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नौकरी के लिए 15 साल का इंतजार खत्म, 11 दृष्टिहीन को मिलेगा अप्वाइंटमेंट लेटर

सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में सिविल सेवा परीक्षा (सीएसई) पास करने वाले शत-प्रतिशत दृष्टिबाधित अभ्यर्थी को 3 महीने के भीतर अप्वाइंटमेंट लेटर देने का आदेश दिया है. श्रीकांत मूवी की तरह यहां भी सभी को अपने हक के लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह फैसला सुनाया.

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Edited By: India Daily Live
Supreme Court
Courtesy: Social Media

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार ने 11 दृष्टिहीन लोगों को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में एप्वाइंट करने का आदेश दिया. सभी संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास करने के बावजूद 2009 से ही दर-दर भटक रहे थे. श्रीकांत मूवी की तरह यहां भी सभी को अपने हक के लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी. जिस तरह से फिल्म के नायक श्रीकांत को पढ़ाई से लेकर नौकरी तक सरकार की बनाई नीतियों से दिक्कतों का सामना करना पड़ा उसी तरह इन सभी दृष्टिहीन को कई तरह की परेशानी झेलनी पड़ी. 

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति पंकज मित्तल की पीठ ने अनुच्छेद 142 के तहत न्यायालय की असाधारण शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह फैसला सुनाया. इस दौरान उन्होंने केंद्र सरकार द्वारा दायर अपील का निपटारा किया, जिसमें केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) और दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा पारित समवर्ती निर्देशों को चुनौती दी गई थी. सरकार से कहा गया कि वह दिव्यांग श्रेणी में बैकलॉग रिक्तियों पर दृष्टिबाधित उम्मीदवारों की नियुक्ति करें.

2008 में पंकज ने दिया था सिविल सेवा परीक्षा

पंकज कुमार श्रीवास्तव 100 प्रतिशत दृष्टिहीन हैं. उन्होंने 2008 में सिविल सेवा परीक्षा दिया. फॉर्म में पंकज ने चार नौकरी की कैटगरी को चुनी थी. भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय राजस्व सेवा-आयकर (आईआरएस-आईटी), भारतीय रेलवे कार्मिक सेवा (आईआरपीएस) और भारतीय राजस्व सेवा-सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क (आईआरएस-सीएंडई). हालांकि, लिखित परीक्षा और साक्षात्कार से गुजरने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली. इसमें कहा गया कि कई अन्य दृष्टिबाधित व्यक्तियों को केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न आपत्तियों का हवाला देते हुए नियुक्ति देने से मना कर दिया गया था.

न्याय पाने के लिए दर-दर भटकना पड़ा 

सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र द्वारा दायर हलफनामे का हवाला देते हुए कहा कि इस मामले में,अपीलकर्ता-भारत संघ द्वारा दायर हलफनामे रिकॉर्ड पर दुखद स्थिति लाते हैं. अपीलकर्ता पीडब्ल्यूडी अधिनियम, 1995 के प्रावधानों को लागू करने में विफल रहा. न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि केंद्र द्वारा 29 अप्रैल, 2022 को दायर हलफनामे में कहा गया था कि 1996 और 2009 के बीच की अवधि के लिए 41 बैकलॉग रिक्तियां थीं. दुर्भाग्य से सभी को नियुक्ति पत्र नहीं मिला. यदि अपीलकर्ता ने पीडब्ल्यूडी अधिनियम, 1995 को उसके सही अर्थों में लागू किया होता, तो प्रतिवादी संख्या 1 को न्याय पाने के लिए दर-दर भटकने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता.