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India Daily

Black Warrant: कैसे मिली थी रंगा-बिल्ला को फांसी की सजा? इतिहास के काले पन्नों से पर्दा उठाएगी 'ब्लैक वारंट'

ब्लैक वॉरेंट में रंगा-बिल्ला केस को दिखाया गया है, लेकिन यह असली घटनाओं का एक बदला हुआ वर्जन है. हालांकि, यह एपिसोड असली घटनाओं का कितना सही चित्रण करता है, यह बहस का विषय है.

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Edited By: Babli Rautela
Black Warrant and the Ranga-Billa case
Courtesy: Social Media

Black Warrant and the Ranga-Billa case: नेटफ्लिक्स सीरीज ब्लैक वारंट में रंगा-बिल्ला केस को समर्पित एक एपिसोड ने दर्शकों को दिल्ली के अपराध इतिहास के इस काले अध्याय की झलक दी है. हालांकि, यह एपिसोड असली घटनाओं का कितना सही चित्रण करता है, यह बहस का विषय है.

यह मामला 26 अगस्त, 1978 को हुआ, जब भारतीय नौसेना के कैप्टन एम.एम. चोपड़ा के दो बच्चों, संजय चोपड़ा और गीता चोपड़ा, का अपहरण कर लिया गया. यह भाई-बहन ऑल इंडिया रेडियो (AIR) के एक कार्यक्रम के लिए अपने घर से निकले थे. बारिश और बाढ़ के चलते उन्होंने एक अजनबी की कार में लिफ्ट ली, लेकिन दुर्भाग्यवश, उनकी मुलाकात कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला से हुई, जिन्होंने उन्हें अगवा कर लिया.

रंगा और बिल्ला की गिरफ्तारी

रंगा और बिल्ला ने दोनों बच्चों के साथ बलात्कार किया और उनकी हत्या कर दी. इस निर्मम घटना के बाद पुलिस ने दिल्ली भर में तलाशी अभियान चलाया. रंगा और बिल्ला दो सप्ताह तक पुलिस से बचते रहे, लेकिन उनकी एक गलती ने उन्हें पकड़वा दिया. भागते हुए उन्होंने कालका मेल के एक सैन्य डिब्बे में यात्रा की, जहां अधिकारियों को उनके व्यवहार पर शक हुआ और उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया गया.

सीरीज में रंगा-बिल्ला केस को दिखाया गया है, लेकिन यह असली घटनाओं का एक बदला हुआ वर्जन है. शो में संजय और गीता को एक स्कूल जाने वाले छोटे बच्चों के रूप में दिखाया गया है, जबकि असल में गीता कॉलेज छात्रा और संजय स्कूल के बड़े छात्र थे. शो में जनता का गुस्सा और बच्चों के माता-पिता की कहानी को ज्यादा महत्व नहीं दिया गया. असल में रंगा और बिल्ला से पांच पत्रकारों ने इंटरव्यू लिया था, जबकि शो में इसे केवल एक पत्रकार तक सीमित दिखाया गया.

रंगा-बिल्ला के दावे और ब्लैक वारंट

शो में बिल्ला बार-बार अपनी बेगुनाही का दावा करता है और आरोप रंगा पर लगाता है. रंगा पत्रकारों से बात करने से इनकार करता है, जबकि बिल्ला अपनी कहानी बताने की कोशिश करता है. सीरीज में जेल के अंदर की फांसी की प्रक्रिया को जीवंत दिखाया गया है. रंगा को फांसी के बाद दो घंटे तक जीवित दिखाया गया, जिसे जेल कर्मियों ने एक क्रूर मजाक के रूप में खत्म किया.

डायरेक्टर विक्रमादित्य मोटवाने ने इस एपिसोड को सुनील कुमार गुप्ता की किताब पर आधारित रखते हुए फेक्स पर बनाने की कोशिश की है. हालांकि, कुछ रचनात्मक छूट ली गई है ताकि शो की कहानी को दर्शकों के लिए रोमांचक और नाटकीय बनाया जा सके.

रंगा-बिल्ला केस के बारे में

यह केस भारतीय न्याय प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण घटना साबित हुआ. यह दिल्ली के उन शुरुआती मामलों में से एक था, जिसने राष्ट्रीय राजधानी को 'बलात्कार राजधानी' का नाम दिया. 31 जनवरी, 1982 को रंगा और बिल्ला को फांसी दी गई, लेकिन यह घटना आज भी एक चेतावनी के रूप में याद की जाती है.

नेटफ्लिक्स की सीरीज ब्लैक वारंट ने रंगा-बिल्ला केस को दुनिया के सामने पेश किया, लेकिन वास्तविक घटनाओं की जटिलताओं और उनके प्रभाव को पूरी तरह से पकड़ने में असफल रही. यह एपिसोड दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या सच्चाई को पूरी तरह से दिखाया गया है या कहानी में मनोरंजन को प्राथमिकता दी गई.