मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप को लेकर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा कि लिव-इन में रह रहे जोड़े का अगर ब्रेकअप हो जाता है तो महिला गुजारा भत्ता पाने की हकदार है. भले ही दोनों ने औपचारिक तौर पर शादी न की हो.
याचिकाकर्ता ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को दी थी चुनौती
कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया. शख्स ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे उस महिला को 1500 रुपए का भत्ता देने को कहा गया था जिसके साथ वह लिव-इन में था.
'लंबे समय तक सहवास का प्रमाण है तो गुजारा भत्ता नहीं रोका जाना चाहिए'
लिव-इन संबंधों की आधुनिक मान्यता पर प्रकाश डालते हुए अदालत ने कहा कि अगर लिव-इन में रह रहे कपल के बीच वैवाहिक संबंध के समान दीर्घकालिक सहवास का प्रमाण है तो गुजारा भत्ता नहीं रोका जाना चाहिए.
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट की टिप्पड़ियों पर सहमति जताते हुए यह फैसला सुनाया, जिसमें उसने कपल के एक साथ रहने की व्यवस्था को पति-पत्नी के समान माना, दोनों के बीच शारीरिक संबंध थे और उनसे जन्मे बच्चे ने इस बात की पुष्टि भी की थी.
कोर्ट का फैसला क्यों अहम
महिलाओं के अधिकारों को लेकर हाई कोर्ट के इस फैसले को बेहद अहम माना जा रहा है, क्योंकि कई ऐसे मामले सामने आते हैं जिनमें लड़का-लड़की एक साथ रहते हैं, लड़का लड़की से शारीरिक संबंध बनाता है, उससे शादी करने का वादा करता है और फिर उससे ब्रेकअप कर लेता है.
बता दें कि इससे पहले उत्तराखंड सरकार ने पारित किए यूनिफॉर्म सिविल कोड में तलाक, शादी और प्रॉपर्टी को लेकर सभी नागरिकों को समान अधिकार दिये हैं. इस कोड में विशेष रूप से लिव इन रिलेशनशिप में रहने के लिए रजिस्ट्रेशन को अनिवार्य किया गया है. वहीं अगर 21 साल से कम उम्र के लड़का-लड़की लिव इन में रहना चाहते हैं तो उन्हें अपने माता-पिता की सहमति का भी प्रमाणपत्र देना होगा.