कहते हैं कि घर में बुजुर्गों का होना काफी जरूरी हैं इससे घर के बच्चे सब एक दूसरे से जुड़े रहते हैं. आज हम जो कुछ भी है अपने बुजुर्गों के कारण जिनकी वजह से हम इस काबिल हुए. हालांकि, हर घर में बड़ों का साया नहीं होता बहुत कम लोग ही अपने दादा-दादी का आशीर्वाद पा सकते हैं. बुजुर्गों की लाइफ से जुड़ी एक कहानी जिसको फिल्म रूपी माला में पिरोकर अनुपम खेर बड़े पर्दे पर लाए हैं.
फिल्म की कहानी एक ऐसे बुजुर्ग व्यक्ति की है जो एक उम्र बीत जाने के बाद अपनी लाइफ के बारे में सोचते हैं और विचार करते हैं कि क्या अब हमारी लाइफ का कोई मकसद नहीं है. जिन्होंने अपने बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए अपनी पूरी उम्र निकाल दी वो अब अपने बुढ़ापे को जीना चाहते हैं. बस इसी कारण वो अपनी पत्नी के साथ बाहर निकलते हैं लेकिन उसी बीच उनके साथ कुछ ऐसा हो जाता है कि उनकी लाइफ एक सिग्नेचर में आकर सिमट जाती है तो चलिए जानते हैं कि फिल्म की कहानी क्या है?
पूरी जिंदगी काम करने और बच्चों को जिंदगी सेटल करने के बाद एक बुजुर्ग पति पत्नी सोचते हैं कि वो अब खुद के लिए कुछ करेंगे. बस इसी को ध्यान में रखते हुए दोनों यूरोप जाने का प्लान बनाते हैं. दोनों एयरपोर्ट के लिए निकलते हैं लेकिन उसी बीच उनकी पत्नी की तबियत खराब हो जाती है और वो जिंदगी और मौत के बीच लड़ रही होती है.
पति अपनी पत्नी को अस्पताल ले जाता है तो डॉक्टर्स उन्हें DNR पर सिग्नेचर करने को कहते हैं. यानि ये लिखकर दो की अगर तुम्हारी पत्नी को कुछ हुआ तो हम मशीनों के जरिए उसमें सांसें नहीं भरेंगे क्योंकि उन मशीनों के लिए पैसा चाहिए जो उस बुजुर्ग के पास है नहीं. बस यहीं से उस बुजुर्ग के दोबारा संघर्ष की कहानी शुरू होती है. फिल्म का क्लाइमैक्स आपको हिलाकर रख देगा और आपको दो दिन तक सोने नहीं देगा.