वकील ने की CJI की तारीफ, जस्टिस नागरत्ना ने कुछ ऐसा कह दिया कि झेंप गए चंद्रचूड़

1 मई को सुप्रीम कोर्ट में बेहद ही अहम मामले पर पहस चल रही थी उसी दौरान एक वकील ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की तारीफ कर दी. वकील की तारीफ पर एक महिला जज ने कुछ ऐसा कमेंट किया कि चीफ जस्टिस झेंप गए.

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बुधवार 1 मई को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट के 9 जजों की संवैधानिक पीठ ने एक बेहद अहम केस पर सुनवाई की और मामला सुरक्षित रख लिया. मामला ये था कि क्या निजी संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद 39 (B) के तहत 'समुदाय का भौतिक संसाधन' माना जा सकता है और क्या सार्वजनिक कल्याण के इस्तेमाल के लिए सरकार इस पर अपना कब्जा कर सकती है? इसमें  1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (POA) की ओर से दायर मुख्य याचिका भी शामिल है.

पीठ में ये जस्टिस रहे शामिल

सीवाई चंद्रचूड़ के अलावा इस पीठ में जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जे बी बादरीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा  और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह शामिल थे.

वही मामले में सरकार की पैरवी अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता कर रहे थे जबकि अपीलकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील जल टी. अंध्यारुजिना और समीर पारेख अपना पक्ष रख रहे थे. वही मामले में प्रतिवादियों की ओर से वरिष्ठ अधिवकता शंकरनारायणन, हरीश साल्वे और राकेश द्विदेदी ने भी अपनी दलीलें दीं.

बहस खत्म होने के बाद जब वकील ने चीफ जस्टिस की कर दी तारीफ

बुधवार देर शाम 8 बजे तक इस मामले पर बहस होती रही और आखिर में चीफ जस्टिस ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. बहस के खत्म होते ही एक वकील उठे और उन्होंने चीफ जस्टिस की तारीफ में दो मीठे बोल बोल दिए. उन्होंने कहा, 'हम भाग्यशाली हैं कि हमें भारत के एक युवा और डायनमिक चीफ जस्टिस के सामने बहस करने का मौका मिला.'

महिला जज के कमेंट पर झेंप गए चीफ जस्टिस

 वकील साहब की तारीफ पर  पर पीठ में शामिल और चीफ जस्टिस के बराबर में बैठीं एक महिला जज जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, 'ओह, ये तो कॉम्प्लीमेंट है!' नागरत्ना के कमेंट पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ झेंप गए और मुस्कुरा दिए. इसके बाद कोर्टरूम में महौल खुशनुमा हो गया.

बता दें कि इस मामले में मुख्य याचिका मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (POA) द्वारा साल 1992 में दायर की गई थी और 20 फरवरी 2002 को  नौ सदस्यीय संविधान पीठ को भेजे जाने से पहले इसे तीन बार पांच और सात जजों की खंडपीठ के पास भेजा गया था.