नई दिल्ली: हमीदा शाहीन ने भी क्या खूब कहा है कि 'कौन बदन से आगे देखे औरत को, सबकी आँखें गिरवी हैं इस नगरी में..' आज भले ही आजादी को 77 साल हो गए हैं लेकिन आज भी महिलाएं अपनी आजादी के लिए लड़ रही हैं. कई क्षेत्र में महिलाएं बढ़-चढ़ के हिस्सा ले रही हैं लेकिन फिर भी कई ऐसी जगह है जहां उन्हें वो सम्मान नहीं मिल पा रहा जिसकी वो हकदार हैं.
महिलाओं के संघर्ष की कहानी संजय लीला भंसाली से ज्यादा कोई अच्छे से पर्दे पर नहीं उतार सकता है. भंसाली ने अपनी वेब सीरीज हीरामंडी के जरिए लाहौर की उन तवायफों के संघर्ष को दिखाया है जिनको आजादी का मतलब बताने की जरूरत नहीं पड़ती, वो इसको खुद ही समझ गईं. हीरामंडी 1 मई को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई है जिसके 8 एपिसोड है और हर एपिसोड की अपनी कहानी है.
सीरीज को देखना शुरू किया तो वो आपको बांधकर रख लेगी और आप इसको पूरी देखने के बाद ही उठेंगे. सीरीज में हर अदाकारा ने अपने रोल को बखूबी निभाया है. सीरीज को देखने के बाद आपको पता चलेगा कि अगर नवाबों के शौक पूरे करने के लिए तवायफें बिस्तर पर जा सकती हैं तो आजादी के लिए मसाल उठाकर सड़कों पर भी उतर सकती हैं.
अगर आपने सीरीज को ध्यान से देखा होगा तो आपको इसमें एक शब्द सुनने को मिला होगा 'नथ उतरवाई..' जी हां ये वो घिनौनी रस्म हैं जिसमें तवायफों की नथ उतराई यानी उनके जिस्म का सौदे होने की शुरुआत होती है. भारत में नथ पहनने की परंपरा मुगल काल से चली आ रही हैं. फारसी और अरबी संस्कृतियों की तरह मुगल काल में भी नाक में बाली जैसा कुछ पहनने का रिवाज था जिसको नथ कहा जाता था. इसको सिर्फ महिलाएं नहीं बल्कि पुरुष भी पहनते थे. यह नथ अब महिलाओं के श्रृंगार का अहम हिस्सा बन गया है.
एक लड़की को तवायफ बनने के लिए 3 चीजों से गुजरना पड़ता है जिसमें पहला अंगिया, दूसरा मिस्सी और तीसरी नथ उतरवाई की रस्म हैं. अंगिया की रस्म में बाकी तवायफें उस लड़की को 'ब्रा' पहनाती थी, मिस्सी की रस्म में उस लड़की के दांतों को काला किया जाता था क्योंकि उस वक्त काले दांत का काफी महत्व था. वहीं नथ उतराई में नवाब वर्जिन लड़की के लिए बोली लगाते थे और उसके बाद उस लड़की के साथ पहली रात बिताते थे. ऐसा करने वाले रईसजादों को मर्द होने का सर्टिफिकेट दिया जाता था. इस रस्म के बाद वो लड़की कभी नथ नहीं पहनती थीं. नथ उतराई के बाद बाकी तवायफें कोठे में जश्न मनाती थीं.