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India Daily
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एक फोन कॉल, एक इनकार और किशोर कुमार के गानों पर लग गया था बैन, इमरजेंसी की ये कहानी सुनी है?

इमरजेंसी सिर्फ देश पर नहीं लगी थी. कलाकारों के लिए भी ये वक्त गहन अंधेरे से ज्यादा कुछ नहीं था. जिन लोगों ने मुखरता से इसका विरोध किया, उनका दमन कर दिया गया. इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी इस दौरान एक्टिंग प्रधानमंत्री की तरह काम करने लगे थे. एक कलाकार के करियर को खत्म करने की ही प्लानिंग उन्होंने कर ली थी. क्या है ये किस्सा, पढ़ें.

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Tahir Kamran
Kishore Kumar
Courtesy: Social Media

25 जून की रात 1975 को देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी राष्ट्रपति भवन पहुंचती हैं और इमरजेंसी की फाइल पर दस्तखत करवाती हैं. साथ ही 26 जून की सुबह रेडियो पर आधिकारिक ऐलान कर देती हैं. इस ऐलान के बाद से देश के हालात बदतर हो गए थे और जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे थे. जो भी इंदिरा गांधी के इस फैसले के खिलाफ आवाज उठा रहा था उसके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जा रही थी. इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी पूरे एक्शन प्लान की निगरानी कर रहे थे. विरोध करने वाला कोई भी हो उसे रातों-रात उठाया जा रहा था. इस दौरान हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं और नेताओं को जेल में डाला गया. इमरजेंसी से जुड़ी इस खास सीरीज में आज में आपको मशहूर सिंगर और एक्टर किशोर कुमार की कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं. इस एपिसोड में हम आपको बताएंगे कि आखिर इमरजेंसी के के बीच किशोर कुमार के गानों पर क्यों पाबंदी लगी थी?

दरअसल देश में जिस समय हालात बिगड़े हुए थे तब किशोर कुमार के पास एक फोन आता है और फोन के दूसरी तरफ सूचना विभाग के एक सीनियर अफसर थे. जो किशोर कुमार से मिलना चाहते थे. लेकिन किशोर कुमार की सेहत इन दिनों ठीक नहीं थी ऐसे में उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया और कहा कि डॉक्टर्स ने उन्हें अभी मिलने जुलने से मना किया है. जिसके बाद अधिकारी फोन पर ही मिलने की वजह बताना शुरू कर देता है. 

'संजय गांधी के इशारों पर नहीं नाचे किशोर कुमार'

अधिकारी ने कहा कि उन्हें इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी एक कार्यक्रम का प्रचार करना है और संजय गांधी चाहते हैं कि किशोर कुमार इस एजेंडे को अपनी सुरीली आवाज में रिकॉर्ड करें. लेकिन किशोर कुमार ने पहले ही कांग्रेस की एक रैली में शामिल होने से इनकार कर चुके थे. ऐसे में उन्होंने इस बार भी मना कर दिया. किशोर कुमार का मानना ​​था कि कलाकार को राजनीतिक बंधन से मुक्त किया जाना चाहिए, कलाकार तो सबका होता है और अगर वह राजनीतिक जेल में बंधा है तो उसकी कला पर प्रभाव पड़ना शुरू हो जाता है.

किशोर कुमार का इनकार और शुरू हुआ बवाल

किशोर कुमार ने सरकारी अधिकारी को बीच में ही टोकते हुए कहा कि वह इस संबंध में उनकी कोई मदद नहीं कर सकते. किशोर कुमार की तरफ इनकार सुनने के बाद अधिकारी का लहजा बदल गया और उसने कहा कि यह आदेश सूचना मंत्री जी का है. हालांकि किशोर कुमार पर इसका कोई असर नहीं हुआ. इसके बाद फोन कट जाता है और फिर अधिकारी मंत्री जी को सारी बात बता देता है. इन मंत्री जी का नाम था विद्याचरण शुक्ल जो संजय गांधी के खास लोगों में शुमार किए जाते थे. यहां तक कि संजय गांधी हर क्रूर काम के बारे में इनसे मशवरा करते थे. कहा तो यह भी जाता है कि मुसलमानों की नसबंदी का विचार भी इन्हीं के दिमाग की उपज थी. 

आकाशवाणी-दूरदर्शन पर बैन हो गए किशोर कुमार

ऐसे में भल वो किशोर कुमार कैसे छोड़ देते. उन्होने संजय गांधी के से मशवरे के बाद एक्शन और ऑल इंडिया रेडियो व दूरदर्शन पर किशोर कुमार के चलने बंद हो गए. इतना ही नहीं, जो कंपनियां किशोर कुमार की कैसेट बेचती थीं, उन्हें भी आदेश दिया गया कि वे किशोर कुमार के किसी भी गाने की मार्केटिंग न करें. 

यहां तक ​​कि किशोर कुमार की एक्टिंग वाली फिल्में रोकने का भी दबाव डाला गया. किशोर कुमार तक यह खबर पहुंच चुकी थी कि कांग्रेस सरकार उनके 'इनकार' के लिए उन्हें ये सजा दे रही है लेकिन वह खामोश रहे. ये सिलसिला सिर्फ किशोर कुमार तक ही सीमित नहीं था. उनके अलावा भी कई फिल्मी हस्तियों पर एक्शन लिया गया था. 

किसने उठाई थी किशोर कुमार के हक में आवाज

किशोर कुमार पर लगी पाबंदी के खिलाफ मोहम्मद रफी ने आवाज उठाई थी. एक मौके पर जब वो संजय गांधी से मिले तो उन्होंने खास तौर पर किशोर कुमार पर लगी पाबंदी हटाने की सिफारिश की. हालांकि कहा यह भी जाता है कि इस दौरान किशोर कुमार और मोहम्मद रफी के बीच पेशेवर विवाद चरम पर थे. लेकिन मुहम्मद रफ़ी ने सभी विवादों को भुलाकर एक फनकार होने की मिसाल पेश की. संजय गांधी शुरुआत में तैयार नहीं थे लेकिन मोहम्मद रफी ने कहा कि कलाकारों को राजनीति से ऊपर रखना चाहिए. जिसके बाद संजय गांधी ने मोहम्मद रफ़ी के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और किशोर कुमार पर लगी पाबंदियों में ढील देन शुरू कर दी थी.