Phule Movie Review: अनंत महादेवन की 'फुले' 19वीं सदी के भारत के क्रांतिकारी महात्मा ज्योतिराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित फिल्म है. फिल्म को शुरू में 11 अप्रैल, 2025 को महात्मा फुले जयंती के अवसर पर रिलीज किया जाना था. लेकिन ब्राह्मण समुदाय की आपत्तियों के कारण इसकी रिलीज़ में दो सप्ताह की देरी हुई. इससे पहले कि आप इसे सिल्वर स्क्रीन पर देखने का प्लान बनाएं चलिए जानते हैं कि प्रतीक गांधी और पत्रलेखा अभिनीत 'फुले' को दर्शकों का कैसा रिव्यू मिला है.
प्रतीक गांधी और पत्रलेखा की 'फुले' सिनेमाघरों में हुई रिलीज
170 साल से भी पहले 1840 के दशक में एक आदमी और उसकी पत्नी रहते थे, जिन्होंने शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाकर एक महत्वपूर्ण बदलाव को बढ़ावा दिया और जातिगत भेदभाव का चतुराई से मुकाबला किया. यह फिल्म महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले की कहानी है. फुले 1840 के दशक में पुणे में लड़कियों के लिए एक स्कूल शुरू करने पर दंपति द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों को दर्शाता है.
प्रतीक-पत्रलेखा की एक्टिंग लोगों को आई पसंद
समाज के निचले तबके से ताल्लुक रखने वाले लोगों को अक्सर ब्राह्मणों से उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. एक दिन महात्मा फुले को लड़कियों को पढ़ाना बंद करने की चेतावनी मिलती है, अन्यथा उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे. अपने परिवार की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए महात्मा फुले अपनी पत्नी के साथ घर छोड़ देते हैं और दूसरों की बेहतरी के लिए एक यात्रा पर निकल पड़ते हैं.
सभी के लिए समान अधिकारों को बनाए रखने, महिलाओं के लिए शिक्षा को बढ़ावा देने, जबकि उन्हें ज्योतिबा के पुराने स्कूल के दोस्त उस्मान शेख और उनकी बहन फातिमा से सपोर्ट मिलता है, उन्हें मिशन में कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. वे किस तरह से मुश्किलों के खिलाफ मजबूती से खड़े होते हैं, यह दर्शकों के लिए सिनेमाघरों में देखने लायक है.
सिनेमा और समाज की आत्मा जिंदा रखने के लिए 'फुले' जैसी फिल्में जरूरी
— Alok Kumar Prajapati (@alokkprajapati) April 25, 2025
प्रतीक, पत्रलेखा का नेशनल अवॉर्ड विनिंग परफॉर्मेंस#Phule pic.twitter.com/dwriLU4sZC
सिनेमा और समाज की आत्मा जिंदा रखने के लिए 'फुले' जैसी फिल्में जरूरी
— Alok Kumar Prajapati (@alokkprajapati) April 25, 2025
प्रतीक, पत्रलेखा का नेशनल अवॉर्ड विनिंग परफॉर्मेंस#Phule pic.twitter.com/dwriLU4sZC
देखने लायक है फिल्म
'फुले' में जो बात काम करती है वह यह है कि निर्माताओं ने महात्मा फुले और सावित्रीबाई फुले की जीवन यात्रा के महत्वपूर्ण वर्षों पर जोर देकर फिल्म की कथा को चुस्त-दुरुस्त रखा है. यह फिल्म उनकी विरासत को सोच-समझकर सम्मानित करती है. हालांकि यह जातिगत भेदभाव के विषय को छूती है, लेकिन फिल्म इसे सावधानीपूर्वक और संवेदनशीलता से पेश करती है. 19वीं सदी में महिलाओं के सामने आने वाले अन्य मुद्दों को भी फिल्म में अच्छी तरह से प्रस्तुत किया गया है.