'बेटियों को बंधक बनाया गया है', पिता की अर्जी पर 'जग्गी वासुदेव' के आश्रम में सैकड़ों पुलिसकर्मियों की रेड

Isha Foundation Police Raid: कोयंबटूर के थोंडामुथुर स्थित ईशा फाउंडेशन के आश्रम में मंगलवार को 150 पुलिस अधिकारियों की एक बटालियन ने तलाशी अभियान चलाया. यह कार्रवाई मद्रास हाईकोर्ट के आदेश पर की गई, जिसमें फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों की रिपोर्ट मांगी गई थी.यह छापेमारी डॉ. एस. कामराज की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के बाद हुई है.

Social Media
India Daily Live

Isha Foundation Police Raid: कोयंबटूर के एक अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में 150 पुलिस अधिकारियों की एक बटालियन ने मंगलवार को थोंडामुथुर में ईशा फाउंडेशन के आश्रम में तलाशी अभियान शुरू किया. यह तलाशी अभियान मद्रास हाईकोर्ट के द्वारा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों पर रिपोर्ट मांगे जाने के एक दिन बाद शुरू किया गया. पुलिस द्वारा चलाए जा रहे तलाशी अभियान में तीन डीएसपी भी शामिल हैं. एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि अभियान में कैदियों की गहन जांच और फाउंडेशन के कमरों की तलाशी पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है.

इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए ईशा योग केंद्र ने कहा कि जो कुछ हो रहा है वह केवल एक जांच है.  अदालत के आदेश के अनुसार, एसपी सहित पुलिस सामान्य जांच के लिए ईशा योग केंद्र में आई है. वे यहां निवासियों और स्वयंसेवकों से पूछताछ कर रहे हैं, उनकी जीवनशैली को समझ रहे हैं, यह समझ रहे हैं कि वे कैसे आते हैं और कैसे रहते हैं, आदि...

मद्रास हाईकोर्ट ने दिया था आदेश 

दरअसल कोर्ट ने कोयंबटूर ग्रामीण पुलिस को जांच कर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था.  यह आदेश सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. एस. कामराज द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया गया था.  इस याचिका में दावा किया गया था कि उनकी दो बेटियों गीता कामराज (42) और लता कामराज (39) को कोयंबटूर स्थित फाउंडेशन में बंधक बनाकर रखा गया है.  उन्होंने आरोप लगाया कि यह संगठन लोगों का ब्रेनवॉश कर रहा है. उन्हें साधु बना रहा है और उनके परिवारों से उनका संपर्क सीमित कर रहा है.

जग्गी वासुदेव पर उठा सवाल 

कोर्ट  ने ईशा फाउंडेशन के फाउंडर, भगवान जग्गी वासुदेव के जीवन में स्पष्ट विरोधाभासों पर सवाल उठाया.  जस्टिस एस एम सुब्रमण्यम और वी शिवगनम ने पूछा कि सद्गुरु, जैसा कि जग्गी अपने अनुयायियों के बीच जाने जाते हैं जिनकी अपनी बेटी विवाहित है और अच्छी तरह से बसी हुई है अन्य युवतियों को अपने सिर मुंडवाने, सांसारिक जीवन त्यागने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी की तरह रहने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं. 

याचिका में क्या मांग की गई 

जब कामराज की याचिका में कहा गया कि उनकी दो बेटियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी की तलहटी में स्थित संगठन के योग केंद्र में रखा गया है, तो अदालत में उपस्थित दोनों महिलाओं ने कहा कि वे अपनी इच्छा से वहां रह रही हैं तथा उन्होंने किसी भी प्रकार की बाध्यता या नजरबंदी से इंकार किया है. प्रोफेसर के मुताबिक उनकी दोनों बेटियां काफी पढ़ी लिखी हैं और अच्छी खासा तनख्वाह कमा रही थीं. बाद में वे दोनों फाउंडेशन के संपर्क में आ गईं और वहीं रहने लगीं. इसके बाद उन्होंने अपने परिवार से सारे संबंध भी तोड़ दिए. 

संस्था लोगों का दुरुपयोग कर रही 

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अब, याचिकाकर्ता की शिकायत यह है कि संस्था कुछ लोगों का दुरुपयोग कर रही है. उनका ब्रेनवॉश कर उन्हें भिक्षु बना रही है और यहां तक ​​कि उनके माता-पिता और रिश्तेदारों को भी भिक्षुओं से मिलने की अनुमति नहीं दे रही है.  संस्था के अंदर की स्थिति की भी याचिकाकर्ता ने वर्तमान याचिका में व्यापक रूप से आलोचना की है.  हालांकि कामराज की बेटियों ने जोर देकर कहा कि ईशा में उनका रहना स्वैच्छिक है लेकिन जस्टिस सुब्रमण्यम और शिवगनम पूरी तरह से आश्वस्त नहीं हुए, उन्होंने टिप्पणी की कि  हम जानना चाहते हैं कि एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी और उसे जीवन में अच्छी तरह से बसाया वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और एकांतवासी की तरह जीवन जीने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहा है.

क्या बोले फाउंडेशन के वकील?

ईशा फाउंडेशन का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील के राजेंद्र कुमार ने कहा कि वयस्कों को अपने जीवन के बारे में खुद निर्णय लेने का अधिकार है, जिसमें आध्यात्मिक मार्ग अपनाने का विकल्प भी शामिल है.  उन्होंने तर्क दिया कि ऐसे व्यक्तिगत निर्णयों की अदालत द्वारा जांच अनावश्यक थी, क्योंकि महिलाएँ स्पष्ट रूप से अपनी मर्जी से काम कर रही थीं.  हालांकि जस्टिस सुब्रमण्यम ने कहा कि आप समझ नहीं पाएंगे क्योंकि आप एक खास पक्ष की ओर से पेश हो रहे हैं.  लेकिन यह अदालत न तो किसी के पक्ष में है और न ही किसी के खिलाफ. हम केवल अपने सामने आए वादियों के साथ न्याय करना चाहते हैं.

माता-पिता की उपेक्षा करना पाप?

न्यायाधीशों ने बेटियों और उनके माता-पिता के बीच स्पष्ट शत्रुता के बारे में भी बात की. न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने बेटियों से कहा कि आप आध्यात्मिकता के मार्ग पर चलने का दावा करती हैं.  क्या आपको नहीं लगता कि अपने माता-पिता की उपेक्षा करना पाप है? 'सभी से प्रेम करो और किसी से घृणा मत करो' भक्ति का सिद्धांत है, लेकिन हम आपके अंदर अपने माता-पिता के लिए बहुत घृणा देख सकते हैं.  आप उन्हें सम्मानपूर्वक संबोधित भी नहीं कर रही हैं.

फाउंडेशन पर दर्ज हैं आपराधिक मामले 

याचिकाकर्ता के वकील एम. पुरुषोत्तमन ने तर्क दिया कि ईशा फाउंडेशन से संबंधित आपराधिक मामले पहले भी दर्ज किए गए हैं, जिससे कदाचार और कानूनी उल्लंघन का एक पैटर्न पता चलता है. बेटियों के बयानों और ईशा फाउंडेशन द्वारा प्रस्तुत बचाव के बावजूद, अदालत ने मामले को एक कदम आगे बढ़ाते हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक ई राज थिलक को 4 अक्टूबर तक एक व्यापक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया.  इस रिपोर्ट में फाउंडेशन के खिलाफ लंबित सभी आपराधिक मामलों को शामिल किए जाने की उम्मीद है. ईशा फाउंडेशन ने कहा कि वे लोगों से शादी करने या भिक्षु बनने के लिए नहीं कहते. ये व्यक्तिगत पसंद हैं.  इसने कहा कि ईशा योग केंद्र में कई लोग आते हैं, और उनमें से केवल कुछ ने ही भिक्षु बनना चुना है.  बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर टिप्पणी करते हुए फाउंडेशन ने कहा कि याचिकाकर्ता ने भिक्षुओं को अदालत के समक्ष पेश करने की मांग की थी.