तमिलनाडु विधानसभा द्वारा 2020 से पारित कम से कम दस विधेयक, जिन्हें राज्यपाल आरएन रवि ने मंजूरी देने से इनकार कर दिया था, अब आधिकारिक रूप से कानून बन गए हैं, भले ही न तो राज्यपाल और न ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इन पर हस्ताक्षर किए. यह घटनाक्रम सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद हुआ, जिसमें राज्यपालों द्वारा विधेयकों को मंजूरी रोकने के मुद्दे पर सुनवाई हुई.
सुप्रीम कोर्ट की फटकार
सुप्रीम कोर्ट ने इस सप्ताह तमिलनाडु के राज्यपाल को फटकार लगाते हुए कहा कि दस प्रमुख विधेयकों को मंजूरी रोकने का उनका निर्णय "गैरकानूनी" और "मनमाना" था. जस्टिस जेबी परदीवाला और आर महादेवन की बेंच ने कहा, "राज्यपाल का 10 विधेयकों को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करने का कदम गैरकानूनी और मनमाना है. इसे रद्द किया जाता है. इन विधेयकों को उस तारीख से मंजूर माना जाएगा, जब इन्हें राज्यपाल को दोबारा भेजा गया था." कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मंजूरी रोकने के बाद राज्यपाल विधेयकों को राष्ट्रपति के पास नहीं भेज सकते.
विधेयकों का कानून बनना
इन विधेयकों को 18 नवंबर, 2023 को कानून का दर्जा मिला, जब डीएमके सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी की. इनमें राज्य संचालित विश्वविद्यालयों के कुलपति नियुक्ति नियमों में संशोधन करने वाले कानून शामिल हैं, जो राज्यपाल की नियुक्ति प्रक्रिया में शक्तियों को काफी हद तक सीमित करते हैं. तमिलनाडु सरकार ने गजट अधिसूचना में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद, राज्यपाल को 18 नवंबर, 2023 को इन विधेयकों को मंजूरी दे दी गई मानी जाएगी.
सीएम स्टालिन की प्रतिक्रिया
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे "ऐतिहासिक फैसला" करार देते हुए कहा, "डीएमके का मतलब इतिहास है." उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा. स्टालिन ने बताया कि राज्यपाल ने डीएमके सरकार के साथ तनावपूर्ण रिश्तों के बीच कई विधेयकों को बिना मंजूरी के लौटा दिया था.
डीएमके सांसद का दावा
वरिष्ठ अधिवक्ता और डीएमके के राज्यसभा सांसद पी विल्सन ने दावा किया कि इन 10 विधेयकों के प्रभावी होने से राज्य सरकार का नामित व्यक्ति राज्य संचालित विश्वविद्यालय का चांसलर बनेगा, जबकि रवि को हटा दिया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्यपाल की लंबी निष्क्रियता पर सवाल उठाए और पूछा कि जनवरी 2020 से लंबित विधेयकों पर कार्रवाई के लिए उन्होंने अदालत तक का इंतजार क्यों किया.