बंगाली डायरेक्टर अरुण रॉय का निधन, 56 साल की उम्र में फेफड़ों के इंफेक्शन से हारी जंग

बंगाली फिल्म इंडस्ट्री में उनके पसंदीदा फिल्म मेकर और डायरेक्टर अरुण रॉय की मृत्यु से शोक की लहर दौर गई है. योगदान को कभी नहीं भुलाया जाएगा और वह हमेशा अपनी फिल्मों के माध्यम से जीवित रहेंगे.

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Arun Roy Dies: बंगाली फिल्म इंडस्ट्री के मशहूर डायरेक्टर अरुण रॉय का गुरुवार को निधन हो गया. वह 56 साल के थे और पिछले कुछ महीनों से कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. उनकी मृत्यु फेफड़ों में गंभीर इंफेक्सन की वजह से हुई थी. कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने इस दुखद खबर की पुष्टि की है.

बंगाली डायरेक्टर अरुण रॉय का निधन

अरुण रॉय, जिनका असली नाम अरुणव रायचौधरी था, को एक साल से अधिक समय से कैंसर से जूझते हुए देखा जा रहा था. उनकी स्थिति हाल ही में खराब हो गई थी, जिसके कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. शुरुआत में उन्हें आईसीयू में रखा गया था और BiPAP सिस्टम की मदद से उनकी सांसों को सहारा दिया गया था. हालांकि, उनके स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ और हालत और बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें वेंटिलेशन की आवश्यकता पड़ी.

आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में उनके इलाज से जुड़ी डॉ. किंजल नंदा ने गुरुवार दोपहर 1 बजे अरुण रॉय के निधन की पुष्टि की. इस समय उनके निधन के बाद एक भावपूर्ण श्रद्धांजलि भी साझा की, जिसमें उन्होंने लिखा, 'मेरे हीरालाल, बिल्कुल असली हीरालाल की तरह शांति से रहो.' डॉ. नंदा ने यह भी जानकारी दी कि अरुण रॉय का पार्थिव शरीर उनके हरिदेवपुर स्थित आवास से ले जाया जाएगा और वहां से टेक्नीशियन स्टूडियो में रखा जाएगा, ताकि उनके फैंस और सहकर्मी उन्हें श्रद्धांजलि दे सकें.

फिल्म इंडस्ट्री में योगदान

अरुण रॉय को बंगाली सिनेमा में उनके डायरेक्शन के लिए जाना जाता है. उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'हीरालाल' के जरिए बड़ी पहचान बनाई थी, जिसमें किंजल नंदा अहम किरदार में दिखाई दिए थे. इस फिल्म की सफलता के बाद, रॉय को सिनेमा की दुनिया में एक विशिष्ट स्थान प्राप्त हुआ.

उनकी 2023 में रिलीज हुई फिल्म बाघा जतिन को भी आलोचकों और दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया था. यह फिल्म भारतीय क्रांतिकारी जतिंद्रनाथ मुखर्जी के जीवन पर आधारित थी, जिसमें एक्टर देव ने अहम किरदार निभाया था. 

कैंसर का इलाज करते हुए मौत

अरुण रॉय को एसोफैजियल कैंसर का पता उस समय चला था जब वह बाघा जतिन फिल्म की शूटिंग कर रहे थे. बावजूद इसके, उन्होंने अपनी कड़ी मेहनत और सृजनात्मकता को बनाए रखा, और फिल्म पूरी की. कैंसर के इलाज के दौरान, उन्होंने खुद को एक सशक्त उदाहरण के रूप में पेश किया कि कैसे एक व्यक्ति अपनी स्थिति के बावजूद अपने उद्देश्य की ओर निरंतर अग्रसर रह सकता है.