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Hisaab Barabar Review: बैंक का बड़ा फ्रॉड सामने लाती है फिल्म 'हिसाब बराबर', आर माधवन और कीर्ति कुल्हारी की एक्टिंग जीत लेगी आपका दिल

नायक एक मिलनसार भारतीय रेलवे कर्मचारी है. उसका विरोधी एक निजी बैंक है जो अपने ग्राहकों की अज्ञानता और उदासीनता का फायदा उठाने के लिए तैयार है. उनके संघर्ष की कहानी पूरी तरह से अनुमानित रेखाओं के साथ चलती है.

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Edited By: Antima Pal
Hisaab Barabar Review
Courtesy: social media

Hisaab Barabar Review: अश्विनी धीर की जियो स्टूडियोज की फिल्म 'हिसाब बराबर', जो ज़ी5 पर स्ट्रीम हो रही है, यह हिंदी फिल्म आम आदमी की शक्ति और धैर्य को दिखाती है. फिल्म दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेती है. कथानक फिल्म निर्माताओं द्वारा ज्ञात सबसे पुराने कथानकों में से एक पर टिका है: एक साधारण आदमी अपनी जीवन में चल रही व्यवस्था से लड़ता है. 

बैंक का बड़ा फ्रॉड सामने लाती है 'हिसाब बराबर'

नायक एक मिलनसार भारतीय रेलवे कर्मचारी है. उसका विरोधी एक निजी बैंक है जो अपने ग्राहकों की अज्ञानता और उदासीनता का फायदा उठाने के लिए तैयार है. उनके संघर्ष की कहानी पूरी तरह से अनुमानित रेखाओं के साथ चलती है. न्याय के लिए अकेले लड़ाई लड़ने के दौरान ढीठ योद्धा को कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है. लेकिन वह इस कहानी का नायक है, इसलिए वह हमेशा अपने रास्ते में आने वाली बाधाओं को पार करने का रास्ता खोज लेता है.

राधे मोहन शर्मा (आर. माधवन) एक ईमानदार रेलवे टिकट परीक्षक है, जो प्रत्येक कार्य दिवस के अंत में, गलत यात्रियों से वसूले गए हर एक पैसे का हिसाब रखता है. एकल पिता एक बार चार्टर्ड अकाउंटेंट बनने की ख्वाहिश रखता था. परिस्थितियों ने उसके खिलाफ साजिश रची और वह सफल नहीं हो पाया.

फैंस को पसंद आई फिल्म की कहानी

राधे मोहन का संख्याओं के प्रति जुनून अभी भी जिंदा है और फिल्म की शुरुआत में ही यह जुनून पूरी तरह से जुनून में बदल गया है. उसे पता चलता है कि उसके बैंक खाते से 27 रुपये और 50 पैसे गायब हैं. वह एक उदासीन अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगता है, लेकिन कोई जवाब नहीं मिलता. कोई भी उसे गंभीरता से नहीं लेता, खासकर बैंक के मालिक मिकी मेहता (नील नितिन मुकेश) को.

राधे मोहन अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं जिन्हें मेहता ने ठगा है. वह बैंक के खिलाफ पूरी तरह से मुहिम चलाता है. लेकिन बैंक को उसकी गलती स्वीकार करवाना एक कठिन काम है. आमना-सामना और उसके परिणाम उस व्यक्ति पर भारी पड़ते हैं. 

चाहे जितनी भी कोशिश की जाए, हिसाब बराबर उतना नहीं जुड़ पाता. एक अस्थिर आर्क के साथ, जो संख्याओं की भूलभुलैया से बाहर निकलने के बाद भी लय में नहीं आ पाता, फिल्म डेविड बनाम गोलियत की नीरस लड़ाई पर एक आशाजनक आधार को खो देती है. ग्राहक और बेशर्मी से चालाकी करने वाले बैंक प्रमोटर ने अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया है क्योंकि कार्ड टेबल पर रखे गए हैं.

हिसाब बराबर हल्के-फुल्के हास्य और बहुत गंभीर के बीच झूलती है. अपने सभी जोड़-घटाव के बावजूद, यह कभी भी एक औसत संख्या नहीं पाता है जो सभी अच्छे प्रयासों को सार्थक बना सके.