वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचें AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, किया ये बड़ा दावा
AAP MLA Amanatullah Khan Challenges Waqf Bill In Supreme Court: आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.

AAP MLA Challenges Waqf Bill In Supreme Court: आम आदमी पार्टी (आप) कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम के बाद वक्फ संशोधन विधेयक को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने वाली तीसरी विपक्षी पार्टी बन गई है. दिल्ली के आम आदमी पार्टी (AAP) विधायक अमानतुल्लाह खान ने वक्फ संशोधन विधेयक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उन्होंने इस विधेयक को "मनमाना" और "संविधान विरोधी" करार दिया है. खान का आरोप है कि इस विधेयक से मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता पर हमला हो रहा है और यह अल्पसंख्यक अधिकारों का उल्लंघन कर रहा है.
याचिका में क्या कहा गया है?
अमानतुल्लाह खान ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपनी याचिका दायर की, जो बुनियादी अधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ न्यायिक उपचार की सुविधा प्रदान करता है. उन्होंने यह दावा किया है कि यह विधेयक कई संविधानिक धाराओं का उल्लंघन करता है, जिनमें अनुच्छेद 14, 15, 21, 25, 26, 29, 30 और 300-A शामिल हैं. उनका कहना है कि यह विधेयक मुसलमानों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वायत्तता को खत्म करता है और सरकारी हस्तक्षेप को बढ़ावा देता है.
वक्फ संस्थाओं का नियंत्रण
अमानतुल्लाह खान ने अपनी याचिका में यह भी आरोप लगाया कि इस विधेयक के प्रावधानों के कारण वक्फ संस्थाओं के प्रबंधन में सरकारी दखलअंदाजी बढ़ जाएगी. उन्होंने कहा कि इस विधेयक में वक्फ संपत्तियों के निर्धारण के अधिकार को जिला कलेक्टर को सौंपने का प्रावधान है, जो पहले वक्फ ट्रिब्यूनल के पास था. इस बदलाव से न्यायिक प्रक्रिया का उल्लंघन हो सकता है और इससे वक्फ संस्थाओं की स्वायत्तता कमजोर हो सकती है.
वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति
विधेयक के एक और विवादास्पद प्रावधान के तहत, वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का प्रस्ताव किया गया है. इस प्रावधान के अनुसार, राज्य सरकार को वक्फ बोर्डों में एक गैर-मुस्लिम मुख्य कार्यकारी अधिकारी (CEO) और कम से कम दो गैर-मुस्लिम सदस्य नियुक्त करने का अधिकार मिलेगा. खान ने इस कदम को धार्मिक संपत्ति प्रबंधन से संबंधित एक असंगत और बिना तर्क वाले कदम के रूप में देखा है. उनका कहना है कि इस कदम से वक्फ बोर्डों की स्वतंत्रता पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.
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