Jammu Kashmir Elections: जम्मू एवं कश्मीर में मंगलवार को विधानसभा चुनाव के तीसरे और अंतिम चरण की तैयारियां चल रही हैं. पिछले कुछ दिनों से तिहाड़ जेल से जुड़े दो उम्मीदवार मतदाताओं तक पहुंचने के लिए अंतिम क्षणों में प्रयास करने में व्यस्त हैं.
पहले कैंडिडेट... 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु के भाई ऐजाज अहमद गुरू हैं, जो सोपोर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि दूसरे कैंडिडेट बारामुल्ला के सांसद इंजीनियर राशिद के भाई शेख खुर्शीद हैं, जो अपने परिवार के गढ़ लंगेट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं.
अफ़ज़ल की 2013 में फांसी और उसके बाद तिहाड़ जेल में दफ़नाया जाना कश्मीर घाटी में एक ज्वलंत राजनीतिक मुद्दा रहा है, एजाज इसके बारे में बात नहीं करते हैं और उन्होंने सार्वजनिक रूप से घोषणा की है कि वे अपने भाई के नाम पर वोट नहीं मांगेंगे क्योंकि उनकी विचारधाराएं अलग हैं. इसके बजाय, उनका अभियान विकास और सोपोर के साथ राजनीतिक सौतेला व्यवहार के इर्द-गिर्द घूमता है.
निर्वाचन क्षेत्र में घर-घर जाकर प्रचार करते हुए, उन्होंने एक महिला से कहा कि वे अमीर लोगों के दरवाज़े पर नहीं गए. उन्होंने अपने चुनाव चिन्ह, अपनी तस्वीर और एक संदेश वाले कुछ पोस्टर बांटे. पोस्ट पर लिखा था कि सोपोर को सशक्त बनाओ, तहरीक-ए-आवाम (जन आंदोलन) के साथ बेहतर भविष्य का निर्माण करो. एजाज ने महिला से कहा कि इन्हें अपने दोस्तों और रिश्तेदारों में बांट दो.
एजाज सोपोर में 20 उम्मीदवारों में से एक हैं. सोपोर बीते समय से अलगाववादियों और आतंकवादियों का गढ़ रहा है तथा हुर्रियत प्रमुख दिवंगत सैयद अली शाह गिलानी का गढ़ रहा है. गिलानी ने 1990 में घाटी में आतंकवाद भड़कने से पहले तीन बार इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था.
2014 के विधानसभा चुनावों में, जब जम्मू -कश्मीर में पिछली बार विधानसभा चुनाव हुए थे, सोपोर सीट पर कांग्रेस के अब्दुल रशीद डार ने जीत दर्ज की थी, जिन्होंने पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के नजीर अहमद नाइकू को हराया था. इस बार कांग्रेस ने फिर से डार को मैदान में उतारा है. कांग्रेस नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन में है, लेकिन दोनों ने एक साझा उम्मीदवार पर सहमति न बन पाने के बाद दोस्ताना लड़ाई के लिए सोपोर में उम्मीदवार उतारे हैं.
58 साल के एजाज दोआबाग गांव के निवासी हैं और एक पूर्व सरकारी कर्मचारी हैं, जिन्होंने अपने भाई को फांसी दिए जाने के एक साल बाद 2014 में इस्तीफा दे दिया था. ऐसा लगता है कि उनके साथ बहुत से लोग नहीं हैं, क्योंकि उनके साथ एक दर्जन से भी कम लोग हैं. अफ़ज़ल की पत्नी तबस्सुम गुरु ने भी उनके अभियान से खुद को अलग कर लिया है, उनका कहना है कि चुनाव लड़ना उनका अपना फ़ैसला है. इसका 'शहीद' अफ़ज़ल या गुरु परिवार से कोई लेना-देना नहीं है. मुझे दुख है कि मेरे पति और एजाज की तस्वीरें (चैनलों की ओर से) एक साथ प्रसारित की जाती हैं.
दूसरी ओर, खुर्शीद अपने भाई की लोकप्रियता पर सवार हैं और लंगेट सीट जीतने का लक्ष्य बना रहे हैं, जिसे राशिद ने 2008 और 2014 में जीता था. सरकारी शिक्षक खुर्शीद ने तिहाड़ जेल में रहते हुए नौकरी छोड़ दी थी, जब उनके भाई ने हाल के लोकसभा चुनावों में बारामूला से एनसी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस प्रमुख सज्जाद लोन को हराया था.
यहां तक कि जो लोग रशीद की राजनीतिक बयानबाजी से प्रभावित हैं, वे भी पैरोल पर जेल से उनकी अचानक रिहाई के पीछे की असली कहानी के बारे में निश्चित नहीं हैं. एनसी और पीडीपी ने पहले ही उन्हें दिल्ली का एजेंट करार दिया है. रशीद का तर्क है कि उन्होंने मोदी के सामने खड़े होने का साहस दिखाया है और यही कारण है कि वह 2019 से कथित आतंकी फंडिंग के मामले में जेल में हैं, जबकि अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद से नजरबंद अन्य लोगों को रिहा कर दिया गया.
जेल से बाहर आने के बाद अपनी पहली टिप्पणी में रशीद ने उन बातों को खारिज कर दिया कि वे भाजपा के प्रतिनिधि हैं. उन्होंने पूछा कि जो व्यक्ति भाजपा की राजनीति का शिकार रहा है, वह उसका प्रतिनिधि कैसे हो सकता है? बारामुल्ला के सांसद को कथित आतंकी फंडिंग के मामले में 2019 से तिहाड़ जेल में रखा गया था, इससे पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नया कश्मीर के कथानक से लड़ने की कसम खाई थी.
मोदी सरकार की ओर से अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और उसके बाद के उपायों की आलोचना करते हुए राशिद ने कहा कि आपने हमें केंद्र शासित प्रदेश बना दिया. डिमोट कर दिया हम को.
खुर्शीद लंगेट में 15 अन्य उम्मीदवारों के साथ चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन उन्हें सबसे कड़ी चुनौती पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के इरफान पदितपुरी से मिलने की संभावना है. खुर्शीद जहां राशिद की राजनीति पर भरोसा कर रहे हैं, वहीं बारामुल्ला के सांसद की ओर से अन्य उम्मीदवारों के बजाय अपने रिश्तेदारों को तरजीह दिए जाने के खिलाफ लोगों में कानाफूसी भी सामने आई है.
उन्होंने हाल ही में एक जनसभा में लोगों की आशंकाओं को दूर करने की कोशिश करते हुए कहा कि ये खानदानी राज नहीं है. ये खानदानी खिदमत है. मैं एक सरकारी शिक्षक के तौर पर एक लाख से ज़्यादा कमा रहा था. मैंने लोगों के लिए यह सब त्याग दिया.