2019 के लोकसभा चुनावों में हरियाणा की सभी 10 सीटों पर जीत हासिल की थी और वो अपनी सहयोगी पार्टी को इस चुनाव में एक भी सीट नहीं देना चाहती थी. हालांकि जेजेपी लगातार 2 सीटों की मांग कर रही थी और इससे कम में समझने को तैयार नहीं थी. मजेदार बात यह है कि भले ही दोनों पार्टी अलग हो गई हैं लेकिन किसी ने भी अभी तक गठबंधन से अलग होने का आधिकारिक ऐलान नहीं किया है.
ट्विटर पर लिखे एक पोस्ट में दुष्यंत चौटाला ने हरियाणा के लोगों का धन्यवाद किया है और उन्हें राज्य के डिप्टी सीएम के रूप में सेवा देने का मौका दिया. उन्होंने कहा, 'मैं इसे अपना सौभाग्य मानता हूं और हरियाणा के प्रत्येक व्यक्ति का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं. हरियाणा के कल्याण और सार्वजनिक कार्यों के लिए आपका समर्थन और सहयोग मेरे लिए हमेशा ऊर्जावान रहा है.'
वहीं बीजेपी के लिए लीडरशिप में बदलाव नई जान फूंक सकता है और आगामी चुनावों में जीत की रणनीति साबित हो सकती है. बीजेपी ने अपनी इस रणनीति को उत्तराखंड और गुजरात में पहले ही सफलतापूर्वक लागू किया है और विधानसभा चुनावों से पहले मुख्यमंत्री बदल कर बड़ा फायदा भी हासिल किया. साथ में बीजेपी राज्य में चुनाव से पहले जातीय समीकरण को भी सही करने की कोशिश कर रही है.
विपक्ष की ओर से लगातार जातीय जनगणना की मांग के बीच बीजेपी के लिए सैनी को सीएम बनाना उनके ओबीसी वोट बैंक को बरकरार रखने का काम करेगा और विपक्ष के हमलों की धार को कुंद करेगा. पिछले कुछ महीनों में बीजेपी ने लगातार ओबीसी नेताओं को अच्छे पद देने की कोशिश की है ताकि वो अपना वोट बैंक बरकरार रख सके. जहां बीजेपी ने चेहरा बदल कर अपने आप को मजबूत किया है तो वहीं पर दुष्यंत चौटाला की मुश्किलें कम नहीं हो रही हैं और शायद आने वाले समय में फूट का सामना भी करना पड़े.
मंगलवार की शाम को जब शपथ ग्रहण समारोह चल रहा था तो जेजेपी के 4 विधायक अपने पार्टी अध्यक्ष की ओर से बुलाई गई जरूरी बैठक में न जाकर राजभवन में शपथ ग्रहण समारोह में सम्मिलित हो रहे थे. जोगी राम सिहाग, ईश्वर सिंह, देविंदर बबली और राम निवास सुखरेजा राजभवन में नायब सिंह सैनी के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद थे. उल्लेखनीय है कि जेजेपी का गठन हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला के नेतृत्व में चल रही INLD और संस्थापक परिवार के भीतर हुए बंटवारे के बाद हुआ था. जहां अभय चौटाला INLD के साथ बने रहे तो वहीं उनके बड़े भाई अभय सिंह चौटाला के बेटों दुष्यंत और दिग्विजय ने जेजेपी की स्थापना की.
गठबंधन के भविष्य के बारे में पूछे जाने पर जेजेपी की हरियाणा इकाई के प्रमुख निशान सिंह ने कहा, 'दुष्यंत चौटाला के पिता डॉ. अजय सिंह चौटाला की अध्यक्षता में पार्टी की एक बैठक हुई. बैठक में सभी मुद्दों पर चर्चा हुई है. मीटिंग में यह यह निर्णय लिया गया कि बुधवार को अजय चौटाला का जन्मदिन हिसार में नव संकल्प रैली आयोजित करके मनाया जाएगा, पार्टी जो भी निर्णय लेगी उसकी जानकारी रैली में दी जायेगी.'
मौजूदा समय में जेजेपी का नाम उन पार्टियों की लंबी सूची में शामिल हो गया है जिनके विधायकों ने अपना समर्थन देकर या पार्टी बदलकर बीजेपी के साथ जुड़ने का फैसला किया है. जहां कांग्रेस ने बीजेपी के हाथों अपने कई नेता खो दिए तो वहीं मध्यप्रदेश और कर्नाटक में उसे अपनी सरकारें भी गंवानी पड़ी. कुछ क्षेत्रीय राजनीतिक दलों को भी कुछ ऐसा ही नुकसान झेलना पड़ा था.
कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में पिछले महीने लगभग अपनी सरकार खो दी थी जब पार्टी के 6 विधायकों ने विद्रोह कर दिया और राज्यसभा चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार को वोट दिया. उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव को तब झटका लगा जब हाल ही में पार्टी के 5 विधायकों ने विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तारीफ की और राज्यसभा चुनाव में पार्टी उम्मीदवार के खिलाफ वोट किया. असम, गुजरात में कई कांग्रेस नेताओं ने हाल के दिनों में सबसे पुरानी पार्टी को छोड़ दिया है और बीजेपी में शामिल हो गए हैं.
महाराष्ट्र में भी ये कहानी घट चुकी है जहां के दो प्रमुख दल शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को विधायकों के विद्रोह की वजह से न सिर्फ सत्ता से हाथ धोना पड़ा बल्कि अपनी पार्टी और उसके चुनाव चिन्ह को भी गंवाना पड़ा. जहां पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी केंद्र में तीसरी बार सत्ता हासिल करने के लिए आत्मविश्वास से आगे बढ़ रही है, तो वहीं पर कई राजनीतिक दल अपने अस्तित्व को बचाने के लिए डबल फ्रंट पर लड़ाई लड़ रहे हैं.