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India Daily

'मेरे कपड़े बाहर फेंक दिए...' जब बेटी को एक्टर बनाने के लिए इस एक्ट्रेस की मां ने उठाया था ये कदम

Usha Nadkarni: अपनी दमदार अदाकारी से पहचान बनाने वाली उषा नाडकर्णी ने अपने यादगार किरदार से अपने फैंस को दिल जीता था. हाल ही में एक्ट्रेस ने अपने संघर्षभरे दिनों को याद करते हुए एक भावुक किस्सा साझा किया है.

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Edited By: Babli Rautela
Usha Nadkarni
Courtesy: Social Media

Usha Nadkarni: टेलीविजन की दुनिया में अपनी दमदार अदाकारी से पहचान बनाने वाली उषा नाडकर्णी ने सीरियल पवित्र रिश्ता में सविता देशमुख के अपने यादगार किरदार से अपने फैंस को दिल जीता था. हाल ही में एक्ट्रेस ने अपने संघर्षभरे दिनों को याद करते हुए एक भावुक किस्सा साझा किया है. एक पॉडकास्ट शो में, उन्होंने बताया कि कैसे सिर्फ 18 साल की उम्र में अभिनय करने की चाहत ने उन्हें अपने ही घर से बेदखल कर दिया.

कॉमेडियन भारती सिंह और हर्ष लिंबाचिया के साथ बातचीत में उषा नाडकर्णी ने खुलासा किया कि उनके अभिनय में आने के फैसले से उनकी मां बेहद नाराज थीं. वे एक शिक्षिका थीं और उन्हें लगता था कि नाटक या थिएटर की दुनिया अनुशासनहीन होती है.

बेटी को एक्ट्रेस बनाने के लिए उठाया था ये कदम

अपने पुराने दिनों को याद करते हुए उषा ने कहा, 'पापा को इतनी समस्या नहीं थी, मां को अच्छा नहीं लगता था. टीचर थी ना. मां के हिसाब से बराबर था- नाटक में टाइम नहीं रहता, कभी भी आते रहते हैं. एक दिन मां ने मेरे सारे कपड़े उठा के बाहर फेंक दिए और बोला, 'ड्रामा करना है तो हमारे घर से निकल जा.'

इस स्थिति में, गुस्से में आई उषा ने भी पीछे हटने का नाम नहीं लिया. उन्होंने कहा,  'मैं भी गुस्से में थी, मैंने अपने सारे कपड़े उठाए, ग्रांट रोड ईस्ट गई, एक बैग खाली, कपड़े भरे और मेरी एक सहेली थी, जो मेरे साथ काम करती थी, उसके घर चली गई. तब मैं 18-19 साल की थी.'

जब सड़कों पर नाचने पर पापा ने की पिटाई

उषा ने बातचीत के दौरान अपने पिता के सख्त रवैये का भी जिक्र किया. उन्होंने हंसते हुए बताया कि एक बार वह लता मंगेशकर जी के गणपति समारोह में सड़कों पर नाच रही थीं, तभी उनके पिता उन्हें ढूंढ़ते हुए वहां आ पहुंचे. और मारते हुए वापस घर ले गए.

उषा नाडकर्णी की यह कहानी सिर्फ एक कलाकार के संघर्ष की नहीं, बल्कि एक लड़की के अपने सपनों को साकार करने की जिद और साहस की मिसाल है. घर से निकाले जाने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और धीरे-धीरे मराठी और हिंदी थिएटर, फिर टीवी और फिल्मों में खुद को स्थापित किया.