Satyajit Ray Death Anniversary: भारतीय सिनेमा के महान डायरेक्टर सत्यजीत रे की पुण्यतिथि 23 अप्रैल को होती है. आज, जब हम उनके योगदान को याद करते हैं, तो यह समझ पाते हैं कि कैसे उनकी फिल्मों ने भारतीय सिनेमा के नजरिए को बदल दिया और क्यों आज भी उनका काम सिनेमा के छात्रों और फिल्म मेकर्स के लिए मार्गदर्शक साबित होता हैं. ऑस्कर विजेता डायरेक्टर सत्यजीत रे को सिनेमा की दुनिया में एक शानदार स्थान प्राप्त है, और उनकी फिल्मों की विशेषता आज भी दुनियाभर में चर्चा का विषय बनती है.
सत्यजीत रे की फिल्मों की खासियत यह थी कि वे हमेशा समाज के जटिल मुद्दों पर बात करते थे. उनकी फिल्मों ने समाज के उन पहलुओं को उजागर किया जिन पर तब शायद ही कोई और फिल्मकार ध्यान देता. 'पाथेर पांचाली' से लेकर 'जलसाघर', 'चारुलता' और 'देवी' जैसी फिल्मों में रे ने सामाजिक विषमताओं, महिलाओं के अधिकारों और पुरुष प्रधान समाज की सच्चाइयों को खुलकर दिखाया.
'पाथेर पांचाली' की एक पॉपुलर सीन में अपू और दुर्गा एक खेत में कशफूल के बीच दौड़ते हुए शहर की ओर जाती ट्रेन को देख रहे होते हैं. यह दृश्य केवल एक प्राकृतिक सीन नहीं है, बल्कि यह समाज और उसके बदलाव, जीवन के संघर्ष और भविष्य की ओर बढ़ते हुए कदमों का प्रतीक है.
सत्यजीत रे का एक और अद्वितीय पहलू यह था कि उन्होंने 50 और 60 के दशक में महिलाओं को अपनी फिल्मों में अहम और मजबूत किरदारों के रूप में पेश किया. उस समय में जब सिनेमा का मतलब हीरो और हीरोइन तक सीमित था, रे ने अपनी फिल्मों में महिला पात्रों को उनके संघर्षों, सपनों और महत्वाकांक्षाओं के साथ दिखाया. 'देवी', 'चारुलता', और 'महानगर' जैसी फिल्मों में महिला पात्रों के अंदर की गहराई और उनकी ताकत को प्रस्तुत किया गया है, जो उस समय के सिनेमा में एक क्रांतिकारी कदम था.