Pawan Kalyan on Tamil film dubbing controversy: आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री और जन सेना पार्टी के प्रमुख पवन कल्याण ने तमिल फिल्मों के हिंदी में डबिंग को लेकर अपनी टिप्पणी पर उठे विवाद के बाद शनिवार को सफाई दी. उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्होंने कभी भी हिंदी भाषा का विरोध नहीं किया और उनकी टिप्पणी को गलत संदर्भ में पेश किया गया.
पवन कल्याण ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को लेकर चल रहे राजनीतिक बहस पर अपनी नाराजगी जाहिर की और कहा कि इस नीति की राजनीतिक फायदे के लिए गलत व्याख्या की जा रही है. उन्होंने इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि उन्होंने नीति पर अपना रुख बदला है. उन्होंने कहा, "मेरी पार्टी भाषाई स्वतंत्रता, उसके मूल सिद्धांतों और प्रत्येक भारतीय के शैक्षिक विकल्प के अधिकार के पक्ष में पूरी मजबूती से खड़ी है."
किसी भाषा को जबरन थोपा जाना या किसी भाषा का आँख मूंदकर केवल विरोध किया जाना, दोनों ही प्रवृत्ति हमारे भारत देश की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकता के मूल उद्देश्य को प्राप्त करने में सहायक नहीं हैं।
— Pawan Kalyan (@PawanKalyan) March 15, 2025
मैंने कभी भी हिंदी भाषा का विरोध नहीं किया। मैंने केवल इसे सबके लिए अनिवार्य बनाए…
हिंदी थोपने और विरोध करने, दोनों पर जताई असहमति
पवन कल्याण ने हिंदी भाषा के अनिवार्य थोपने और अंधाधुंध विरोध दोनों को अनुचित बताया. उन्होंने कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण भारत की राष्ट्रीय और सांस्कृतिक एकता को कमजोर कर सकते हैं. उन्होंने कहा, "किसी भी भाषा को जबरन थोपना या फिर किसी भाषा का बिना तर्क के विरोध करना, ये दोनों ही बातें देश की एकता और अखंडता के खिलाफ जाती हैं."
तमिलनाडु सरकार और हिंदी भाषा पर बयान
राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) की त्रिभाषा नीति में कथित रूप से हिंदी थोपने के आरोपों के बीच केंद्र सरकार और तमिलनाडु सरकार के बीच विवाद गहराता जा रहा है. इसी संदर्भ में पवन कल्याण ने तमिलनाडु के नेताओं पर निशाना साधते हुए कहा कि वे हिंदी का विरोध तो करते हैं, लेकिन आर्थिक लाभ के लिए अपनी फिल्मों को हिंदी में डब करवाने से परहेज नहीं करते.
"तमिल नेता हिंदी का विरोध क्यों करते हैं?"
पवन कल्याण ने अपनी पार्टी जन सेना पार्टी के 12वें स्थापना दिवस के मौके पर काकीनाडा के पीथमपुरम में एक जनसभा को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने संस्कृत और हिंदी के विरोध को लेकर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, "मुझे समझ नहीं आता कि कुछ लोग संस्कृत की आलोचना क्यों करते हैं? तमिलनाडु के राजनेता हिंदी का विरोध क्यों करते हैं, जबकि अपनी फिल्मों को हिंदी में डब करने की अनुमति देकर आर्थिक लाभ उठाते हैं? वे बॉलीवुड से पैसा चाहते हैं, लेकिन हिंदी को स्वीकार करने से इनकार करते हैं यह किस तरह की नीति है?"