'Phule' Release Postponed: अनंत महादेवन के डायरेक्शन में बनी फिल्म 'फुले', जिसमें प्रतीक गांधी और पत्रलेखा अहम किरदारों में हैं, की रिलीज को दो हफ्तों के लिए टाल दिया गया है. यह फिल्म पहले 11 अप्रैल को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली थी. यह फिल्म 19वीं सदी के समाज सुधारक ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित है, जिन्होंने जाति और लैंगिक असमानता के खिलाफ संघर्ष किया था. लेकिन अब यह फिल्म एक विवाद के केंद्र में आ गई है, जिसके चलते इसकी रिलीज को पोस्टपोन करना पड़ा है.
फिल्म की रिलीज में देरी का कारण महाराष्ट्र में ब्राह्मण समुदाय के एक हिस्से की ओर से उठाई गई आपत्तियां हैं. कुछ संगठनों का दावा है कि फिल्म में उनके समुदाय को गलत तरीके से दिखाया गया है, जो उनकी छवि को धूमिल करता है. इन संगठनों में अखिल भारतीय ब्राह्मण समाज और परशुराम आर्थिक विकास महामंडल शामिल हैं, जिन्होंने फिल्म की कहानी पर सवाल उठाए हैं. इस विवाद के बाद केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने भी बीच में दखल दिया और फिल्म में कई बदलावों की मांग की.
सीबीएफसी ने फिल्म मेकर्स को निर्देश दिया है कि वे जाति व्यवस्था से जुड़े कुछ संवेदनशील वॉयसओवर को हटा दें. इसके साथ ही 'महार', 'मांग', 'पेशवाई' और 'जाति की मनु व्यवस्था' जैसे शब्दों को फिल्म से निकालने को कहा गया है. बोर्ड ने कुछ डायलॉग में भी बदलाव की मांग की है. उदाहरण के लिए, 'झाड़ू लेकर चलने वाले आदमी' वाले दृश्य को 'सावित्री बाई पर गोबर के गोले फेंकते लड़के' से बदलने का सुझाव दिया गया है.
इसके अलावा, डायलॉग 'जहां क्षुद्रों को...झाड़ू बांधकर चलना चाहिए' को 'क्या यही हमारी...सबसे दूर बनाकर रखनी चाहिए' और '3000 साल पुरानी...गुलामी' को 'कई साल पुरानी है' से बदलने के लिए कहा गया है. इन बदलावों का उद्देश्य विवाद को कम करना और फिल्म को व्यापक दर्शकों के लिए स्वीकार्य बनाना है.
फिल्म के डायरेक्टर अनंत महादेवन ने इस मुद्दे पर अपना रिएक्शन साझा किया है.अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'ट्रेलर लॉन्च होने के बाद कुछ गलतफहमी हुई है. हम उन संदेहों को दूर करना चाहते हैं ताकि दर्शकों की संख्या में कोई परेशानी न हो.' महादेवन ने यह भी बताया कि उन्हें ब्राह्मण समुदायों से कई पत्र मिले हैं, जिनमें उनकी चिंताएं व्यक्त की गई हैं.
उन्होंने समुदाय के प्रतिनिधियों से मुलाकात की और समझाया कि फिल्म में कुछ ब्राह्मणों द्वारा ज्योतिराव फुले की पहल, जैसे 20 स्कूलों की स्थापना और सत्यशोधक समाज का गठन, का समर्थन करने की बात दिखाई गई है. उनका कहना है कि फिल्म किसी एजेंडे से प्रेरित नहीं है और यह केवल ऐतिहासिक तथ्यों को प्रस्तुत करती है.