Revanth Reddy Profile: कांग्रेस की जीत के साथ ही ए रेवंत रेड्डी गुरुवार यानी 7 दिसंबर को तेलंगाना के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं. कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने मंगलवार शाम को यह ऐलान किया. उन्होंने कहा कि विधायक दल के प्रस्ताव पर पार्टी प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे ने यह फैसला किया है.
रेवंत रेड्डी ने कोडंगल सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की. रेवंत रेड्डी के सीएम बनने की घोषणा के साथ ही सबसे बड़ा सवाल यह आता है कि आखिर उन्हें ही मुख्यमंत्री क्यों बनाया जा रहा है? आइए विस्तार से जानें इस सवाल का जवाब....
छात्र नेता के रूप में शुरू किया था राजनीतिक सफर
1969 में जन्मे रेवंत रेड्डी ने एवी कॉलेज से बीए की पढ़ाई की. इसी दौरान वह छात्र नेता के रूप में एबीवीपी में शामिल हो गए.
साल 2006 में उन्होंने मध्य मंडल ZPTC (जिला परिषद प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र) चुनाव में स्वतंत्र उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की.
इसके बाद 2007 में फिर से उन्होंने महबूब नगर से एक स्वंतत्र उम्मीदवार के रूप में स्थानीय निकाय चुनाव में जीत हासिल की.
उनके काम से प्रभावित होकर टीडीपी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू ने उन्हें अपनी पार्टी में शामिल कर लिया.
2009 में उन्होंने टीडीपी की टिकट पर कोंडगल से चुनाव जीता और पहली बार विधानसभा पहुंचे. अपनी मेहनत और सक्रियता से वह धीरे-धीरे चंद्रबाबू नायडू के बेहद करीबी बन गए, जिसके बाद उन्होंने टीडीपी में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां निभाईं. उन्होंने पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में भी काम किया. साल 2014 में वह फिर से कोडंगल से विधायक चुने गए.
नोट के बदले वोट कांड में हुए गिरफ्तार
2015 के एमएलसी चुनावों में उन्हें नोट देकर वोट खरीदने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. हालांकि रेवंत इस गिरफ्तारी से बिल्कुल भी नहीं डरे और उन्होंने इसे विरोधी केसीआर उनके सहयोगियों की साजिश बताया. गिरफ्तारी के बाद ही रेवंत रेड्डी ने अपनी मूछों में ताव देकर केसीआर को सीएम की कुर्सी से हटाने की कसम खाई थी और आज नतीजा आपके सामने है.
कांग्रेस में कैसे हुए शामिल
जेल जाने के बाद रेवंत ने अपनी खुद की सोशल मीडिया आर्मी बनाई और जनता के बीच अपनी छवि सुधारने में कामयाब रहे.
रेवंत के जेल जाने और चंद्रबाबू नायडू द्वारा ज्यादा ध्यान नहीं दिए जाने के कारण टीडीपी तेलंगाना में कमजोर पड़ने लगी, नतीजा यह हुआ कि पार्टी के सभी विधायक पार्टी छोड़कर चले गए. अब केवल रेवंत ही पार्टी में अकेले बचे थे.
इसी दौरान कांग्रेस के नेता जो पहले से ही कमजोर हो रहे थे वे रेवंत के संपर्क में आए. जब चंद्रबाबू नायडू को यह पता चला तो उन्होंने रेवंत रेड्डी को पार्टी से निलंबित कर दिया.
30 अक्टूबर 2017 को उन्होंने राहुल गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस का दामन थाम लिया. कांग्रेस में आने के बाद रेवंत रेड्डी का करियर लगातार परवान चढ़ता गया. कांग्रेस में आने के बाद उन्होंने सत्तारूड़ बीआरएस के नेताओं पर जमकर हमला बोला और अपनी वाकपटुता से सरकार के विरोधियों को अपने साथ मिलाने में कामयाब रहे.
हार के बाद देखा आलोचनाओं का दौर
2018 के चुनाव में कांग्रेस फिर से चुनाव हार गई. रेवंत भी कोडंगल से अपनी सीट नहीं बचा पाए. इसके बाद उन्होंने जमकर आलोचनाएं झेलनी पड़ीं. उस समय भी रेवंत के पैर मजबूती से जमे रहे, नतीजा यह हुआ की 2019 के लोकसभा चुनाव में रेवंत ने देश के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र मल्काजीगिरी से सांसद के तौर पर जीत हासिल कर खुद को साबित किया.
सांसद बनने के बाद उन्हें दिल्ली के नेताओं से संबंध बढ़ाने का मौका मिल गया, नतीजा यह हुआ कि 2021 में कांग्रेस आलाकमान ने उत्तम कुमार रेड्डी को हटाकर रेवंत को टीपीसीसी का अध्यक्ष नियुक्त कर दिया. तेलंगाना कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद रेवंत का कद स्थानीय राजनीति में काफी देती से बढ़ा. अध्यक्ष बनने के बात रेवंत ने तेलंगाना में बेदम हो चुकी कांग्रेस को फर्श से अर्श तक पहुंचाने के लिए जमकर मेहनत की.
200 केस हुए दर्ज फिर भी नहीं मानी हार
केसीआर की सरकार में रेवंत के खिलाफ लगभग 200 केस दर्ज हुए लेकिन उन्होंने परिस्थिती का मुकाबला करते हुए इन केसों को अपने लिए मेडल बताया. इससे रेवंत यह संदेश देने में सफल रहे कि वह तेलंगाना के एकमात्र ऐसे नेता हैं जो केसीआर को हरा सकते हैं.
विश्लेषकों का कहना है कि उनकी इसी मजबूती ने उन्हें तेलंगाना के लोगों का चहेता बनाया है. कांग्रेस के शीर्ष स्तर के नेता भी रेवंत के फैन हैं. चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका ने रेवंत रेड्डी के बारे में कहा था कि वह जब भी उनसे मिलीं, उन्होंने कभी अपने लिए किसी पद की मांग नहीं की. रेवंत रेड्डी बार-बार कहते हैं कि उनका लक्ष्य भ्रष्टाचार मुक्त शासन, विकास और कल्याण को आगे बढ़ाना है.
राज्य में केसीआर की सरकार के दौरान रेवंत जनता की आवाज बन गए. मामला चाहे बेरोजगारी का हो, परियोजनाओं के लिए अपनी जमीन खोने वाले विस्थापितों का हो या फिर किसानों का रेवंत ने हर मुद्दे पर सरकार के खिलाफ आवाज उठाई. आखिरकार आज जनता ने रेवंत को आज अपना मसीहा चुन ही लिया.