Zakir Hussain: भारत के मशहूर तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन का 73 साल की उम्र में दिल की बीमारी की वजह से निधन हो गया. संगीत जगत में उनके अतुलनीय योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें 2023 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया.
उस्ताद जाकिर हुसैन को संगीत की विरासत अपने पिता से मिली थी. उनके पिता, उस्ताद अल्लाह राखा, तबला के एक बड़े उस्ताद थे और देश-विदेश में कई पॉपुलर कॉन्सर्ट का हिस्सा रहे थे. जब जाकिर महज डेढ़ दिन के थे, तब उनके पिता ने उन्हें ताल सुनाई. यह पहली मुलाकात थी, जिसने उस्ताद जाकिर हुसैन के जीवन का रुख तय कर दिया. इसके बाद, उन्होंने पूरी दुनिया को अपने संगीत से मंत्रमुग्ध किया.
उस्ताद जाकिर हुसैन का संगीत के लिए प्यार बचपन में ही शुरू हो गया था. उन्होंने कभी भी संगीत के लिए किसी खास उपकरण की तलाश नहीं की. घर के बर्तन, जैसे किचन के पत्तल और कटोरी, भी उनके लिए तबला बजाने के उपकरण बन गए थे. वे अक्सर बर्तनों को उलटकर उनपर धुनें बनाने की कोशिश करते थे. ऐसा करते हुए कभी-कभी बर्तन गिर भी जाते थे, लेकिन उनकी कलात्मकता में यह कभी कोई रुकावट नहीं बन पाई.
उस्ताद जाकिर हुसैन के बारे में लिखी गई किताब ‘जाकिर एंड इज तबला - ‘धा धिन धा’ में उनकी कला और परफॉर्मेंस को विस्तार से बताया गया है. किताब में यह भी बताया गया है कि जाकिर हुसैन कभी भी सतह पर तबला बजाने से नहीं घबराते थे. उनका मानना था कि संगीत कहीं भी और किसी भी जगह से निकल सकता है, बशर्ते उसके लिए दिल से समर्पण और जुनून हो.
उस्ताद जाकिर हुसैन ने बहुत कम उम्र में ही तबला बजाना सीखना शुरू कर दिया था. उनके पिता ने ही सबसे पहले उन्हें तबले पर हाथ बैठाना और उसकी धुनों से ताल मिलाना सिखाया था. इसके बाद, उन्होंने उस्ताद खलीफा वाजिद हुसैन, कंठा महाराज, शांता प्रसाद और उस्ताद हबीबुद्दीन खान जैसे बड़े गुरुओं से भी संगीत की शिक्षा ली. इन सबके योगदान के कारण, उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपनी कला को और भी निखारा और उसे दुनिया भर में पहुंचाया.
उस्ताद जाकिर हुसैन ने अपने जीवन में पांच ग्रैमी अवॉर्ड जीते हैं, जो उनके संगीत के लिए उनके प्यार और जुनून है. उनका नाम भारतीय संगीत के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी सम्मानित किया गया है.