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'गुलाम नहीं हम आजाद, मत करो ऐसा...,' हाई कोर्ट के जज ने वकील से ये क्यों कहा?

अदालतों में ऐसे कई वाक्य प्रचलित हैं, जिन्हें सुनकर ब्रिटिश कालीन युग की याद आती है. जजों को माई लॉर्ड, यॉर लॉर्डशिप, यॉर ऑनर, योर एक्सिलेंसी जैसे टर्म्स से संबोधित किया जाता है. यह प्रचलन चलता आया है तो वकील भी इसे कोर्ट में दोहराते रहे हैं. लोग इसे लेकर सवाल भी उठाते रहे हैं. आइए जानते हैं अब कोर्ट ने ही ऐसी औपचारिकताओं पर क्या कह दिया है.

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Edited By: India Daily Live
Calcutta High Court
Courtesy: Calcutta High Court

कलकत्ता हाई कोर्ट की एक अदालत ने एक मामले की सुनवाई के दौरान अचानक औपनिवेशिक मानसिकता (Colonial Mindset) का जिक्र कर दिया है. कोर्ट ने वकील को कॉलोनियल युग के वाक्य प्रयोग पर आपत्ति जताई है. कोर्ट में वकील एक दस्तावेज सौंप रहे थे, तभी उन्होंने जिस शब्द का इस्तेमाल किया, उस पर कोर्ट ने आपत्ति जता दी और ये कह दिया कि आपको कॉलोनियल माइंडसेट से बाहर आने की जरूरत है, अब भारत आजाद है.

जस्टिस हरीश टंडन और जस्टि अपूर्ब सिन्हा सोमवार को एक याचिका की सुनवाई कर रहे थे. जब वकील ने अपने याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए बेंच से कहा, 'मैं अपने अपीलार्थी की ओर से याचना कर रहा हूं...' 

'कॉलोनियल माइंडसेट से बाहर आइए'

जैसे ही वकील ने यह कहा, जस्टिस हरीश टंडन ने आपत्ति जता दी. उन्होंने कहा, 'ऐसी भाषा का इस्तेमाल औपनिवेशिक युग (कॉलोनियल एरा) का हैंगओवर है, जिसे अब उतार देने की जरूरत है.'

'बेगिंग क्यों, अब हम आजाद हैं...'

जस्टिस हरीश टंडन ने कहा, 'आप लोग बेगिंग जैसे शब्दों का इस्तेमाल क्यों करते हैं. इस कॉलोनियल अभिव्यक्ति का युग बीत गया है. हम स्वतंत्र हैं.'

'यह आपका अधिकार, न करें याचना'

जज ने वकील से कहा कि याचना की कोई जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, 'आपके पास एक संवैधानिक और कानूनी अधिकार है, पक्ष रखने का. आप कह सकते हैं कि आप अपीलार्थी की ओर से पेश हुए हैं. आपको याचना करने की जरूरत क्या है?'

'यही तो कॉलोनियल माइंडसेट है'

इसके जवाब में वकील ने कहा, 'मैं सुधार रहा हूं.'  जस्टिस ने कहा यही कॉलोनियल माइंडसेट है. उन्होंने फिर आगे की सुनवाई शुरू कर दी.