मनमोहन सिंह को PM बनाने के बाद कांग्रेस के हाथ से निकली सत्ता: मणिशंकर अय्यर ने चौंकाया
मणिशंकर अय्यर ने अपनी किताब में लिखा है कि गिरते स्वास्थ्य के बावजूद कांग्रेस ने मनमोहन सिंह को दोबारा भी प्रधानमंत्री बनाया. इससे शासन में गतिरोध पैदा हो गया, आखिरकार UPA-III बनाने की संभावनाएं खत्म हो गईं.
Mani Shankar Aiyar: वरिष्ठ कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि गिरते स्वास्थ्य के बावजूद मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में बनाए रखने के निर्णय से पार्टी की तीसरी बार सत्ता में लौटने की संभावना बाधित हुई हैं. अपनी नई पुस्तक में अय्यर ने प्रस्ताव दिया है कि प्रणब मुखर्जी को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जाना चाहिए था, जबकि 2012 में राष्ट्रपति भवन खाली होने पर मनमोहन सिंह को राष्ट्रपति पद पर पदोन्नत किया जा सकता था.
83 वर्षीय अय्यर ने अपनी पुस्तक ' ए मेवरिक इन पॉलिटिक्स' में तर्क दिया है कि इस तरह के कदम से 'शासन की निष्क्रियता' को रोका जा सकता था, जिसने यूपीए-2 को त्रस्त कर दिया था. उनका दावा है कि मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति भवन भेजने के निर्णय ने अंततः यूपीए-III के साथ लगातार तीसरा कार्यकाल हासिल करने की कांग्रेस की संभावनाओं को "नष्ट" कर दिया.
दोनों नेता थे बीमार
अय्यर कहते हैं, "2012 में प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) को कई बार कोरोनरी बाईपास सर्जरी करानी पड़ी. वे कभी भी शारीरिक रूप से पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हो पाए. इससे उनकी कार्यशैली धीमी हो गई और इसका असर शासन पर भी पड़ा. जहां तक पार्टी का सवाल है, कांग्रेस अध्यक्ष के स्वास्थ्य के बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई, जबकि वह प्रधानमंत्री के साथ ही बीमार पड़ गईं थीं."
राजनयिक से राजनेता बने इस व्यक्ति ने पाया कि प्रधानमंत्री कार्यालय और पार्टी अध्यक्ष दोनों ही जल्द ही गतिरोध की स्थिति में पहुंच गए, जिसमें शासन की कमी साफ देखी जा सकती है. उन्होंने कहा कि कई संकटों, खासकर अन्ना हजारे के 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' आंदोलन को या तो ठीक से नहीं संभाला गया या फिर उन्हें अनदेखा कर दिया गया.
प्रणब मुखर्जी को सौंपी जानी चाहिए थी कमान
पुस्तक में लिखा है, "राष्ट्रपति का चुनाव: मनमोहन सिंह या प्रणब मुखर्जी. व्यक्तिगत रूप से मेरा मानना था कि प्रणब मुखर्जी को सरकार की बागडोर सौंपी जानी चाहिए थी और डॉ. मनमोहन सिंह को भारत का राष्ट्रपति बनाया जाना चाहिए था, जब 2012 में राष्ट्रपति पद के लिए पद खाली हुआ था."
अय्यर कहते हैं, "ऐसा मुख्य रूप से इसलिए किया जाना चाहिए था क्योंकि हमें एक बहुत सक्रिय प्रधानमंत्री की जरूरत थी, जो अच्छे स्वास्थ्य में हो और सरकार का नेतृत्व करने के लिए ऊर्जा से भरपूर हो. उन्होंने प्रणब मुखर्जी के संस्मरण का हवाला दिया, जिसमें मुखर्जी ने याद किया है कि जब सोनिया गांधी "कौशांबी की पहाड़ियों में छुट्टियां मना रही थीं," तो उन्होंने पार्टी के "राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार" के रूप में मनमोहन सिंह के बारे में "अस्पष्ट धारणा" व्यक्त की थी.
किसी को नहीं पता था सोनिया का फैसला
अय्यर कहते हैं, "इससे प्रणब को यह संदेह हुआ कि 'यदि उन्होंने राष्ट्रपति पद के लिए सिंह को चुना है, तो वे मुझे प्रधानमंत्री के रूप में चुन सकती हैं.' ऐसे कारणों से, जिनके बारे में न तो मुझे और न ही किसी और को जानकारी दी गई, डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री के रूप में बनाए रखने और प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति के रूप में ऊपर भेजने का निर्णय लिया गया."